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अल गोर हो, मलाला हो या ग्रेटा, इन नोबल क्लब एक्टिविस्टों की हिपोक्रिसी का कोई जवाब नहीं!

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
28 September 2019
in मत
अल गोर हो, मलाला हो या ग्रेटा, इन नोबल क्लब एक्टिविस्टों की हिपोक्रिसी का कोई जवाब नहीं!
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नोबल शांति पुरस्कार या नोबल पीस प्राइज़ का नाम तो आपने सुना ही होगा। इसे विश्व स्तर पर शांति के लिए किए गए प्रयासों के लिए दिया जाता है। कई बार इसे जलवायु परिवर्तन के लिए भी दिया जाता है। हाल ही में यह चर्चा में भी है क्योंकि 16 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग को इसके लिए नामित किया गया है। हालांकि, यह नोबल पीस प्राइज़ चुने गये दिग्गजों को लेकर विवादित भी रहा है। कई बार इसे कई ऐसे व्यक्तियों को दे दिया जाता है जो इसके हकदार भी नहीं होते और एजेंडा चलाने वाले अपने फायदे के लिए लॉबी करवाते हैं।

नोबेल शांति पुरस्कार से जुड़े विवादों के चलते कई बार पुरस्कार देने वाली इस समिति की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये जाने लगे हैं। अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल गोर को साल 2007 में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। यह फैसला भी काफी आलोचना का सबब बना। अल गोर का विरोध करने वालों का मानना था कि वे दुनिया को तो पर्यावरण संरक्षण का उपदेश देते हैं लेकिन, खुद इसके विपरीत हैं। दुनिया को ऊर्जा का आवश्यकतानुसार इस्तेमाल करने का उपदेश देने वाले अल्बर्ट गोर को लेकर ये खबरें सामने आई थीं कि वो खुद 20 कमरों वाले घर में रहते हैं जहां एक औसत घर से 34 गुना अधिक बिजली की खपत होती है। उन्होंने यह तो बताया कि समुद्र का स्तर अपरिवर्तनीय रूप से बढ़ रहा है, और कहा कि सभी 8-10 साल सब डूब जायेगा। इससे समुद्र तट के पास की सभी संपत्तियों के मूल्य में गिरावट आई है। इसके बाद उन्होंने स्वयं समुद्र के पास एक हवेली लगभग 8.9 मिलियन डॉलर में खरीद लिया। अक्सर ही इन पुरस्कार पाने वाले लोगों का दोहरा रुख देखने को मिला है और अल गोर इन्हीं  उदाहरणों में से एक हैं। वैसे अल गोर इकलौते ऐसी व्यक्ति नहीं हैं।

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मलला को कौन भूल सकता है? महिलाओं के लिए अनिवार्य शिक्षा की मांग करते हुए तालिबानी हमले का शिकार हुई थीं। इसके बाद पाक की 17 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई को 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है। लेकिन पुरस्कार पाने के बाद मलाला ने तालिबन के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला है। यह पहला ऐसा अवसर नहीं है, जब मलाला ने अपनी हिपोक्रिसी का परिचय दिया हो। इससे पहले भी मलाला कई बार कश्मीर के मामले पर आतंकियों के विरुद्ध भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई को कश्मीरियों पर हो रहे अत्याचार के तौर पर दिखाने का घटिया प्रयास कर चुकी हैं। परन्तु पाक में हिन्दू लड़कियों के अगवा किये जाने और उनका जबरदस्ती धर्म बदलने के लिए मजबूर किये जाने पर मलाला को सांप सूंघ जाता है। यहां तक कि बलूचिस्तान में नागरिकों पर हो रहे अत्याचार पर भी मलाला चुप्पी साध लेती हैं। यही नहीं, अभी हाल ही में संपन्न हुए आईसीसी क्रिकेट विश्व कप के उदघाटन समारोह में जब कई देशों के बीच फ्रेंडली गली क्रिकेट चैंपियनशिप खेली गयी, तो उसमें भारत के अंतिम स्थान पर आने पर मलाला यूसुफजई खुशी से फूली न समाई। और तो और भारत का मजाक उड़ाया। अब इसे हिपोक्रिसी न कहें तो क्या कहें? एक तरफ वो संघर्ष की बात करती हैं और भारत की आलोचना करने का एक अवसर नहीं छोड़ती, वहीं, दूसरी तरफ पाक में लड़कियों की शिक्षा और विकास यहां तक कि आम जनता की परेशानियों पर न कुछ बोलती हैं और न ही कोई प्रयास करती हैं।

