अब से कुछ हफ्तों के बाद ही महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और पलड़ा पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में भारी दिखाई दे रहा है। जातिगत दृष्टिकोण की बात हो या राजनीतिक परिस्थितियों की, हर चीज़ भाजपा के पक्ष में ही दिखाई दे रही है और ऐसा मुख्यमंत्री फडणवीस के सफल नेतृत्व की वजह से ही हो पाया है। आज राज्य में भाजपा की जो इतनी मजबूत पकड़ दिखाई दे रही है, ये सब उसी का नतीजा है। हालांकि, राज्य में भाजपा के लिए मुश्किलें कोई कम नहीं थीं। राज्य में लगभग 30 प्रतिशत जनसंख्या वाले मराठा समुदाय का कांग्रेस और एनसीपी के समर्थन में होना हो, या फिर भाजपा के साथ होकर भी पार्टी के खिलाफ बोलने वाली शिवसेना के बेरूखे तेवर, कई बार भाजपा के सामने बड़ी मुश्किलें आयीं, लेकिन मुख्यमंत्री फडणवीस ने इन मुश्किलों का बखूबी सामना किया और आज आलम यह है कि पार्टी को चुनावों की कोई चिंता ही नहीं है।
महाराष्ट्र में ऐसा होता आया है कि मराठा समुदाय से आने वाले व्यक्तियों को ही मुख्यमंत्री बनाया जाता है। परन्तु भाजपा ने चुनाव जीतने के बाद देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाया था जो कि ब्राह्मण हैं। सभी विपक्षी पार्टियों को इसको लेकर भाजपा पर हमला बोलने का सुनहरा अवसर मिल गया था। इसके अलावा मराठा आरक्षण की मांग भी तेज़ी से उठ रही थी जिसका फायदा उठाकर कांग्रेस और एनसीपी मराठा समुदाय को भाजपा के खिलाफ करना चाहते थे। हालांकि, फडणवीस ने इस समस्या का बड़े ही शानदार तरीके से सुलझाया।
वर्ष 2016 में भाजपा ने छत्रपति शिवाजी और राजर्षि शाहू महाराज के वंशज संभाजी राजे को राज्य सभा के लिए नॉमिनेट कर मराठा समुदाय को लुभाने की पूरी कोशिश की। संभाजी राजे के नॉमिनेशन के जरिए भाजपा ने मराठा बहुल पश्चिमी महाराष्ट्र में उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की थी। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण भी दिया, जिसके बाद काफी हद तक सरकार मराठाओं को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही। हालांकि, अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका है, लेकिन फडणवीस सरकार ने इस समस्या को सही तरीके से हल करके इसको अवसर में बदला।
इसके अलावा महाराष्ट्र में भाजपा के सामने शिवसेना नाम की भी एक बड़ी मुश्किल थी। शिवसेना भाजपा के साथ रहते हुए भी लगातार भाजपा विरोधी बयान दे रही थी। हालांकि, भाजपा ने शिवसेना के साथ बड़ी ही चालाकी से डील किया। शिवसेना को अपने साथ रखने के लिये पार्टी ने शिवसेना के नेताओं को सरकार में ऊंचे पदों का लालच दिया, इसके साथ ही शिवसेना में यह डर भी बैठा दिया कि अगर शिवसेना भाजपा से अलग होती है तो इससे पार्टी टूट सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि शिवसेना के कई नेता भी ठाकरे से ज़्यादा फडणवीस से ही प्रभावित दिखाई देते हैं। शिवसेना के नेता भी जानते हैं कि जमीनी स्तर पर भाजपा की पकड़ बहुत मजबूत है। यही कारण है कि भाजपा ने अपने आप से ही 164 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया, और शिवसेना को बाद में बची-कुची 124 सीटों पर लड़ने के लिए ही संतुष्ट होना पड़ा।
पिछले पाँच सालों के दौरान राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य में विकास के लिए आगे बढ़ कर कार्य किया है। सूखे से निपटने की बात हो या महाराष्ट्र को हाइपर लूप जैसी तकनीक के लिए हामी भरना हो, देवेंद्र फडणवीस ने त्वरित निर्णय लिए हैं जिससे वहाँ की जनता भी भाजपा से खुश नज़र आ रही है। उन्हीं के मजबूत नेतृत्व का नतीजा है कि आज भाजपा को राज्य में कोई बड़ी मुश्किल नहीं है और पार्टी आराम से सत्ता में वापसी की आस में है।