वर्ष 2018 के अक्टूबर महीने में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें तत्कालीन कांग्रेस के नेता अल्पेश ठाकोर को प्रवासी और बाहरी लोगों के खिलाफ स्थानिय निवासियों को भड़काते हुये देखा गया था। वही अल्पेश ठाकोर इस वर्ष जुलाई में भाजपा में शामिल हो गए हैं। अल्पेश जैसे विभाजनकारी व्यक्ति को अपनी पार्टी में शामिल कर के भी भाजपा नहीं रुकी और उन्हें गुजरात विधानसभा के उपचुनाव का टिकट दे दिया।
बता दें कि गुजरात में छह विधानसभा सीटों पर 21 अक्टूबर को उपचुनाव होने वाले हैं। इनमें से एक सीट, राधनपुर से अल्पेश ठाकोर को भाजपा ने चुनाव में विजय हासिल करने के लिए दिया है। ओबीसी नेता, जो ठाकोर समुदाय में मजबूत हैं और उन्होंने ही वर्ष 2017 में कांग्रेस के टिकट से यह सीट जीती थी।
अगर हम विभाजनकरी नेताओं का अध्ययन करें तो अल्पेश ठाकोर उसमें सबसे अव्वल रहेंगे। गुजरात में हुये बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासियों पर हुये हिंसा में सीधे तौर पर शामिल रहे हैं।
इतना ही नहीं हिंसा के बाद हुए पलायन के तुरंत बाद उन्होंने यह कहा कि यह पलायन सिर्फ छठ पूजा के लिए हो रहा है। अल्पेश ने वह सब किया है जो एक समाज को बांटता है।
यह वही अल्पेश ठाकोर हैं जिन्होंने प्रधामन्त्री मोदी को कहा था कि वह ताइवान का मशरूम खाकर गोरे हो गए हैं, नहीं तो पहले मेरे जैसे काले थे।
अल्पेश के भाजपा में शामिल होने से खामियाजा भाजपा को गुजरात में ही नहीं बल्कि पूरे देश में उठाना पड़ सकता है। सामान्य आंकड़े बताते हैं कि गुजरात की अलग-अलग सीटों पर बिहार-उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले लोगों की बड़ी संख्या है। फिलहाल, ये सभी वोटर भाजपा को वोट करते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से इन लोगों के प्रति नफरत को अल्पेश ठाकोर ने जिस तरह से बढ़ावा दिया था वो किसी से छुपा नहीं है और अब भाजपा में इस नेता के शामिल होने से यूपी-बिहार के लोगों में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ सकती है ऐसे में भाजपा को हिन्दी भाषियों के आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है।
फिर भाजपा इतनी परोपकारी क्यों बन रही है? आखिर क्यों सभी पार्टियों के छटें हुये नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करती जा रही है? जब वह पार्टी में शामिल हुये थे तब भी कई भाजपा समर्थकों ने आपत्ति जताई थी।
एक ऐसा नेता जिसपर कई आरोप हों और जो देश के एक राज्य के लोगों को दूसरे राज्य के खिलाफ भड़काए उसे भाजपा में पहले शामिल करना और फिर चुनावी मैदान में उतारना सरासर गलत है। भाजपा को ऐसे नेताओं को बढ़ावा नहीं देना चाहिए जो जनता का प्रतिनिधित्व करने के लायक न हो बल्कि ऐसे नेताओं को बढ़ावा देना चाहिए जो देश की एकजुटता के साथ जनता की जरूरतों का सम्मान करे और अपने कर्तव्यों का पालन करे। यह भी स्पष्ट है कि ऐसे नेताओं को मौका देने से भाजपा को सीट जीतने में मदद मिल सकती है लेकिन यह विपक्षी नेताओं को सवाल करने का मौका भी देगी। इस तरह की अप्रत्याशित रणनीति से भाजपा अपनी विचारधारा और मूल सिद्धांतों से भी समझौता कर रही है। तथा ऐसे दागी नेताओं को भाजपा में मौका दे कर ये पार्टी वोटरों से किए अपने ही वायदे के साथ समझौता कर रही है। स्पष्ट देखा जा सकता है कि भाजपा अन्य दलों के लिए एक डंपिंग ग्राउंड बन गई है और पार्टी नेतृत्व को तुरंत सुधार के लिए कदम उठाने चाहिए। जनता ने भाजपा को इतनी बड़ी बहुमत इसलिए नहीं दी है कि अन्य पार्टियों के भ्रष्ट नेता भी इस बहुमत का फायदा उठाएं। भाजपा को अब किसी अन्य पार्टी के नेता को शामिल करने से पहले उसके आचरण और पृष्ठभूमि देख कर विचार करना चाहिए इसके बाद ही उन्हें शामिल करना चाहिए। अगर विचार नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह भारतीय जनता पार्टी पर ही भारी पड़ सकता है।