हरियाणा विधानसभा चुनाव में जेजेपी सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला का उदय इन दिनों सुर्खियों में है। मात्र 11 महीने पुरानी पार्टी ने हरियाणा विधानसभा में 10 सीटें जीतकर राज्य में किंगमेकर की भूमिका में उभरी। चौथी पीढ़ी के वंशज दुष्यंत चौटाला, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल के परपोते और जेल में बंद इनेलो नेता ओ.पी.चौटाला के पोते हैं। उन्हें 2014 में एक INLD टिकट पर सांसद के रूप में चुना गया था। देवीलाल की विरासत को आगे बढ़ा रहे ओपी चौटाला परिवार व इनेलो पार्टी में फूट 7 अक्टूबर 2018 को सोनीपत की गोहाना रैली में पड़ी। ओपी चौटाला पैरोल पर आए हुए थे और रैली में मौजूद थे। उनकी मौजूदगी में भीड़ के एक हिस्से ने इनेलो नेता अभय चौटाला के खिलाफ और दुष्यंत के समर्थन में नारेबाजी कर दी थी। इसके बाद दुष्यंत और उनके भाई दिग्विजय को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद अजय चौटाला पैरोल पर जेल से बाहर आए और उन्होंने पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक बुला ली, जिस पर उन्हें भी इनेलो से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद दुष्यंत ने नई पार्टी के गठन की घोषणा कर दी।
दुष्यंत चौटाला ने चुनाव जीतकर न केवल अपनी पार्टी को सशक्त किया है बल्कि राज्य में नेतृत्व करने के लिए उसे सक्षम भी बनाया है। राज्य में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन करके चौटाला ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ का शानदार परिचय दिया है। सरकार बनाने में उन्होंने देर भी नहीं की न कोई बेतूका शर्त रखा। हालांकि चौटाला के इस निर्णय पर शिवसेना के संजय राउत ने जरूर छाती पीटी। उन्होंने कहा- ‘महाराष्ट्र में कोई दुष्यंत नहीं है जिसके पिता जेल में हों, हमारे पास भी विकल्प है। संजय राउत ने कहा, ‘उद्धव ठाकरे जी ने कहा है कि हमारे पास अन्य विकल्प भी हैं, लेकिन हम उस विकल्प को स्वीकार करने का पाप नहीं करना चाहते हैं। शिवसेना ने हमेशा सच्चाई की राजनीति की है, हम सत्ता के भूखे नहीं हैं।’
इस पर पलटवार करते हुए चौटाला ने कहा- ‘इसका मतलब है कि उन्हें पता है कि दुष्यंत चौटाला कौन हैं मेरे पिता बीते 6 साल से जेल में हैं। उन्होंने उनके बारे में कोई हाल नहीं पूछा। अजय चौटाला जी बिना अपनी सजा पूरी किए बाहर नहीं आएंगे। इस बयान से संजय राउत का कद नहीं बढ़ेगा।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम डराने-धमकाने वाली राजनीति नहीं करते हैं।
दुष्यंत चौटाला से सीख लें राहुल, तेजस्वी
दुष्यंत चौटाला एक समय राजनीति में आने के इच्छुक नहीं थे। चौटाला को राजनीति से दूर रखने के लिए उनके परिवार ने अमेरिका पढ़ने के लिए भेज दिया। लेकिन पारिवारिक मजबूरियों के कारण दुष्यंत चौटाला को राजनीति का दामन थामना ही पड़ा। इसका प्रमुख कारण यह है कि दुष्यंत के दादा ओम प्रकाश चौटाला और पिता अजय चौटाला दोनों ही सजा काट रहे हैं जिसके कारण उन्हें राजनीति में आना पड़ा। दादा और पिता के जेल जाने के बाद पार्टी पूरी तरह बिखर गई थी, चौटाला ने उपचुनाव लड़ा, सफलता नहीं मिली लेकिन वे हार नहीं माने। वे विधानसभा की तैयारियों में जुट गए और मात्र 11 महीनों में ही किंगमेकर बनकर सभी विरोधियों के दांत खट्टे कर दिए।
जिस तरह से चौटाला ने अपने राज्य व देश में अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ से एक पहचान स्थापित की है, उससे देश के कई बड़े व दिग्गज परिवारों के राजकुमार भी सीख ले सकते हैं। दुष्यंत चौटाला की तरह ही तेजस्वी यादव हैं जिनके पिता लालू यादव जेल में सजा काट रहे हैं। अगर तेजस्वी दुष्यंत चौटाला से कुछ सीख लें तो आने वाले विधानसभा चुनाव में कुछ चौकानें वाला परिणाम दे सकते हैं। लेकिन इन सब से विपरीत तेजस्वी यादव राज्य में बिल्कुल मौन विपक्षी नेता के रूप में जाने जाते हैं। वे सरकार की विफलताओं पर चुप्पी साधते हैं। न उन्हें बाढ़ से मतलब होता है न ही राज्य में चमकी बुखार जैसे महामारी पर। ऐसे में तेजस्वी को ऐसे नेता से सीखने की जरूरत है।
ठीक इसी तरह अगर राहुल गांधी की बात करें तो साफ पता चलता है कि वे राजनीति में कितने अनभिज्ञ हैं। जब उन्हें पार्टी की कमान सौंपी गई तो वे पूरी तरह असफल साबित हुए। बेहद नाटकीय अंदाज में उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया और अब वे राजनीति से दूर नजर आते हैं। उदाहरण के तौर पर हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने क्षेत्रीय नेताओं के बल पर कई सीटें जीती लेकिन राहुल गांधी को इससे कोई मतलब ही नहीं था, वे फिर से विदेश मेडिटेशन के लिए भाग गए।
ऐसे में चौटाला से शिवसेना, तेजस्वी और नेहरू परिवार के वंशज एक अच्छी सीख ले सकते हैं। दुष्यंत चौटाला एक दूरदर्शी नेता हैं जो एक परिपक्व राजनीतिक सूझ-बूझ रखते हैं। वे जनादेश का सम्मान करते हुए, अपने राज्य के हित के बारे में सोचते हुए, जल्द से जल्द फैसला लिया और आज उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर राज्य में विराजमान हैं।