दुर्गा पूजा का भारत में अहम स्थान है और देश के हर कोने में इस त्योहार को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल का कोलकाता शहर तो इस त्योहार को बड़े धूम-धाम से मनाता आया है जहां दुर्गा पूजा की तैयारी कई महीनों पहले ही शुरू हो जाती है। यहां तक कि दुर्गा पूजा के पंडाल को सजाने में कई दिन लगाए जाते हैं, जहां पर अलग-अलग जगहों से आये कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। हालांकि, हिंदुओं के इस त्योहार को अब की बार कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों ने पूरी तरह हाइजेक कर लिया और दुर्गा पूजा समितियों द्वारा कलाकारों को इन सभी पंडालों में ‘धर्मनिरपेक्षता’ को बढ़ावा देने वाली कला’ प्रदर्शित करने के आदेश दे दिये गए।
उदाहरण के तौर पर एक पूजा पंडाल में अज़ान का आयोजन किया गया ताकि ‘सामाजिक सौहार्द’ को बढ़ावा दिया जा सके। पश्चिम बंगाल के बेलियाघाट में दुर्गा पूजा की थीम अब की बार ‘सामाजिक सोहार्द’ ही थी। पंडाल को कई धर्मों के धार्मिक चिन्हों से सजाया गया था। पंडाल पर हिंदुओं और मुस्लिमों के धार्मिक चिह्न छपे हुए थे। वहीं एक अन्य पंडाल में तो सभी सीमाओं को पार करते हुए दुर्गा माता को अस्त्र-शस्त्र रहित करके दिखाया गया था।
दुर्गा पूजा के जरिये कोलकाता शहर को ‘धर्मनिरपेक्षता’ के रंग में रंगने की सोच के पीछे कोलकाता के नवनिर्वाचित मेयर फिरहाद हकीम का हाथ माना जा रहा है। हकीम को टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का करीबी माना जाता है और उन्हे पार्टी में नंबर 2 की हैसियत से देखा जाता है। वे ममता के इतने करीबी हैं कि उनको मेयर बनाने के लिए ममता बनर्जी ने स्टेट के कानूनों में बदलाव तक कर दिया था। हकीम म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के मेंबर नहीं थे, इसलिए वे मेयर के चुनावों में खड़े होने के योग्य नहीं थे। हालांकि, ममता सरकार ने नियमों में बदलाव कर दिया। नए नियमों के मुताबिक अगर कोई भी व्यक्ति मेयर बनने के लिए योग्य होगा बशर्ते वह अगले छः महीनों में म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का मेम्बर बन जाये तो। इसके बाद वे कोलकाता शहर के मेयर बने। वे शुरू से ही हिन्दू त्योहारों पर अपनी तथाकथित सेकुलर सोच थोपने के पक्षधर रहे हैं और दुर्गा पूजा के आयोजन के जरिये अपना एजेंडा चलाते आए हैं।
बता दें कि हकीम कोलकाता के मेयर होने के साथ-साथ चेतला अग्रणी क्लब के संरक्षक भी है जो पहले ही ऐसे ‘सांप्रदायिक सोहार्द’ फैलाने वाली दुर्गा पूजा का आयोजन कर चुके हैं। वर्ष 2011 में वे मस्जिद और मंदिर की आकृति वाले पंडाल में हिन्दू के त्योहारों का आयोजन कर चुके हैं। तब उन्होंने कहा था ‘इससे अच्छी बात भला क्या हो सकती है कि कोई मुस्लिम दुर्गा पूजा के आयोजन की मेजबानी करे, मेरे लिए सब समान है, पूजा कोई धार्मिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि एक त्योहार है जो सबको मनाना चाहिए’।
अब जब यही फिरहाद हकीम कोलकाता शहर के मेयर बन गए हैं तो अपनी सेकुलरवाद को लोगों पर थोप रहे हैं जिसका कई लोग खुलकर विरोध कर रहे हैं। इसी को लेकर एक स्थानीय निवासी तारकेश्वर पाल ने कहा, “सभी धर्मों का सम्मान करना अलग बात है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें दूसरे धर्मों के रीति-रिवाजों का पालन भी करना होगा. पूजा के पंडाल से अजान बजाना ग़लत है।” उनका सवाल है कि क्या ईसाई या मुस्लिमों के त्योहार के दौरान हिंदू देवी-देवताओं के गीत या भजन चलाए जाते हैं?”
स्थानीय लोगों की बातें इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यहां जिस मेयर की बात हो रही है, उनकी खुद की पृष्टभूमि इतनी साफ-सुथरी नहीं है। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान के न्यूज़ चैनल ‘द डॉन’ को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने कोलकाता के एक हिस्से को ‘मिनी-पाकिस्तान’ कहकर संबोधित किया था। इसके साथ ही ममता सरकार द्वारा वर्ष 2017 में उनको हिंदुओं के मंदिर ताराकेश्वर मंदिर का अध्यक्ष भी बना दिया गया था।
फिरहाद हकीम को देखकर तो ऐसा ही लगता है कि वे लंदन के विवादित मेयर और लेबर पार्टी के नेता सादिक़ खान की तरह बनना चाहते हैं। वर्ष 2016 में मेयर बनने के बाद से ही वे लंदन पर अपनी धर्मनिरपेक्षता थोपने पर लगे हैं जिसने वहां की स्थानीय संस्कृति को खतरे में डाल दिया है। यह दिखाता है कि अगर ऐसे सेकुलर लोग प्रशासन में आ जाते हैं तो वे लोगों की भलाई को छोड़कर अपने एजेंडे पर फोकस करते हैं जिसकी वजह से समाज में सोहार्द की बजाय तनाव फैलता है।