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बॉलीवुड सितारों और खिलाड़ियों की तरह ही भारतीय वैज्ञानिकों को भी मिलना चाहिए सम्मान

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
21 September 2019
in Uncategorized
वैज्ञानिकों
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि हमारे देश में वैज्ञानिक जिस सम्मान के हकदार हैं वो उन्हें नहीं मिलता है। देश के लिए वे बेहद अहम संपत्ति हैं। रक्षा अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान यानी DRDE के एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री ने कहा कि लोगों को वैज्ञानिकों के योगदान के बारे में पता ही नहीं है। वैज्ञानिकों को वो सम्मान नहीं मिलता, जिसके वे हकदार हैं। डीआरडीई के वैज्ञानिकों के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों का योगदान आर्मी, नेवी या एयर फोर्स से किसी मायने में कम नहीं है। जिस तरह सेना देश की रक्षा करती है, उसी तरह वैज्ञानिक भी दश को सुरक्षित रखते हैं। राजनाथ सिंह के इन शब्दों को सुनकर जरुर ही आपके मन में भी ये बात उठी होगी कि आखिर हमारे देश के वैज्ञानिकों को वो सम्मान क्यों नहीं मिलता है या वो नाम क्यों नहीं मिलता है, जो खेल और बॉलीवुड से संबंध रखने वालों को मिलता है?

अक्सर देखा गया है कि भारत के प्रखर वैज्ञानिक और इंजीनियर दूसरे देश पलायन कर जाते हैं। इसके दो प्रमुख कारण हैं पहला यह कि भारत में शोध करने के लिए परिस्थितियां कठिन है, चाहे वह आर्थिक परिस्थिति हो या उपकरण या  शोधशाला की कमी। दूसरा और बहुत आम कारण यह है कि भारत में वैज्ञानिक या यूं कहे कि नए प्रवर्तकों को वह सम्मान, प्रशंसा और शोध करने की स्वतंत्रता नहीं मिलती जो उन्हें चाहिए होती है।

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कई ऐसे वैज्ञानिक हैं जिन्होंने भारत से पलायन करने के बाद अपने आविष्कारों से दुनिया को मुट्ठी में किया है। उदाहरण के तौर पर हॉटमेल का आविष्कार करने वाले सबीर भाटिया को ही देख लीजिये, जिनका जन्म भारत के चंडीगढ़ में हुआ था। लेकिन उन्होंने अमेरिका में जाकर हॉट मेल को विकसित किया। फिर एमआईटी ने उन्हें 100 युवा नवप्रवर्तकों में चुना जो प्रौद्योगिकी पर सबसे अधिक प्रभाव डालते हैं और उन्हें एमआईटी केTR100 पुरस्कार से सम्मानित किया। वहीं एक और अमेरिका में रहने वाले भारतीय अजय भट्ट हैं, जिन्होंने यूएसबी (यूनिवर्सल सीरियल बस) ड्राइव का आविष्कार किया था। उनका जन्म भारत में ही हुआ था और उन्होंने स्नातक भी यहीं से किया लेकिन फिर वह अमेरिका चले गए। आज उनके नाम से 132 अमेरिकी और अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट हैं, और कई अन्य पेटेंट लाइन में है। परन्तु सवाल ये उठता है कि आखिर हमारे भारतीय अविष्कारक या खोजकर्ता देश से बाहर जाकर ही अपनी प्रतिभा के लिए क्यों पहचाने जाते हैं? इस सवाल को समझेंगे लेकिन उससे पहले आपको बताएंगे कि हमारे देश में अविष्कारक और खोजकर्ताओं को भले ही आज के समय में वो पहचान न मिलती हो लेकिन पहले के समय में ऐसा नहीं था।

