हाल ही में आईएनएक्स मीडिया केस में पैसों के गबन में वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम को आधिकारिक रूप से हिरासत में लिया गया है। उन्होंने न्यायिक हिरासत के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, परंतु कोर्ट से उन्हें राहत मिल रही। चिदंबरम की गिरफ्तारी से कई राजनीतिक विश्लेषक यह अनुमान लगा रहे हैं कि उनके जरिये कांग्रेस के कई दबे रहस्य सामने आ सकते हैं, क्योंकि वे नेहरू गांधी परिवार के सबसे विश्वसनीय चाटुकारों में से एक हैं।
लेकिन एक पुराने केस को यदि हम टटोल कर देखें, तो पता चलता है कि पी चिदंबरम ने पहले भी भारत की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ किया है। वर्ष 2004 में जब एक मल्टीनेशनल कंपनी एनरॉन ने तत्कालीन एनडीए सरकार पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा दायर किया था। 2017 में सबसे पहले ज़ी न्यूज़ के अंग्रेज़ी विभाग WION न्यूज़ चैनल ने इस बारे में खुलासा किया था, जिसमें पी चिदंबरम और कांग्रेस के सत्ता की भूख का सबसे स्याह पक्ष सामने आया था।
हुआ यूं था कि भारत सरकार के साथ हुए अनुबंध के तहत एनरॉन को महाराष्ट्र राज्य में दाभोल पावर प्रोजेक्ट में काम करना था। परंतु वित्तीय अनियमितताओं के कारण एनडीए ने तुरंत एनरॉन की सेवाएँ निरस्त करवा दी, जिसके कारण एनरॉन ने भारत के विरुद्ध आईसीजे में केस दायर कर दिया। और यह एनरॉन ने पी चिदम्बरम की सलाह के बाद दर्ज करवाया था।
तब हरीश साल्वे को भारत की ओर से आईसीजे में अधिवक्ता के तौर पर नियुक्त किया गया। इसकी स्वीकारोक्ति स्वयं हरीश साल्वे ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिये अपने साक्षात्कार में किया था। लेकिन मई 2004 तक आते आते पासा बिलकुल पलट गया। एनडीए सरकार को हराकर काँग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आ गयी थी, और हरीश साल्वे को इस केस से हटाकर पाक के वकील खावर कुरैशी को भारत की ओर से वकील के तौर पर नियुक्त किया गया। इसके बाद भारत न केवल यह केस हारा, अपितु खावर कुरैशी को उनकी लंबी चौड़ी फीस भी चुकानी पड़ी।
परंतु खावर कुरैशी की नियुक्ति से भारत को किस बात का नुकसान हुआ? और उसे पी चिदंबरम द्वारा किए गए विश्वासघात से जोड़कर क्यों देखा जाता है? दरअसल, खावर कुरैशी लंदन में भले रहते हों, पर वे मूल रूप से पाक से हैं और ये वही खावर कुरैशी हैं जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय अदलत में कुलभूषण जाधव मामले में पाकिस्तान का मुकदमा लड़ा था।।
कहा तो यहां तक जाता है कि खावर कुरैशी को चिदंबरम के दिशानिर्देश पर ही नियुक्त किया गया था। अब यदि खावर कुरैशी के विचारों और आईसीजे में कुलभूषण जाधव मामले में उनके रुख को देखा जाये, तो क्या ये निर्णय विश्वासघात नहीं था? परंतु हम भूल रहे हैं कि ये वही पी चिदंबरम हैं, जिनके अंतर्गत ‘भगवा आतंकवाद’ को सच साबित करना, और इशरत जहां जैसे मामलों में तथ्यों के साथ खिलवाड़ करना जैसे अशोभनीय कार्य हुए थे। 26/11 के पश्चात जब चिदंबरम गृह मंत्री के पद पर तैनात थे, तभी तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर ने हमले के जवाब में आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक्स का सुझाव दिया था। परंतु पी चिदंबरम ने वायुसेना तो बहुत दूर की बात, सेना के बाकी अंगों को भी ऐसा कुछ भी करने से रोके रखा।
केवल अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि चमकाने हेतु पी चिदंबरम और कांग्रेस पार्टी ने देश की प्रतिष्ठा को जिस तरह मिट्टी में मिलाया, उसके बारे में कोई भी शब्द, किसी भी प्रकार की निंदा कम ही पड़ेगी। अब चिदंबरम को सरकारी पद पर रहते हुए किये गये घोटालों और विश्वासघातों का हिसाब देना होगा।