हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए चुनावों के नतीजों में बेशक भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो। हालांकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी भाजपा को कड़ी टक्कर दी। कांग्रेस को महाराष्ट्र में जहां 44 सीटें मिली, तो वहीं हरियाणा में कांग्रेस 31 सीटों पर कब्जा जमाने में सफल हुई। हालांकि, यहां सबसे दिलचस्प बात यह रही कि गांधी परिवार में से सभी बड़े नेता चुनाव प्रचार से लगभग दूर ही रहे। राहुल गांधी ने हरियाणा में जहां सिर्फ 2 रेलियाँ की, वहीं महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में भी उन्होंने महज़ 4 रैलियाँ की। राहुल गांधी के अलावा सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी तो चुनाव प्रचार से नदारद ही दिखे। सोनिया गांधी की महेंद्रगढ़ में एक रैली प्रस्तावित जरूर थी, हालांकि अपनी खराब सेहत का हवाला देते हुए उन्होंने इस रैल्ली में भी शिरकत नहीं की।
गौरतलब है कि कांग्रेस ने 2014 के विधानसभा चुनाव में 15 सीटें जीतीं थीं जबकि इस बार कांग्रेस पार्टी ने राज्य में 31 सीटें जीतीं हैं।स्पष्ट है कांग्रेस ने इस बार डबल सीटें जीतीं हैं। इन आकड़ों से यह साफ है कि अगर कांग्रेस का नेतृत्व क्षेत्रीय नेताओं पर भरोसा जताता है, तो कांग्रेस को फायदा हो सकता है।
वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में ही लड़ा था, उसके नतीजे सामने ही हैं। कांग्रेस का हिन्दी बेल्ट में पूरा सफाया हो गया। इन चुनावों में कांग्रेस के क्षेत्रीय नेतृत्व ने जान-लगाकर प्रचार अभियान में हिस्सा नहीं लिया था। यही कारण था कि लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की पहली बैठक में हार का जिम्मा कमलनाथ और अशोक गहलोत जैसे क्षेत्रीय नेताओं पर थोप दिया था।
हरियाणा की बात की जाये तो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस राज्य में क्षेत्रीय नेता को चुनने में ही बहुत ज़्यादा वक्त गंवा दिया। चुनावों से एक महीने पहले तक हुड्डा पार्टी को छोड़ने की बात कर रहे थे। तब जाकर पार्टी ने उनको चुनावों की कमान सौंपी और पार्टी का कार्यकर्ताओं ने प्रचार में ज़ोर लगाया। वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी की गैर-मौजूदगी ने काफी हद तक कांग्रेस को फायदा पहुंचाया। राहुल गांधी के भाषण अक्सर बेतुके तर्कों और नफरत से भरे होते हैं और वे अक्सर बातों को बढ़ा-चढ़कर प्रस्तुत करते हैं। इतना ही नहीं, लोगों के बीच में उनको लेकर विश्वास की कमी है। इससे पहले के चुनावों में कांग्रेस राहुल गांधी के बचकाना बयानों का बचाव करने में ही अपना समय बिता देती थी और हमेशा बैकफुट पर रहती थी। हालांकि, अब की बार राहुल गांधी के ना आने से यह परेशानी खड़ी ही नहीं हुई।
राहुल गांधी ने इन चुनावों में जितनी भी जनसभाएं की, उन्होंने उन सभी मुद्दों को उठाया जिन्हें जनता लोकसभा चुनावों में पहले ही नकार चुकी है। ऐसे में मीडिया और लोगों के सामने राहुल गांधी की कम से कम मौजूदगी ने कांग्रेस का सबसे ज़्यादा फायदा किया। इन चुनावों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस अगर अपने आप को पुनर्जीवित करना चाहती है तो उसे गांधी परिवार से छुटकारा दिलवाना ही होगा। लोकसभा चुनावों में हार के बाद जब राहुल गांधी ने अपने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, तो सबको यही लगा था कि अब की बार कांग्रेस को कोई गैर-गांधी अध्यक्ष मिल सकता है, लेकिन जब सोनिया गांधी ने दोबारा अध्यक्ष पद का जिम्मा संभाला, तो सभी उम्मीदों पर पानी फिर गया। हालाँकि, चुनाव प्रचार में गाँधी परिवार की अनुपस्थिति से दोनों राज्यों में कांग्रेस पार्टी को फायदा ही हुआ। ऐसे में हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों से कांग्रेस को फिर एक बार यह सबक मिला है कि उसे गांधी परिवार के बिना ही अपने अभियानों को आगे बढ़ाने की जरूरत है।