अब इसी कड़ी में एक नई हिपोक्रेट का उदय हुआ है और वह है ग्रेटा थनबर्ग, जो हाल ही में सम्पन्न हुई ‘क्लाइमेट चेंज एक्शन समिट’ में पेपर से पढ़ कर भाषण देने और ‘हाउ डेयर यू’ कह कर प्रश्न पूछने के कारण काफी चर्चित हो चुकी हैं। इतनी चर्चित कि उन्हें नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित कर दिया गया है।

हालांकि, मासूम ग्रेटा का एक और पक्ष उजागर हुआ है। दरअसल, क्लाइमेट चेंज की आड़ में कुछ वामपंथी बुद्धिजीवी ग्रेटा का प्रयोग कर अपना प्रोपेगेंड फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर वीडियो ओपिनियन पोर्टल ब्रुट का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें ग्रेटा ने इस बार प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लिया है। हम ग्रेटा जी से यह जानना चाहते हैं कि क्या वे पीएम मोदी के पर्यावरण के प्रति योगदान से परिचित भी हैं, या जितना वामपंथियों ने उन्हें रटा दिया है उतना ही पता है? भारत की मोदी सरकार ने बिजली की खपत को बचाने के लिए 35 करोड़ एलईडी बल्ब बँटवाए हैं। भारत में सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लग गया है। हमनें बायोफ्यूल के सहारे अपनी पहली टेस्ट फ्लाइट भी ली है और जल्द ही इस क्षेत्र में अग्रणी भी होंगे। हम मानव बालों और फसल के एग्री स्टबल से बायो फ्यूल बना रहे हैं। ग्रेटा को यह सब कहां से पता होगा! वह तो खुद एजेंडे का शिकार हैं।

यह विडंबना ही है कि एक तरफ एक 16 साल की लड़की अपने भविष्य को कथित रूप से तबाह करने के लिए कुछ राष्ट्राध्यक्षों को ‘हाउ डेयर यू’ बोलती है, वहीं दूसरी ओर वह खुद ऐसे एजेंडावादी राजनेताओं के हाथों में एक कठपुतली की तरह खेलती है जो उनके जरिये अपना प्रोपेगंडा चलाना चाहते हैं। ग्रेटा ने अपने भावुक भाषण में यह कहा कि इस वक्त उन्हें अन्य बच्चों की तरह खेलने का अवसर मिलना चाहिए था, लेकिन कुछ लोगों ने उनसे ये अवसर छीन लिया और उन्हें आज यूएन में खड़ा होकर यह भाषण देने की ज़रूरत पड़ रही है। जबकि सच्चाई यह है कि उन्हें अन्य बच्चों की तरह खेलने से कोई नहीं रोक रहा है। उनके माँ-बाप खुद उन्हें ऐसे राजनेताओं का राजनीतिक हथियार बनने को मंजूरी दे रहे हैं जिनका मकसद केवल और केवल पर्यावरण रक्षा की आड़ में अरबों-खरबों का घोटाला करना है।

भारत को ऐसे छद्म पर्यावरण एक्टिविस्ट से बच कर रहना चाहिए। भारत की सैकड़ो वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की परंपरा रही है। जिन सुधारों की आज विश्व बात कर रहा है वो हमारी संस्कृति का हज़ारों वर्षों से हिस्सा रही है। अब बस हमें फिर से उसे ही जागृत करने की आवश्यकता है।

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