कभी सोनिया गांधी के बाद देश में सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों में गिने जाने वाले दिग्गज कांग्रेस नेता पी चिदंबरम अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा अन्तरिम जमानत की याचिका अस्वीकार किये जाने पर वो कानून के शिकंजे से बचने के लिए छुपते फिर रहे हैं। आईएनएक्स मीडिया केस में पैसों के गबन के आरोप में संलिप्त पी चिदंबरम इस वक्त गिरफ्तारी से बचने के लिए एढ़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं।
परंतु अगर वो किसी चीज़ से नहीं बच सकते, तो वो है उनके कर्मों का फल। जिस तरह उन्होंने कई लोगों को सत्ता की भूख में अकारण ही तड़पाया था, उसी के परिणामस्वरूप उन्हें अब अपने आप को बचाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। यूं तो ऐसे लोगों की सूची काफी लंबी है, जिन्हें चिदंबरम के कारण हर प्रकार की यातना झेलनी पड़ी हैं, परंतु इनमें भी 5 ऐसे लोग हैं, जिनपर किए गए अत्याचारों का हिसाब अब चिदंबरम को जल्द ही देना पड़ेगा –
स्वामी असीमानंद
जिस भगवा आतंकवाद के प्रति राहुल गांधी और पी चिदंबरम जैसे विश्वासपात्र चाटुकार गाजे बाजे के साथ पूरी दुनिया को सचेत करते फिर रहे थे, उसी ‘भगवा आतंकवाद’ के अंतर्गत सबसे पहले शिकार बने नबा कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद। समझौता ब्लास्ट्स के केस में इन्हें फँसाने के लिए जिस तरह से पी चिदंबरम और उनके गृह मंत्रालय के चाटुकारों ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया था। कोर्ट में दिये बयान के अनुसार स्वामी असीमानंद को इन बम धमाकों की ज़िम्मेदारी लेने के लिए जांच एजेंसियों ने बुरी तरह टॉर्चर किया था। इसके बाद एक ऐसे कॉन्फेशन पर हस्ताक्षर करवाया गया जिसमें वो उस गुनाह की जिम्मेदारी ले रहे हैं जो उन्होंने किया ही नहीं। बाद में एनआईए के कोर्ट ने सबूतों के अभाव में असीमानंद को निर्दोष करार दिया था।
दिलचस्प बात तो यह है कि टाइम्स नाउ की एक रिपोर्ट के अनुसार वास्तविक अभियुक्तों को पुलिस ने इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि ‘ऊपर से ऑर्डर आए थे’। इसी प्रकार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भी बिना किसी ठोस सबूत के न केवल मालेगाँव धमाकों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, अपितु उन्हें अमानवीय यातनाएं भी दी गयी। अब ऐसे कर्म तो निःसंदेह चिदंबरम को चैन से नहीं सोने देंगे।
लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित
पी चिदंबरम के नेहरू गांधी परिवार के प्रति अनावश्यक आसक्ति के चलते जिसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, वो हैं मिलिटरी इंटेलिजेंस के अफसर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित। मालेगाँव धमाकों के अंतर्गत इनकी गिरफ्तारी को ही आधार बनाकर पी चिदंबरम ने ‘भगवा आतंकवाद’ के जिन्न को बाहर निकाला था। इन बम धमाकों में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित पर धमाकों के लिए आवश्यक विस्फोटक जुटाने हेतु सैन्य प्रशासन से आवश्यक सामाग्री चुराने का आरोप लगाया गया था।
2010 में इसी गिरफ्तारी को आधार बनाकर पी चिदंबरम ने पहली बार ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द को जन्म दिया था, जब वे नई दिल्ली में राज्य के पुलिस प्रमुखों को संबोधित कर रहे थे। ये चिदंबरम ही थे जिन्होंने लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को दोषी सिद्ध करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, जबकि उनके विरुद्ध एक भी ठोस सबूत यूपीए सरकार के पास नहीं थे। पी चिदंबरम ने असली आतंकियों को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर अनदेखा किया था जबकि भगवा आतंकवाद को सत्य सिद्ध करने में जिस तरह से उन्होंने गृह मंत्रालय का दुरुपयोग किया था, उसे पूर्व गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अफसर, श्री आरवीएस मणि ने अपनी पुस्तक ‘Hindu Terror: Insider account of Ministry of Home Affairs’ में बखूबी बताया है।
डीजी वंजारा
