अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में 24 अगस्त को भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का 66 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। उनके निधन के बाद देश की तमाम बड़ी राजनीतिक हस्तियों ने अपना शोक प्रकट किया था। उनको श्रद्धांजलि के रूप में दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ यानी डीडीसीए ने 28 अगस्त को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम का नाम बदलकर उसे अरुण जेटली स्टेडियम के नाम पर रखने का भी फैसला लिया था। इसके बाद कल यानी शनिवार को एनडीए ने दिवंगत नेता जेटली जी की याद में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री ने उनको लेकर कई घोषणाएँ की। अरुण जेटली नीतीश कुमार के एक बेहद करीबी माने जाते थे, और एनडीए में नीतीश कुमार के शामिल होने की सबसे बड़ी वजह अरूण जेटली ही थे।
श्रद्धांजलि सभा में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा करते हुए कहा कि पटना में अरुण जेटली की एक प्रतिमा को स्थापित किया जाएगा और इसके साथ ही उनके जन्मदिवस को बिहार में राजकीय समारोह के रूप में मनाया जायेगा। नीतीश कुमार ने बिहार में एनडीए सरकार के गठन में अरूण जेटली की भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि उनके साथ उनका एक विशेष सम्बंध रहा है। सीएम नीतीश ने यह भी कहा कि बिहार भाजपा के प्रभारी बनने के बाद अरूण जेटली के नेतृत्व में विधानसभा के दो चुनाव हुए उसमें उनकी भूमिका कोई नहीं भुला सकता। इस दौरान नीतीश कुमार कई बार भावुक भी हुए।
अरुण जेटली बिहार के नहीं थे, लेकिन बीते 20 वर्षों में उनका राज्य की राजनीति से गहरा जुड़ाव रहा। भाजपा-जदयू की दोस्ती के बीच वे गारंटर की तरह रहे। जब कभी दोनों दलों के बीच किसी मुद्दे पर तकरार हुई, जेटली ने मध्यस्थ बनकर उसका समाधान किया। बता दें कि नीतीश कुमार को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने में भी अरुण जेटली का अप्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ा योगदान रहा है। नीतीश कुमार के प्रतिद्वंधी लालू प्रसाद यादव को जेल में पहुंचाने में जेटली की बहुत बड़ी भूमिका रही थी। शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि अगर अरुण जेटली ना होते तो ना चारा घोटाले की सीबीआई जांच हो पाती और ना लालू यादव जेल जाते। इससे पहले नीतीश 2005 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, और इस दौरान भी इसके लिए जेटली ने कड़ी मेहनत की थी। भाजपा के कुछ नेताओं के अलावा जदयू के कुछ दिग्गज भी इस राय के थे कि मुख्यमंत्री की घोषणा चुनाव परिणाम के बाद होगी। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम ही थी। उस दौर में अरुण जेटली पहाड़ की तरह नीतीश के पक्ष में खड़े हुए। अंतत: नवम्बर 2005 में नीतीश कुमार की अगुआई में ही राज्य में सरकार बनी थी, और नीतीश कुमार राज्य के सीएम बने थे।
वह नीतीश कुमार और अरुण जेटली की दोस्ती ही थी जिसके कारण नोटबंदी के बाद नीतीश ने खुलेतौर पर भाजपा के इस कदम का समर्थन किया था। उस वक्त नीतीश कुमार विपक्ष के एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने नोटबंदी का समर्थन किया था।
अरुण जेटली के निधन पर सीएम नीतीश ने कहा था कि यह उनका व्यक्तिगत नुकसान है। बिहार की राजनीति में उनका बड़ा योगदान रहा है, और यही कारण है कि नतीश कुमार ने अब पटना में उनकी प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की है। उनकी प्रतिमा अब सभी को बिहार की राजनीति में अरुण जेटली के सकारात्मक योगदान का स्मरण कराती रहेगी।