भारत में आदि काल से ही आविष्कारकों और प्रवर्तकों को सम्मान मिला है लेकिन अंग्रेजों की बिगाड़ी गयी शिक्षा पद्धति और अपनी भाषा को लेकर पैदा की गयी हीन भावना ने इस देश को शताब्दियों पीछे धकेल दिया। उदाहरण के तौर पर ‘विश्वकर्मा’ को सनातन धर्म में भगवान का दर्जा दिया गया है जो अन्य देवों के लिए अस्त्र-शस्त्र और भवन का निर्माण करते हैं। वहीं महाभारत का उदाहरण देखा जाए तो स्वयं युधिष्ठिर ने सहस्रों महामना स्नातक ब्राह्मणों को समाज में उच्च स्थान दे रखा था और उनके शोध का खर्च भी युधिष्ठिर स्वयं उठाते थे। महाभारत के शान्ति पर्व अध्याय 45 में इसका वर्णन मिलता है। इस अध्याय में यह उल्लेखित है कि कुंती पुत्र युधिष्ठिर ने राज्य प्राप्त करने के बाद सबसे पहले चारों वर्णों को योग्यतानुसार उचित स्थान और मान दिया। तत्पश्चात् सहस्रों महामना स्नातक ब्राह्मणों में से प्रत्येक को पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर ने एक-एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ दिलवायीं।

यही नहीं आगे भी भारत के इतिहास में जिसे ‘गुप्तकाल’ या ‘स्वर्णयुग’ के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। तब मगध स्थित नालन्दा विश्वविद्यालय ज्ञानदान का प्रमुख और प्रसिद्ध केंद्र हुआ करता था। एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद और गणितज्ञ थे जिन्होंने आर्यभटीय नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। आर्यभट ने वर्तमान के उन्नत साधनों के बिना ज्योतिषशास्त्र से जुड़ी जो खोज की थी,यह उनकी महानता को दर्शाता है।

पोलैंड के खगोलशास्त्री निकोलस कोपरनिकस (1473 से 1543 ई.) ने जो खोज की थी उसकी खोज आर्यभट हजार वर्ष पहले ही कर चुके थे। वराहमिहिर (वरःमिहिर) भी उसी कालखंड के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। कुसुमपुर (पटना) जाने पर युवा मिहिर महान खगोलज्ञ और गणितज्ञ आर्यभट्ट से मिले। इससे उन्हें इतनी प्रेरणा मिली कि उन्होंने ज्योतिष विद्या और खगोल ज्ञान को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। उस समय उज्जैन विद्या का केंद्र था। गुप्ता शासन के अन्तर्गत कला, विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में भारत ने अनेकों उपलब्धियां देखि थीं। इसके बाद विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपने दरबार के नवरत्नों में वराहमिहिर और आर्यभट को शामिल कर लिया। मिहिर ने सुदूर देशों की यात्रा की, यहां तक कि वह यूनान तक भी गये। वैसे ही भास्कर प्रथम और ब्रह्मगुप्त भी उसी कालखंड के ज्योतिषाचार्य रहे जिन्होंने कई खोज किये। इसी तरह चिकित्सा के क्षेत्र में सुश्रुत, रसायन विज्ञान में नागार्जुन और भौतिक विज्ञान में ऋषि कनाड का नाम आता है। वैसे मध्यकालीन भारत में भी प्रवर्तकों को प्रोत्साहन मिला जिससे वह नई-नई तकनीक विकसित करने में सफल रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्र पं॰ जवाहरलाल नेहरू ने देश के वैज्ञानिकों के विकास के लिए लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण यानी साइंटिफिक टेम्पर जगाने का संकल्प लिया। अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण ही उन्होंने इस कार्य को डॉ॰ शांतिस्वरूप भटनागर को सौंप दिया। इसी कड़ी में जगदीश चंद्र बोस, भारतीय भौतिक-शास्त्री सी.वी. रमन, डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा, विक्रम सराभाई जैसे वैज्ञानिक हुए जिन्होंने भारत में रहते हुए कई नई तकनीकों का आविष्कार किया। इन सभी के अविष्कारों को भारत में पहचान मिली और नाम भी लेकिन समय के साथ भारतीय वैज्ञानिक बॉलीवुड और खेल की चमक धमक में कहीं खोने से लगे। सरकारी नीतियों में खामियां कहिये या बदलते वक्त के साथ वैज्ञानिकों के प्रति लोगों की उदासीनता कहिये, जो भी था हमारे प्रतिभावान वैज्ञानिक देश से पलायन करने को मजबूर होने लगे।

