कभी क्रिकेट की भांति राजनीति में भी एक सफल पारी खेलने का ख्वाब देखने वाले पूर्व भारतीय क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू अब पूर्ण रूप से अप्रासंगिक हो चुके हैं। अभी हाल ही में उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू ने यह साफ किया है कि वे किसी भी पार्टी से संबन्ध नहीं रखती हैं और उनका प्रमुख ध्येय केवल समाजसेवा है।
नवजोत कौर के अनुसार, ‘मैं कांग्रेस की सदस्य नहीं हूँ। मैंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया है। मैं अब किसी भी राजनीतिक पार्टी में नहीं हूं। अब उनका एकमात्र लक्ष्य समाज सेवा करना है। एक समाजसेवी के नाते मैं पंजाब व अपने विधानसभा हल्के के लोगों की लड़ाई लड़ती रहूंगी। यदि सरकार ने इस इलाके के विकास के लिए धनराशि जारी न की तो मैं पंजाब सरकार के विरुद्ध धरना देने से भी पीछे नहीं हटूंगी’।
यही नहीं, नवजोत कौर ने सिद्धू की अप्रासंगिकता को बयान करते हुए कहा, ‘नवजोत सच बोलने वाले व्यक्ति हैं। वह सच ही बोलेंगे। कुछ मंत्रियों ने मुख्यमंत्री के कान भर दिए थे, जिस पर कैप्टन अमरिंदर ने विश्वास कर लिया। अब सरकार में उनकी कोई पूछ नहीं है। यदि वह इन घटना में मारे गए लोगों के बारे सरकार से कुछ मांगते, तो उनकी मांग पर सरकार कोई ध्यान न देती। इसलिए सिद्धू ने बोलने से गुरेज किया”।
हालांकि नवजोत सिंह सिद्धू स्वयं इस विषय पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं, परंतु नवजोत कौर का बयान इस बात के संकेत तो अवश्य दे रहे हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है, और नवजोत सिंह सिद्धू अब पूर्ण रूप से राजनीतिक हाशिये पर आ चुके हैं। क्रिकेट में एक सफलतम करियर के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने 2001 से क्रिकेट कमेंटरी का रुख किया, जिससे उन्होंने काफी प्रसिद्धि बटोरी।
कुछ ही वर्षों में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की, और 2004 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर क्षेत्र से उन्होंने भारी अंतर से चुनाव जीतते हुये लोकसभा सांसद का पद प्राप्त किया। कोर्ट केस के कारण उन्हें कुछ समय के लिए सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा, परंतु उन्होंने न केवल उपचुनाव जीता, अपितु 2009 में दोबारा लोकसभा से चुनकर आए। 2014 में उनकी जगह अरुण जेटली को अमृतसर लोकसभा सीट से बतौर उम्मीदवार उतारा गया, परंतु नवजोत सिंह सिद्धू को तुरंत भाजपा की ओर से राज्यसभा सांसद के तौर पर चुना गया।
हालांकि उनके राजनीतिक पतन का प्रारम्भ तभी हो चुका था, जब उन्होंने 2016 में भारतीय जनता पार्टी का दामन छोड़ा था। प्रारम्भ में वे निर्दलीय रहने का ठान चुके थे, और उनकी लोकप्रियता में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ। परंतु जैसे ही 2017 में उन्होंने काँग्रेस पार्टी का दामन थमा, नवजोत सिंह सिद्धू के राजनीतिक करियर को मानो ग्रहण सा लग गया।
सर्वप्रथम तो उन्होंने सोनिया गांधी के पैर छूते हुए अपनी फोटो खिंचवायी, जिससे उनकी चाटुकारिता स्पष्ट दिख रही थी। इसके बाद उन्होंने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को नीचा दिखाने ऐसे कई कदम उठाए, जिससे उनकी अपरिपक्वता साफ झलक दिख रही थी। इसके अलावा नवजोत सिंह सिद्धू का पाक प्रेम उनके राजनीतिक पतन के प्रमुख कारणों में से एक बन गया।
जब पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेट टीम कप्तान इमरान खान नियाजी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने बधाई देने के लिए नवजोत सिंह सिद्धू न सिर्फ पाक पधारे, बल्कि इमरान की तारीफ करते-करते उन्होंने भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ावा दिया, और खालिस्तानी समर्थक गोपाल सिंह चावला के साथ फोटो भी खिंचाई। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू को पाकिस्तान न जाने की सलाह दी थी। इसके बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू अपने मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अमरिंदर सिंह की बात को ठेंगा दिखाते हुए पाक पहुंच गए थे।
परंतु बात यहाँ तक नहीं रुकी। पुलवामा हमले के दौरान जब पूरा देश आतंकियों के इस जघन्य कृत्य पर आक्रोशित था, तो नवजोत सिंह सिद्धू ने पाक का बचाव करते हुए राग अलापना शुरू किया कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। यह बयान उन्होने तब दिया था जब पुलवामा हमले के आत्मघाती बॉम्बर आदिल अहमद डार ने स्वयं स्वीकारा था कि वे किसके लिए लड़ रहा है।
फलस्वरूप उन्हें सोनी टेलेविज़न पर प्रसारित होने वाले चर्चित शो ‘द कपिल शर्मा शो’ से निकाला गया, परंतु वे तब भी नहीं रुके, और भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट में स्थित आतंकी ठिकानों पर हवाई हमलों का मज़ाक ऊड़ाते हुये कहा, “वो वहां क्या करने गए थे, आतंकियों को मारने या पेड़ उखाड़ने”? सिद्धू के इसी देशविरोधी रवैये की वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह से उनके रिश्ते खराब होना शुरू हुए। इसके अलावा एक अन्य कारण यह भी था कि चुनावों से ठीक पहले सिद्धू ने शहरी एवं स्थानीय निकास मंत्रालय के कामकाज से दूरी बना ली थी। एक और कारण ये भी था कि नवजोत कौर को पार्टी की ओर से लोकसभा का टिकट नहीं मिला था, जिसके कारण उन्होंने पार्टी के लोकसभा चुनाव प्रचार से भी दूरी बना ली थी।
किसी समय नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब में भाजपा के चेहरे के रूप में देखा जाने लगा था। परंतु सत्ता के लालच में उन्होंने ऐसे निर्णय लिए, जिसके कारण न केवल उनका राजनीतिक पतन हुआ, अपितु उनकी निजी छवि भी सदैव के लिए जनता के बीच धूमिल हो गयी। अभी हाल ही में जब वे वैष्णो देवी के दर्शन करने गए थे, तो उन्हे वहाँ शिवसेना के नेताओं के नेतृत्व में जनता के भारी आक्रोश का सामना करना पड़ा था। इनके करियर से एक बात पूर्णतया सिद्ध होती है : लालच बुरी बला है। यदि न चेते, तो न घर के रहेंगे, न घाट के।