दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार उन्होंने अपने निशाने पर बिहार के निवासियों को लिया है, और उन्होंने कहा है, ‘बिहार का एक व्यक्ति दिल्ली के लिए 500 रुपये की टिकट खरीदता है, और 5 लाख रुपये के मूल्य का मुफ्त ट्रीटमेंट कराके जाता है। इससे खुशी होती है कि अपने देश के लोग हैं, सबका इलाज होना चाहिए. लेकिन दिल्ली की अपनी क्षमता है, पूरे देश के लोगों का कैसे इलाज करेगी ? ऐसे में आवश्यकता है इस स्थिति को देश भर में सुधारने की’।
इस बयान से न केवल बिहारियों का अपमान हुआ है, बल्कि समूचे पूर्वांचल के निवासियों के प्रति केजरीवाल ने अपनी घृणा उजागर की है। केजरीवाल के इस बयान पर भाजपा ने कड़ा विरोध जताया है साथ ही सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर लोगों का आक्रोश देखने को मिल रहा है। ऐसे में स्पष्ट है कि कि आगे चलकर केजरीवाल को इस बयान के कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान होने वाला है। भाजपा से सांसद विजय गोयल ने केजरीवाल को ऐसे बयान के लिए क्षमा मांगने को कहा है, और ऐसा न होने तक धरना प्रदर्शन करने की की चेतावनी भी दी है।
सच पूछें तो यह विवादास्पद बयान देकर केजरीवाल ने एक बड़ी भारी भूल की है। दिल्ली के मतदाताओं का एक बड़ा तबका पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार, यानि पूर्वाँचल क्षेत्र से आता है। आंकड़ों के अनुसार यह दिल्ली के 2 करोड़ की जनसंख्या का लगभग 25 प्रतिशत है। दिल्ली के 70 विधानसभा सीटों में से 30 सीटों पर पूर्वाँचल का ही सिक्का चलता है, यानि यही तय करते हैं कि कुर्सी किसको मिलेगी। ऐसे में कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए यदि केजरीवाल के इस विवादास्पद बयान के कारण आम आदमी पार्टी को आने वाले चुनावों में बुरी हार का सामना करना पड़ा।
बात केवल दिल्ली में पूर्वाँचल के प्रवासियों की संख्या की ही नहीं है, यहां राजनीतिक समीकरण भी काफी जटिल है। इस बात से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है कि आम आदमी पार्टी पर सबसे ज्यादा भरोसा पूर्वांचल के प्रवासियों ने ही किया है और इन्हीं की वजह से केजरीवाल सीएम की कुर्सी पर बैठे हैं। अभी हाल ही में लाइवमिंट की एक रिपोर्ट में आप के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘वे दिल्ली के सबसे बड़े समुदायों हैं, और वे आप के साथ साथ सभी पार्टियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं’। अब केजरीवाल के बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी को उनकी कोई परवाह ही नहीं है।
2015 से ही पूर्वाँचल ने आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन दिया है, जिसका असर पार्टी के 2015 के विधानसभा चुनाव में साफ़ दिखा भी था। 2015 के चुनाव के दौरान एक दर्जन से ज़्यादा विधायक पूर्वाँचल क्षेत्र से ही ताल्लुक रखते हैं। इसी कारण आप ने 70 में से 67 सीटों पर अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी। स्पष्ट है कि पूर्वाँचल के लोगों के कारण ही आम आदमी पार्टी फर्श से अर्श पर पहुँच गयी थी।
दूसरी ओर दिल्ली में भाजपा अक्सर बनिया और पंजाबी समुदाय की पार्टी मानी जाती रही है, क्योंकि पार्टी को व्यापारियों के इन दो वर्गों से विशेष समर्थन मिलता रहा है। पूर्वाँचल के अलावा पंजाबी समुदाय भी दिल्ली में एक अहम वोटर बेस माना जाता है। परंतु दिल्ली के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो ऐसा लगता है कि भाजपा केवल अपने पारंपरिक वोटर बेस के सहारे ही नहीं चल रही है। इस वर्ष लोक सभा के चुनाव में भाजपा को दिल्ली लोकसभा क्षेत्र की 7 सीटों पर कुल मिलाकर 56.58 प्रतिशत मत मिले थे, जो केवल पारंपरिक वोटर बेस के सहारे मिलना लगभग असंभव है।
इससे साफ पता चलता है कि अब भाजपा ने पूर्वाँचल के वोटर बेस में भी सेंध लगाना प्रारम्भ कर दिया है। इसके लिए भाजपा ने प्रसिद्ध भोजपुरी अभिनेता एवं गायक मनोज तिवारी को भाजपा की दिल्ली इकाई का अध्यक्ष बनाया, जिसके कारण दिल्ली के पूर्वाँचल वोटर्स का भाजपा के प्रति विश्वास काफी हद तक बढ़ा।
अब आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली के चुनाव में अंतिम विकल्प यही था कि वे अपने पारंपरिक वोटर बेस के लिए भाजपा से संघर्ष करे। परंतु अरविंद केजरीवाल के बयान ने इस अंतिम विकल्प को भी खत्म करने का काम किया है। विडम्बना की बात तो यह है कि लोकसभा के चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के उत्तरी पूर्व दिल्ली के उम्मीदवार दिलीप पांडे ने कहा था, “स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में हम लोगों ने काफी अच्छा काम किया है, जिससे यहाँ आने वाले लोगों को एक बेहतर जीवन मिल सके”। अब यह तो स्पष्ट हो चुका है कि आम आदमी पार्टी इतने दिनों से पूर्वाँचल वोट के लिए लालायित थी, परंतु केजरीवाल के बयान ने इनसे वो अंतिम सहारा भी छीनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। जहां एक ओर अब दिल्ली में पूर्वाँचल के प्रवासी भाजपा के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, तो वहीं केजरीवाल ने अपनी पार्टी को हाशिये पर धकेलने का काम किया है।