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अयोध्या में धारा 144 लागू, CJI रंजन गोगोई इस बार बड़ा फैसला सुनाने की तैयारी में हैं

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
14 October 2019
in मत
राम मंदिर अयोध्या

PC: India TV

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अयोध्या! मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र की राजधानी। इक्ष्वाकु कुल के सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी। वेदों में इस नगर को ईश्वर का नगर बताया गया है। अथर्ववेद में कहा गया है “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” यानि आठ चक्रों और नौ द्वारों वाली अयोध्या दिव्य गुणों से युक्त परम भागवत स्वरूपों देवों की नगरी है। लेकिन इसी राम जन्मभूमि पर वर्षों से विवाद है और आज भी रामलला एक मंदिर की जगह एक टेंट के अंदर विराजमान है।

लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व में इस विवाद का निपटारा हो जाएगा और राम लला को उनका जन्मस्थान देवालय के रूप में मिल सकता है। दशहरा के हफ्ते भर की छुट्टी के बाद सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई आज अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। आज सुनवाई का 38वां दिन है। अभी तक की सुनवाई और तथ्यों को देखते हुये यही कहा जा सकता है कि हिन्दू पक्ष की दलील मजबूत है और अंतिम फैसला भी हिंदू पक्ष में आएगा।

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अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने से पहले अयोध्या में धारा-144 लगा दी गई है। अयोध्या के डीएम की ओर से जारी आदेश के अनुसार अब शहर में चार से ज्यादा लोग एक जगह पर इकट्ठे नहीं हो सकते। इसके साथ ही जिले में ड्रोन के इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा दी गई है।

Here is the order under section 144 issued yesterday. The order has been issued considering safety and security of Ayodhya and those visiting here as Govt’s paramount concerns. Thanks. pic.twitter.com/hyXHJHWJbv

— Anuj Kr Jha (@anujias09) October 13, 2019

स्वतन्त्रता के बाद चले आ रहे इस विवाद को कई राजनीतिक और न्यायिक रुकावटों का सामना करना पड़ा, लेकिन आखिरकार मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपने सेवानिवृत्ति से पहले इस मुद्दे को सुलझाने की दृढ़ता दिखाई है। अयोध्या भूमि विवाद का इतिहास काफी पुराना रहा है। 6 दिसंबर 1992 को विवादास्पद ढांचा गिराए जाने के सैकड़ों साल पहले से ही इसके विवाद की जड़ें गड़ी हुई हैं। लेकिन 1 अप्रैल 2002 को अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की थी।

मंदिर और मस्जिद के प्रमाण के लिए 5 मार्च 2003 को इलाहबाद हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अयोध्या में खुदाई का निर्देश दिया। इसके बाद 22 अगस्त, 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई के बाद इलाहबाद हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में कहा गया कि मस्जिद के नीचे 10वीं सदी की मंदिर के अवशेष मिले हैं। हालांकि, इस रिपोर्ट को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कोर्ट में चुनौती दी। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा, इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया गया। लेकिन 9 मई 2011 सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की अपील की थी लेकिन फिर से अक्टूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनाई पर इन्कार करते हुए केस जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया। यह जानना दिलचस्प है कि कांग्रेस, वामपंथी इतिहासकार और AIMIM जैसे इस्लामिक हितैषी दलों ने लंबे समय से राम मंदिर निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही कानूनी प्रक्रिया को कमजोर करने की कोशिश की।

इसी वर्ष 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता और जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमना, यूयू ललित और डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में मामले की सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ गठित की। 25 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। इसमें चीफ जस्टिस गोगोई और जस्टिस बोबड़े, चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एसए नाजेर शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च 2019 को बड़ा कदम उठाते हुए विवादित भूमि के सभी पक्षों से बात करने के लिए तीन सदस्यों वाली मध्यस्थता कमेटी का गठन किया जिससे इस विवाद को सुलझाया जा सके। इस कमेटी के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एफएमआई खलीफुल्ला थे। दो अन्य सदस्य आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2 अगस्त को अयोध्या मामले पर सुनवाई करते हुए 6 अगस्त से नियमित सुनवाई करने का निर्णय लिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि मध्यस्थता पैनल किसी भी नतीजे पर पहुंचने में असफल रही है। जब तक सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक रोजाना इसकी सुनवाई की जाएगी। यहीं से इस विवाद के निपटारे की उम्मीद जागी और पूरी संभावना है कि अयोध्या भूमि विवाद पर 17 नवंबर से पहले फैसला आ जाएगा। दरअसल, मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि इस मामले पर 17 नवंबर से पहले फैसला आ जाएगा।

सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों के खिलाफ उपलब्ध सबूतों के बावजूद 9 साल की देरी और चूक के बाद, अयोध्या मामले में कार्यवाही पटरी पर आती दिख रही है। पूर्व CJI दीपक मिश्रा ने मामले में अधिकांश बाधाओं को पहले ही खत्म कर दिया था। इसके बाद मध्यस्थता की कार्यवाही सहित कई बाधाओं को भी निपटा दिया गया है। सुनवाई के 37वें दिन समापन पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने लंबी बहस के अंतिम चरण का कार्यक्रम तय किया था। पीठ ने कहा था कि मुस्लिम पक्ष 14 अक्टूबर तक दलीलें पूरी करें और उसके बाद हिंदू पक्षकारों को दो दिन का समय दिया जाएगा, और 17 अक्टूबर इस सुनवाई का अंतिम दिन होगा। अब जैसे-जैसे आखिरी सुनवाई की तारीख करीब आ रही वैसे-वैसे रामलला को उनका मंदिर मिलना तय लग रहा है। उम्मीद है कि मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई वर्षों से चले आ रहे इस विवाद को सुलझा कर रामलला को उनका अधिकार देंगे।

भगवान राम ने स्वयं कहा था ‘अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’ यानी हे लक्ष्मण, होगी लंका सोने की लेकिन यह जो सरयू किनारे मेरी जन्मभूमि है, जहां मैं पैदा हुआ, वह मेरी मातृभूमि मेरे लिए स्वर्ग से भी बढ़ कर है।

Tags: अयोध्याबाबरी मस्जिदरंजन गोगोईराम मंदिरसुप्रीम कोर्ट
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