चुनावो से पहले का दंगल खत्म होते ही अब महाराष्ट्र में चुनावों के बाद वाला दंगल शुरू हो चुका है। लड़ाई है सीएम की कुर्सी की और मैदान में हैं एक दूसरे के साथी शिवसेना और भाजपा। भाजपा इस बात पर अड़ी है कि पांच सालों के लिए सीएम की कुर्सी पर भाजपा का नेता ही बैठेगा, वहीं शिवसेना चाहती है कि दोनों पार्टियों में ढाई-ढाई सालों के लिए सीएम की कुर्सी का बंटवारा हो। अब सवाल यहां यह है कि आखिर इस दंगल का अंत कब होगा? यह शिव सेना भी जानती है कि भाजपा बिना उसका गुजारा नहीं और सीएम फडणवीस पांच सालों के लिए सीएम बने रहने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। वहीं भाजपा के एक नेता ने अब यह भी दावा किया है कि शिवसेना के अधिकतर विधायक भाजपा के संपर्क में है जो भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते हैं। इस खबर ने जरुर ही शिवसेना को बड़ा झटका दिया होगा, जो भाजपा पर दबाव बनाने के भरपूर प्रयास कर रही है ताकि उसकी पार्टी के एक बड़े चेहरे को सीएम की कुर्सी पर बैठा सके। ऐसे में शिव सेना के लिए यही अच्छा रहेगा कि वह अपने बड़े भाई ‘भाजपा’ के कहे अनुसार सीएम पद को पांच सालों के लिए भाजपा के हवाले कर दे।
बता दें कि महाराष्ट्र में भाजपा और शिव सेना के गठबंधन को कुल 161 सीटें मिली हैं, इनमें से 105 बीजेपी और 56 शिवसेना के पास है। यानि बिना शिवसेना के भाजपा भी सरकार नहीं बना सकती। वहीं पिछले दिनों सीएम फडणवीस ने ऐलान किया था कि आने वाले पांच सालों के लिए सीएम वही रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि शिवसेना के साथ सीट बंटवारे को लेकर 50-50 फॉर्मूला पर बात हुई थी, और इसमें सीएम पद का कोई उल्लेख नहीं था। वहीं इस बयान पर शिवसेना का भी तुरंत जवाब आया था, शिवसेना के नेता संजय राऊत ने कहा था कि वे सिर्फ अपना हक मांग रहे हैं और देवेन्द्र फडणवीस अपने वादे से मुकर रहे हैं।
शिवसेना को अपने 56 विधायकों का घमंड है और इसी के चलते वह भाजपा की मजबूरी का फायदा उठाना चाहती है। हालांकि, कल भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय काकड़े ने बड़ा दावा कि शिव सेना के 56 विधायकों में से 45 विधायक भाजपा के संपर्क में है, और वे भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते हैं। राज्यसभा सांसद ने कहा “शिव सेना के 56 में से 45 विधायक भाजपा के साथ सरकार बनाना चाहते हैं, वह लगातार कॉल कर रहे हैं और कह रहे हैं कि सरकार में उन्हें भी शामिल किया जाए”। भाजपा ने सीधे शब्दों में शिव सेना को संकेत दिए हैं कि गठबंधन की सरकार बनाने में ज्यादा नखरे न दिखाए और ‘छोटे भाई’ की भूमिका अदा करे। अगर सांसद की बात को सच मान लिए जाये तो यदि शिव सेना भाजपा से अलग होकर सरकार बनाने के विकल्प पर विचार करती भी है तो ये सभी विधायक पार्टी से अलग होकर भाजपा के साथ आ सकते हैं जिससे शिवसेना पर अस्तित्व का संकट आ सकता है। ऐसे में यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भाजपा से अलग होना शिव सेना की ऐतिहासिक भूल साबित हो सकती है।
सूत्रों के मुताबिक, अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के बीच जल्द ही कोई मुलाक़ात हो सकती है जिसके बाद यह मामला सुलझ सकता है। वहीं यह भी साफ है कि भाजपा किसी भी सूरत में सीएम पद के शेयरिंग पर विचार नहीं करेगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में शिवसेना भाजपा के सामने घुटने टेकती है या नहीं, और वह किन शर्तों पर पांच सालों के लिए सीएम पद भाजपा को सौंपने पर सहमत होगी।