रूस के शहर व्लादीवोस्टक के फार ईस्टर्न फेडरल यूनिवर्सिटी कैम्पस में 4 से 6 सितंबर तक ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम का आयोजन किया जा रहा है, और इस फोरम में अब की बार मुख्य अतिथि के तौर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है। पीएम मोदी इस फोरम में हिस्सा लेने के लिए व्लादीवोस्टक पहुंच भी चुके हैं और इस दौरान दोनों देश अपने द्विपक्षीय रिश्तों को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। बता दें कि ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम का आयोजन वर्ष 2015 से रूस के इसी शहर में किया जाता रहा है और इसका मकसद रूस के सबसे पूर्वोतर के हिस्सों में विकास के लिए विदेशों से निवेश जुटाना है। रूस का पूर्वी इलाका अभी इतना विकसित नहीं हुआ है और यहां का इनफ्रास्ट्रक्चर भी इतना अच्छा नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र में प्रचूर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं।
प्राकृतिक संसाधन काफी मात्रा में होने की वजह से चीन पहले ही रूस के इस इलाके में निवेश कर चुका है, और भविष्य में भी इस क्षेत्र को लेकर उसकी कई महत्वकांक्षाएं हैं, लेकिन अपने पूर्व के इलाकों में चीन के बढ़ते दखल की वजह से रूस कुछ हद तक चिंतित भी है। चीन इस क्षेत्र में निवेश तो करता है, लेकिन यहां पर इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टस के विकास के लिए वह चीन से ही मजदूरों को लेकर जाता है और इसका रूस की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा पश्चिमी देशों के साथ भी रूस के संबंध इतने मधुर नहीं है, इसलिए चीन और जापान जैसे देश ही रूस के पूर्वोत्तर इलाकों में निवेश करने को आगे आए हैं। हालांकि, यहां रूस को डर है कि चीन पर उसकी निर्भरता कहीं ज़रूरत से ज़्यादा न बढ़ जाए, इसलिए अब वह भारत जैसे देशों की ओर रुख कर रहा है।
चीन और रूस के सम्बन्धों में पिछले कुछ समय में मधुरता आई है, और दोनों देशों के बीच व्यापार भी बढ़ा है, लेकिन इसके बावजूद रूस के पूर्वोत्तर इलाकों में रूस के हितों को दरकिनार करने वाले चीनी प्रोजेक्ट को लेकर दोनों देशों में तनाव बढ़ने की आशंका है। इसके साथ ही रूस और चीन मध्य एशिया में प्रभुत्व जमाने की कोशिश भी कर रहे हैं और इसको लेकर दोनों देशों के हितों का टकराव हो सकता है। यही वजह है कि अब रूस भारत को भविष्य के एक विश्वासपात्र साझेदार के रूप में देख रहा है और भारत को रूस में निवेश के लिए आमंत्रित कर रहा है। भारत और रूस अगर चाहें तो आपसी साझेदारी की बदौलत एक दूसरे की मदद भली-भांति कर सकते हैं।
अगर भारत रूस के पूर्वोत्तर इलाकों में निवेश करता है तो इससे ना सिर्फ भारत का रूस में प्रभाव बढ़ेगा बल्कि भविष्य में भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में भी यह काफी मदद करेगा। यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है और रूस चाहता है कि वह भारत के साथ मिलकर इस इलाके के संसाधनों के निष्कर्षण में सहयोग करे। इसके अलावा भारत के पास ऐसा करने की क्षमता भी है। भारत आर्थिक और राजनीतिक तौर पर इतना सक्षम है कि वह पश्चिमी देशों द्वारा रूस के अंतर्राष्ट्रीय बहिष्कार के बावजूद उसके कुछ इलाकों में निवेश कर सकता है। भारत के पास रूस को उपलब्ध कराने के लिए सस्ती दरों पर काम करने वाले मजदूर भी हैं जो ना तो चीन के पास हैं और ना ही रूस के पास।
पीएम मोदी की इस यात्रा के दौरान रूस और भारत के बीच कुल 25 समझौतों पर हस्ताक्षर होने हैं। ऐसा करके ना सिर्फ भारत और रूस के रिश्तों में मजबूती आएगी, बल्कि भारत की भविष्य की जरूरतों को भी पूरा किया जा सकेगा। रूस भारत के साथ अपने आर्थिक रिश्तों को बढ़ावा देना चाहता है और इसी दिशा में दोनों देशों द्विपक्षीय व्यापार को वर्ष 2025 तक 30 बिलियन यूएस डॉलर तक ले जाना चाहते हैं और इसमें दोनों देशों का ही फायदा होगा। अभी रूस चीन के साथ बड़ी मात्रा में व्यापार करता है लेकिन चीन के साथ रूस का ट्रेड डेफ़िसिट है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2016 में चीन को रूस ने 28 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एक्सपोर्ट किया था जबकि इसी दौरान चीन से रूस ने 38 बिलियन डॉलर का इम्पोर्ट किया था।
अपनी रूस यात्रा से पीएम मोदी जहां एक ओर भारत और रूस के आर्थिक सम्बन्धों को और ज़्यादा मजबूत करने का काम करेंगे तो वहीं दूसरी ओर दो बड़े वैश्विक नेताओं की मुलाक़ात से ग्लोबल पॉलिटिक्स और जियोपॉलिटिक्स पर भी बड़ा असर देखने को मिलेगा। पीएम मोदी को इस वर्ष के ‘ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम’ में एक मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जाना इस बात को भी दर्शाता है कि भारत की आर्थिक क्षमता को अब दुनिया के सभी देश स्वीकार कर रहे हैं और हर कोई भारत में अपार आर्थिक संभावनाओं को पहचान चुका है। पिछले दिनों जी7 में भारत को निमंत्रण दिया जाना भी इसी बात का एक सबूत था। ये पिछले 5 सालों में पीएम मोदी की सफल कूटनीति का ही नतीजा है कि अब हर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर भारत के पक्ष को भी गौर से सुना जाता है और रूस जैसी महाशक्तियां भारत के साथ अपने रिश्तों को महत्व दे रही हैं।