कभी 1984 के लोकसभा चुनावों में दो सीटें जीतने वाली भाजपा आज सदस्यता के अनुसार विश्व की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी है। 303 सीटों के साथ ये पार्टी केंद्र सरकार में न केवल पुनः क़ाबिज़ हुई है, अपितु इस समय भारत में अधिकांश राज्यों में भाजपा की ही सरकार है। ऐसे समय में हमें उन लोगों का अवश्य स्मरण करना चाहिए, जिनके कारण आज भाजपा राष्ट्रवादी को पुनः जागृत करने के लिए केंद्र से लेकर स्थानीय प्रशासन तक प्रयासरत है, और उन्हीं में से पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं महाराष्ट्र में भाजपा को स्थापित करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता, प्रमोद व्यंकटेश महाजन
30 अक्टूबर 1949 को हैदराबाद प्रांत [अब तेलंगाना] के महबूबनगर जिले में पैदा हुए प्रमोद महाजन प्रारम्भ से ही राष्ट्रवादी थे। बचपन में उनके माता पिता ने हैदराबाद प्रांत को छोडकर महाराष्ट्र [तब बॉम्बे प्रांत] के अंबाजोगाई क्षेत्र में शरण ली, जहां उनका पालन पोषण हुआ। प्रमोद प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्थक थे, परंतु वे वास्तविक रूप से संघ के साथ तब सक्रिय हुए, जब वे 1970 में आरएसएस के मराठी समाचार पत्र तरुण भारत में बतौर सह संपादक नियुक्त हुए थे। उसी समय उनकी मित्रता गोपीनाथ मुंडे से हुई, जो आगे चलकर न केवल उनके घनिष्ठ मित्र बने, अपितु प्रमोद के साथ मिलकर उन्होंने राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सशक्त नींव भी स्थापित की।
वे केवल 21 वर्ष के थे, जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था, परंतु प्रमोद महाजन ने सभी चुनौतियों का सामना करते हुए आरएसएस में अपने लिए एक अलग जगह स्थापित की। 1975 में जब पूरे देश में इन्दिरा गांधी ने दमनकारी आपातकाल को लागू किया था, तो उसके विरोध में सबसे आगे प्रमोद महाजन खड़े हुए थे। उन्हें हिरासत में लिया गया और नासिक के सेंट्रल जेल में रखा गया, जहां से वे तभी रिहा हुए, जब 1977 में इन्दिरा गांधी ने आपातकाल हटा लिया था। इसके पश्चात प्रमोद ने 1980 तक आते-आते आरएसएस हाइकमान के निर्देशानुसार भाजपा की सदस्यता ली, जहां वे 1985 तक आते आते महाराष्ट्र में भाजपा के जनरल सेक्रेटरी भी बन गए।
प्रमोद महाजन के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि था, परंतु उन्होंने राज्य में भाजपा की स्थापना हेतु हरसंभव प्रयास भी किए। यह वो समय भी था जब महाराष्ट्र में शिवसेना के संस्थापक एवं प्रखर सनातनी नेता बालासाहेब ठाकरे का डंका बजता था। 1990 आते आते प्रमोद महाजन भी राष्ट्रीय राजनीति में एक जाना माना नाम बन चुके थे, क्योंकि उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी के प्रसिद्ध राम रथ यात्रा के प्रबंध का भार अपने कंधों पर ही लिया था।
प्रमोद महाजन ने वैचारिक समानता और उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए शिवसेना से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। यह प्रमोद महाजन की राजनीतिक सूझबूझ का ही कमाल था कि जिस भाजपा को केवल उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश तक सीमित समझा जाता था, उसे उन्होंने महाराष्ट्र में भी स्थापित किया। 1995 के विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस को 288 में से 80 सीटें प्राप्त हुई, परंतु प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे की जुगलबंदी और बालासाहेब ठाकरे के कुशल नेतृत्व में एनडीए ने कांग्रेस को पछाड़ते हुए सत्ता में क़ाबिज़ हुए, और शिवसेना के मनोहर गजानन जोशी महाराष्ट्र के प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे।
प्रमोद महाजन के कारण ही भाजपा ‘काऊ बेल्ट’ वाले तंज़ को ध्वस्त करने हेतु महाराष्ट्र में स्थापित हो पायी। ये प्रमोद महाजन ही थे जिनकी सूझबूझ के कारण 1996 के चुनावों में भाजपा को सर्वाधिक सीटें प्राप्त हुई। हालांकि, उचित समर्थन न मिल पाने के कारण भाजपा की सरकार 13 दिनों के भीतर ही गिर गयी। परंतु प्रमोद महाजन ने हार नहीं मानी और उन्होंने भाजपा को पुनः सत्ता में स्थापित करने हेतु हरसंभव प्रयास किए। 1996-1998 तक केंद्र में रही राष्ट्रीय मोर्चे की ‘खिचड़ी’ सरकार पर उनका चुटीला तंज़ आज भी लोगों को खिलखिलाने पर विवश करता है।
अमित शाह के राष्ट्रीय मंच पर उदय से पहले ये प्रमोद महाजन ही थे, जिनकी राजनीतिक सूझबूझ के कारण उन्हें पार्टी का ‘चाणक्य’ माना जाता था। यदि वे आज जीवित होते, तो शायद उन्हें निर्विरोध महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री चुना जा सकता था, और उनकी नीतिकुशलता के कारण उन्हें भारत का प्रधानमंत्री भी बनाया जा सकता था। शायद इसीलिए अटल बिहारी वाजपेयी जी ने एक बार एक रैली में कहा था कि लाल कृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन उनके बाद पार्टी को राम लक्ष्मण की तरह संभालेंगे। परंतु विधाता ने उनके भाग्य में कुछ और ही लिखा था, और 22 अप्रैल 2006 को प्रमोद अपने ही भाई प्रवीण की गोलियों का शिकार हुए। लाख प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया न जा सका और 3 मई 2006 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
यदि आज भाजपा महाराष्ट्र में सर्वाधिक सीटों वाली एक शक्तिशाली पार्टी बन पायी है, और यदि देवेंद्र फडणवीस सत्ता वापसी का स्वप्न देख सकते हैं, तो ये प्रमोद महाजन जैसे नेताओं की नीति कुशलता और उनके कुशल नेतृत्व के कारण ही संभव हुआ है। प्रमोद महाजन से केवल भाजपा को ही नहीं, अपितु शिवसेना को भी सीख लेनी चाहिए, जो आज दुर्भाग्यवश सत्ता के लालच में उन्हीं आदर्शों से विमुख हो रही है, जिसके आधार पर शिवसेना की स्थापना कर कभी बालासाहेब ठाकरे ने एक सशक्त भारत का स्वप्न देखा था।