गुरुवार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। परन्तु इस दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहीं भी दिखाई नहीं दिए। एक रिपोर्ट के अनुसार राहुल गांधी को राष्ट्रपति भवन द्वारा समारोह के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन वह अनुपस्थित रहे। फिलहाल इस समारोह में शामिल नहीं होने का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है लेकिन लोगों के मन में कई सवालों ने जरुर जगह बना ली है।
भारतीय राजनीति में एक मजेदार विसंगति है कि आपका खून भी राजनीतिक कद तय करता है और कांग्रेस इसका जीता जागता उदाहरण है। यह पहला मौका नहीं जब कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की उपेक्षा की हो। कांग्रेस का तो यह इतिहास ही रहा है कि वह गांधी परिवार के सदस्यों को छोड़ कर किसी अन्य सदस्य को महत्व नहीं देती है। हार्पर कोलिन्स पब्लिकेशन की एक किताब द चिनार लीव्स’ में गांधी परिवार के करीबी और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एम एल फोतेदार कहते हैं कि इंदिरा गांधी के बाद प्रणब मुखर्जी और पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस पार्टी का सर्वेसर्वा माना जा चुका था लेकिन इंदिरा गांधी द्वारा अपने बेटे राजीव गांधी को राजनीति में लाने के फैसले के बाद सब कुछ बदल गया था।
यूपीए II के शासन दौरान कांग्रेस ने अपने सबसे योग्य नेता प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री न बनाकर उनकी जगह मनमोहन सिंह को चुना था ताकि पीछे से गांधी परिवार का नियंत्रण देश और पार्टी पर बना रहे। कांग्रेस को क्षति पहुंचाने का वास्तविक काम तो गांधी परिवार ने ही किया है और इस पार्टी को ‘कांग्रेस नेहरू-गांधी परिवार की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी’ के रूप में तब्दील कर दिया है। कांग्रेस ने उसी दिन अपनी कब्र खोद ली थी जिस दिन हर प्रकार से योग्य और अनुभवी नेता प्रणब मुखर्जी को नजरअंदाज कर मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनाया था। डॉ. मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री जरूर थे, पर उनमें वे गुण नहीं थे कि वो देश के प्रधानमंत्री पद को कुशलता से संभाल सके। वे तो सारे फैसले सोनिया गांधी के सरकारी आवास में जाकर ही लेते थे। बिना 10 जनपथ की आज्ञा से कोई फाइल साइन ही नहीं करते थे।
ऐसे ही कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए पीवी नरसिम्हा राव को दरकिनार कर दिया था। उनकी उपलब्धियों को तो कांग्रेस पार्टी हमेशा से अनदेखा करती ही रही थी, यहां तक कि उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें सम्मान नहीं दिया। यह वही समय था जब कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के पास थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शव को ले जा रही तोप गाड़ी लगभग आधे घंटे कांग्रेस मुख्यालय के बाहर खड़ी रही थी लेकिन फिर भी उनके लिए कांग्रेस मुख्यालय का ताला नहीं खुला।
विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘द हाफ लायन’ में विस्तार से उस स्थिति के बारे में बताया है। विनय सीतापति अपनी किताब में ये भी लिखते हैं कि राव के बेटे प्रभाकरा कहते हैं कि हमें महसूस हुआ कि सोनिया जी नहीं चाहती थीं कि हमारे पिता का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो। वह यह भी नहीं चाहती थीं कि यहां उनका मेमोरियल बने।
वहीं कारोबारी और पत्रकार आरके सिन्हा ने भी इन दोनों बड़े नेताओं की कांग्रेस द्वारा उपेक्षा पर अपने एक लेख में लिखा था कि, “कांग्रेस ने अपने बेहतरीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की भी सदैव अनदेखी की। नरसिम्हा राव एक विद्वान और संसदीय कार्यों में निपुण कांग्रेसी नेता थे। वे मधुर पर कुशल प्रशासक थे। विडंबना देखिए आज भी कांग्रेस का गैर-गांधी नेताओं के प्रति रुख नही बदला है. प्रणब मुखर्जी को मिले सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार के दौरान कांग्रेस की अनुपस्थिति तो यही कहती है। यही एक वजह है कि आज ये पार्टी अपने इस दोहरे मापदंडों के कारण आम जनता द्वारा नकारी जा चुकी है।