‘मसान’ फिल्म से चर्चा में आए फ़िल्मकार नीरज घायवान एक बार फिर सुर्खियों में है, परंतु इस बार गलत कारणों से। उन्होंने हाल ही में एक ट्वीट पोस्ट इस ट्वीट के मुताबिक नीरज घायवान को अपने आगे के प्रोजेक्ट्स के लिए कुछ लोग चाहिए, जो विशेषकर DBA बैक्ग्राउण्ड से संबन्धित हों। डीबीए अर्थात अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंध रखने वाले लोग। जी हाँ, आपने ठीक सुना, अपने आगे के प्रोजेक्ट्स के लिए नीरज को पिछड़े वर्ग के ही लोग चाहिए।
https://twitter.com/ghaywan/status/1171648562142334976
फिर क्या था, इस अजीबोगरीब ट्वीट के लिए ट्विटर पर लोगों ने आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया और उन्होंने नीरज घायवान को इस पक्षपाती ट्वीट के लिए जमकर लताड़ा। एक यूज़र ने सीधे सीधे कह दिया कि यह तो जातिगत भेदभाव है, तो वहीं दूसरे यूज़र ने कहा, ‘ऐसे लोग अपने आप को मसीहा समझते हैं, और उनकी यही मानसिकता उनके समुदाय का उत्थान करने के बजाए उन्हें अलग-थलग कर देती है”।
स्वयं निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने भी नीरज को इस बयान के लिए उन्हें खरी-खोटी सुनाई और ये ट्वीट पोस्ट किया –
उन्होंने लिखा- ‘’दलित एक्टिविस्ट की जातिवादी कट्टरता वाले घायवान की यह शुरूआत ही बहुत खतरनाक थी, इससे प्रतिभा को खतरा पहुचं सकती है। मुझे आश्चर्य है कि उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि ‘द ताशकंद फाइल्स’ की नायिका एक अनुसूचित जाति की थी। लेकिन हमनें एक बार भी उसकी जाति का फायदा नहीं लिया।‘’
हालांकि नीरज घायवान को मानों इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ा, और उन्होंने आलोचना करने वालों को ही निशाने पर लेते हुये द वायर को दिये अपने इंटरव्यू में कहा, “मुझे समझ में नहीं आ रहा कि लोग इस पर इतनी तीव्र प्रतिक्रिया क्यों दे रहे हैं। ये तो मैंने अपने कार्यक्षेत्र में विविधता बढ़ाने के लिए किया है”। उन्होंने इसके लिए अमेरिका में कथित रूप से व्याप्त ‘ब्लैक सिनेमा’ का हवाला भी दिया।
कल्पना कीजिये यदि ये बात नीरज घायवान ने नहीं बल्कि नीरज पाण्डेय ने कही होती, और यहाँ पर केवल पिछड़ी जाति के कलाकारों की नहीं, बल्कि ब्राह्मण जाति के कलाकारों की मांग हुई होती, तो अब तक नीरज घायवान जैसे ही लोग आसमान सिर पर उठा लेते, और अब तक मीडिया इसे ‘आरएसएस और भाजपा की साजिश’ घोषित कर ‘इंटोलेरेन्स’ का राग अलापने लगती। चूंकि यहाँ पिछड़ी जाति के लोगों को विशेष रूप से तरजीह दी जा रही, इसलिए सब चलता है, है कि नहीं?
क्या ऐसे ऐड संविधान के आर्टिकल 15 का उल्लंघन नहीं करते? संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। ऐसे में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लेखकों और फ़िल्मकारों को निमंत्रण देकर क्या नीरज घायवान उसी जातिगत भेदभाव को बढ़ावा नहीं दे रहे, जिसके विरुद्ध वे काफी समय से खड़े रहे हैं? या फिर इस प्रकार का भेदभाव उनके लिए उचित है? ऐसे दोहरे मापदंड का क्या लाभ है नीरज बाबू?
हालांकि हम भूल रहे हैं कि ये वही नीरज घयवान हैं, जिन्होंने अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवाने के साथ मिलकर सेक्रेड गेम्स के दूसरे सीज़न के कुछ एपिसोड निर्देशित किए थे। इस वेब सिरीज़ में हिन्दू विरोध, विशेषकर ब्राह्मणों के प्रति घृणा अपने चरम सीमा पर थी, और इसमें निर्देशकों और लेखकों का निजी एजेंडा स्पष्ट दिखाई दे रहा था, जिसके कारण कई लोग इस वेब सिरीज़ से काफी नाराज़ थे। ऐसे में यदि नीरज इस तरह के विज्ञापन छापे, तो किसी को भी हैरानी नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने तो मोदी विरोध के नाम पर अपने एजेंडे को खुद ही उजागर कर दिया, जब एक ट्विटर यूज़र ने सेक्रेड गेम्स के दूसरे सीज़न (Sacred Games 2) में ज़बरदस्ती ठूँसे गए एक मॉब लिंचिंग को आइटम सॉन्ग के माफिक अनावश्यक बताया। ऐसे में नीरज घयवान के इस प्रोपेगेंडावादी स्वभाव की जितनी निंदा की जाए, वो कम होगी।