आज भारतीय मूल के लगभग एक मिलियन वैज्ञानिक और इंजीनियर अमेरिका में रहते हैं। अमेरिका में आप्रवासी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की संख्या 16 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत हो गई है। बता दें कि हर साल लाखों की संख्या में वैज्ञानिक और इंजीनियर अमेरिका जाते हैं, जिनमें लगभग 10 लाख वैज्ञानिक और इंजीनियर भारत के ही मूल निवासी होते हैं। भारत से पलायन के इस आंकड़े में  2003 से वर्ष 2013 में 85% की वृद्धि देखि गयी थी। भारत में इस ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन) के कई कारक हैं और इनमें से प्रमुख हैं:

-बाहरी देशों में बहुत अधिक वेतन का मिलना।

-भारत में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का अभाव होना।

-शिक्षा और कौशल का उपयोग करने के लिए रास्ते की अनुपलब्धता होना।

-विदेश में बेहतर और आरामदायक जीवनशैली का होना।

-लगातार नई तकनीकों को सीखने और कौशल उन्नयन की अधिक संभावनाएं होना।

परन्तु जो एक और महत्वपूर्ण कारक है वह है लोकप्रियता और सेलिब्रेटी स्टेटस जो हमारे देश के क्रिकेट खिलाड़ियों या फिल्मी कलाकारों को मिलता है। भारत में हमारे वैज्ञानिकों को वो पहचान और महत्व नहीं मिलती जो उन्हें बाहरी देशों में मिलती है। अमेरिका को ही देख लीजिये जो अपने यहां अविष्कार करने वालों और नई खोज करने वालों को न केवल सम्मान देता है, बल्कि उन्हें हर वो सुविधा देता है जिससे वहां काम करने वाले वैज्ञानिकों को पहचान भी मिलती है और उनके काम को महत्व भी मिलता है।

हालांकि, अब देश बदल रहा है, देश की सोच बदल रही है और हमारे वैज्ञानिकों को अब पहचान मिलनी शुरू हो रही है। वर्ष 2014 में केन्द्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में बताया था कि नई सरकार न केवल वैज्ञानिकों को बेहतर काम करने का माहौल उपलब्ध करा रही है, बल्कि उन्हें आकर्षक पैकेज भी दिए जा रहे हैं। वर्तमान सरकार के प्रयास जमीनी स्तर पर नजर भी आ रहे हैं तभी तो कई प्रवासी वैज्ञानिक भारत लौटने का आवेदन भी करने लगे हैं।

ज्यादा दूर भी क्यों जाना, अभी हाल के ही उदाहरण देख लीजिये, चंद्रयान 2 मिशन के तहत विक्रम लैंडर की चन्द्रमा पर लैंडिंग को लेकर पूरे देश में एकता दिखी थी। यही नहीं इसरो के योगदान पर जिस तरह पूरा देश उनके साथ था वो आज के समय में महत्वपूर्ण उदाहरण है। यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाया था। अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसी मुद्दे पर अपने बयान में जोर दिया है।

इसी तरह से आगे भी देश में वैज्ञानिकों और नए प्रवर्तकों को प्रोत्साहन देने कि आवश्यकता है। इससे वह भारत में ही रहकर शोध करने और भारत के नाम पर ही अपने आविष्कारों को पेटेंट करने पर जोर देंगे जिससे देश का नाम रौशन हो। इसके लिए आवश्यकता है कि चंद्रयान 2 मिशन की तरह ही देश में वैज्ञानिकों की सफलताओं को सम्मान दिया जाए और महत्व भी दिया जाए ।उनकी सफलताओं को उत्साह के साथ मनाया जाए तथा नए-नए वैज्ञानिक खोज के लिए माहौल के साथ-साथ जरुरी सुविधायें देने की भी आवश्यकता है।

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