पूरा नाम – दाह्याजी गोबरजी वंजारा (डीजी वंजारा)। इस आईपीएस अफसर ने शायद बतौर गृह मंत्री पी चिदंबरम का असली चेहरा अपनी आँखों से देखा होगा। वे तत्कालीन गुजरात पुलिस में डीआईजी के पद पर तैनात थे, जब उन्हें यूपीए सरकार के निर्देश पर गैंग्स्टर सोहराबुद्दीन शेख और आतंकी इशरत जहां के फर्जी एंकाउंटर कराने के आरोप में हिरासत में लिया गया था।
यदि आरवीएस मणि और टाइम्स नाउ की रिपोर्ट्स को मानें, तो यह पी चिदंबरम ही थे, जिन्होंने सभी सीमाएं लांघते हुए डीजी वंजारा और उनके साथियों को इन ‘फर्जी एंकाउंटर’ के लिए दोषी ठहराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। आरोप तो यहाँ तक लगाए गए हैं कि गृह मंत्री चिदंबरम की निगरानी में यूपीए सरकार ने उन चार्जशीट्स के साथ भी छेड़छाड़ करने का प्रयास किया, जिसमें इस बात के संकेत थे कि वंजारा के नेतृत्व में किए गए ये एंकाउंटर फर्जी नहीं थे।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरे 5 साल [2004-2009] तक लश्कर ए तैयबा ने अपने प्रतिबंधित मैगज़ीन में खुलेआम स्वीकार किया कि इशरत जहां न केवल उनकी सदस्य थी, अपितु इस संगठन को उसकी शहादत पर नाज था। यह बात न तो कभी गृह मंत्रालय ने देश को पता चलने दी, और न ही पी चिदंबरम ने इसे किसी और को यूपीए के पूरे कार्यकाल में पता चलने दिया था। मुंबई हमलों के आरोपी डेविड कोलमैन हेडली का कॉन्फेशन और आरवीएस मणि की पुस्तक ‘हिन्दू टेरर’ इस बात की पुष्टि भी करता है। ऐसे में पी चिदंबरम के राष्ट्र के प्रति निष्ठा पर भी गंभीर प्रश्न उठते हैं, और हम ये सोचने को विवश हो जाते हैं कि कहीं चिदंबरम देश को तोड़ने वालों से हाथ तो नहीं मिला बैठे थे।
नरेंद्र मोदी
हमारे देश के प्रधानमंत्री तक गृह मंत्री पी चिदंबरम के प्रकोप से नहीं बच पाये थे। 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामले में उन्हें नियमित रूप से एसआईटी की कार्रवाई में उपस्थिति देनी पड़ती थी। हालांकि, गुजरात के मुख्यमंत्री होने के नाते वे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं थे, परंतु गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस बात पर पूरा ध्यान दिया कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी हर कार्रवाई में उपस्थित हों, और उन्हें किसी भी प्रकार की सहूलियत न दी जाये। इसके अलावा नरेंद्र मोदी को अमित शाह के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता के लिए भी परेशान किया गया, क्योंकि अमित शाह तब सोहराबुद्दीन शेख और इशरत जहां के ‘फर्जी एनकाउंटर’ मामले में आरोपी थे।
अमित शाह
सच पूछें तो यदि काल का चक्र किसी के पक्ष में सबसे ज़्यादा घूमा है, तो वो है हमारे वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह, जो आज उसी पद पर हैं, जिस पर आसीन हो कभी पी चिदंबरम ने उन्हें मिट्टी में मिलाने की भरसक कोशिश की थी। 2010 में अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे, जिन्हें यूपीए के निर्देश पर गैंग्स्टर सोहराबुद्दीन शेख और आतंकी इशरत जहां के ‘फर्जी एंकाउंटर’ के झूठे आरोप में न केवल फंसाया गया, अपितु उन्हें सलाखों के पीछे भी डाल दिया गया।
जब अमित शाह को निजी मुचलके पर जमानत मिली, तो पी चिदंबरम के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय के निर्देश पर न केवल उनके जमानत के विरुद्ध अपील दायर की गयी, अपितु उन्हें गुजरात से 2 वर्ष के लिए तड़ीपार करने का हुक्म भी सुना दिया गया। इस बात के साबित होने के बावजूद कि सोहराबुद्दीन शेख और इशरत जहां निर्दोष लोग नहीं थे, अमित शाह को पी चिदंबरम के कारण 2 वर्ष तक अपने गृह राज्य गुजरात से बाहर रहना पड़ा था।
अब 9 वर्ष बाद, जो भी पी चिदंबरम के हाथों सताये गए, प्रताड़ित किए गए, उनमें से अधिकतर लोग निर्दोष साबित हो चुके हैं। अब पासा पलट गया है और इस बार चिदंबरम अपने आप को बेगुनाह सिद्ध करने के लिए दर-दर भटक रहा है। वो सीबीआई द्वारा नोटिस चस्पा किये जान के बाद भी सामने नहीं आ रहे हैं। खैर, वो आज नहीं तो कल कानून के शिकंजे में आ ही जायेंगे और अपने ऊपर लगाये गये आरोपों के जवाब न दिए जाने की स्थिति में सजा भी पाएंगे। वैसे किसी ने सच ही कहा है, जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल। और कुछ ऐसा ही चिदंबरम के साथ हो भी रहा है। जो अतीत में उन्होंने किया है उसका फल आज उन्हें मिल रहा है।