सूखा और अन्य पर्यावरण समस्याओं से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक नायाब युक्ति अपनायी है। टाइम्स नाऊ की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने 1400 किलोमीटर और 5 किलोमीटर चौड़ी ग्रीन बेल्ट के निर्माण का प्रस्ताव रखा है। यह ग्रीन बेल्ट गुजरात के पोरबंदर से लेकर हरियाणा के पानीपत शहर तक स्थित होगी, जो गुजरात, हरियाणा और दिल्ली में स्थित अरावली के पहाड़ी क्षेत्रों में बर्बाद हो चुकी भूमि का पुनरुत्थान करने में सहायता करेगी।
इसकी पुष्टि करते हुये पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन 14वें COP में कहा, “मरुस्थलीकरण अथवा सूखा एक वैश्विक समस्या है, जिसके कारण 25 करोड़ लोग और पृथ्वी का एक तिहाई भूमि तल प्रभावित है। इस समस्या से लड़ने के लिए भारत अगले दस वर्ष में लगभग 50 लाख हेक्टेयर की बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में परिवर्तित करेगा। इसके साथ ही भारत कॉन्फ्रेंस के अंत में होने वाले नई दिल्ली डिक्लेरेशन के प्रावधानों का क्रियान्वयन करेगा, और साथ ही साथ देहारादून में सेंटर फॉर एक्सीलेन्स भी स्थापित करेगा”।
प्रकाश जवडेकर ने सतत भूमि उपयोग के प्रति भारत की प्रतिबद्धता भी जताई। उन्होने कहा, “पर्यावरण के प्रति हमारा सामूहिक उत्तरदायित्व बनता है कि उसे किसी भी प्रकार की हानि न हो। बतौर UNCCD COP के अध्यक्ष होने के नाते भारत का महत्व बताते हुये प्रकाश जावडेकर ने आगे बताया, “मरुस्थलीकरण से निपटना विश्व का समान संकल्प है, जिसमें भारत आगे आकर इस अभियान का नेतृत्व करेगा, और सभी देशों के समर्थन से विश्व को एक सकारात्मक दिशा में आगे ले जाएगा”।
वनों की अंधाधुंध कटाई , अति सिंचाई, मिट्टी के दरकने इत्यादि के कारण भारत की करीब 30 प्रतिशत भूमि उजाड़ हो चुकी है। ऐसे में अहम आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पर्यावरण का संरक्षण अति आवश्यक है। कई अनुमानों के अनुसार यदि भूमि के उजाड़ होने की समस्या का त्वरित निवारण नहीं हुआ, तो करीब 60 करोड़ भारतीयों को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
भूमि संसाधनों के प्रबंधन और आर्थिक विकास में काफी गहरा संबंध पाया गया है। द एनर्जी एण्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के एक शोध के अनुसार मिट्टी के पतन के कारण भारत को 2018-19 के कृषि बजट [58000 करोड़] के मुक़ाबले 72000 करोड़ रुपये का नुकसान है। इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत के वनों के पतन के कारण प्रतिवर्ष उसे जीडीपी के 1.4% का नुकसान झेलना पड़ता है।
मिट्टी के पतन के कारण भारतीयों को फूड सेक्युरिटी सुनिश्चित कराने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक अनुमानों की कहे, तो भारत में कृषि योग्य भूमि में से केवल 60 प्रतिशत भूमि ही भारत के जीडीपी का 14 प्रतिशत योगदान हेतु फसल निकाल पाती है, जिसके कारण भूमि पतन से सबसे ज़्यादा कृषि क्षेत्र ही प्रभावित रहता है। ऐसे में सरकार द्वारा प्रस्तावित ग्रीन बेल्ट का प्लान यदि स्वीकृत हो गया, तो इसके कारण हमारे देश को कितना लाभ मिलेगा, कोई सोच भी नहीं सकता।