महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। एक तरफ भाजपा के लिए आंखे खोल देने वाली रही तो वहीं, शरद पवार की सूझबूझ वाली राजनीति भी देखने को मिली। इसी सूझबूझ से NCP अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए 41 सीटों से 54 सीटों तक पहुंच गयी। इस चुनाव के दौरान एक सीट पर पूरे भारत की नज़र थी, वह सीट थी सतारा लोकसभा सीट जहां विधानसभा चुनावों के साथ ही उप चुनाव हुए थे। शिवाजी का गढ़ माने जाने वाले सतारा में अभी तक उन्हीं के वंशजों का बोल-बाला रहा है। लंबे समय से शिवाजी के वंशज और सतारा के महाराज उदयन राजे भोसले राष्ट्रवादी कांग्रेस का झंडा संभाले हुए थे, तो सतारा में एनसीपी का बोलबाला रहता था, लेकिन इस बार महाराज उदयन राजे ने भाजपा के कमल को थाम लिया था। इस वर्ष भारी उलटफेर हो गया और शिवाजी के वंशज चुनाव हार गए तथा एनसीपी विजयी रही।
शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोसले जो बीजेपी के उम्मीदवार थे, उन्हें एनसीपी के उम्मीदवार और शरद पवार के लंबे समय के दोस्त श्रीनिवास पाटिल के 6,36,620 वोट की तुलना में सिर्फ 5,48,903 वोट मिले थे।
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय में गहरी पकड़ रखने वाले उदयनराजे प्रताप सिंह भोसले छत्रपति शिवाजी से जुड़े हैं। शिवाजी महाराज के 13वें वंशज उदयनराजे भोसले सतारा से एनसीपी के 3 बार के सांसद हैं और हाल ही में उन्होंने एनसीपी का साथ छोड़कर बीजेपी का हाथ थामा था। हालांकि, 28 साल के सियासी करियर में उदयनराजे कई पार्टियों में शामिल हुए। पहले बीजेपी फिर कांग्रेस और फिर एनसीपी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में रहे। लेकिन पीएम मोदी के विचारों से प्रभावित हो कर उन्होंने एनसीपी छोड़ दी और फिर से बीजेपी में शामिल हो गए। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में राष्ट्र और महाराष्ट्र में भले ही मोदी की आंधी चली हो लेकिन सतारा में शिवशाही का झंडा बुलंद रहा और उदयन राजे चुनाव जीते। लेकिन विधानसभा चुनावों से महज कुछ दिन पहले ही अचानक उदयन राजे का मन बदला और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में भाजपा में शामिल होने की घोषणा की और लोकसभा से भी इस्तीफा दे दिया।
परन्तु शरद पवार ने इस लोकसभा उपचुनाव को अपनी सियासी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया और उन्होंने अपने खास मित्र श्रीनिवास पाटिल को मैदान में उतारा। पाटिल का सतारा राजघराने से भी बेहद करीबी रिश्ता रहा है और वह उदयन राजे भोसले के पिता के मित्र रहे हैं।
बता दें कि चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 78 साल के एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने 18 अक्टूबर की शाम को भारी बारिश के बीच सतारा में रैली को संबोधित किया था। बारिश में पूरी तरह भीगे पवार ने अपने संक्षिप्त भाषण के दौरान कहा कि उन्होंने इस साल की शुरुआत में हुए लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के चयन में एक गलती की, लेकिन अब लोग उस गलती को सुधारने का इंतजार कर रहे हैं। पवार ने सभा में कहा था, ‘इंद्रदेव ने 21 अक्टूबर को होने वाले चुनाव के लिए राकांपा को आशीर्वाद दिया है और इंद्र देव के आशीर्वाद से, सतारा जिला महाराष्ट्र में एक चमत्कार करेगा। वह चमत्कार 21 अक्टूबर से शुरू होगा।’
इसी का नतीजा था कि सतारा की जनता ने भी शरद पवार के जुझारूपन को देखा और इस प्रतिष्ठा की लड़ाई में उन्हें जीत दिलाई। जनता ने स्पष्ट देखा कि किस तरह उदयनराजे प्रताप सिंह भोसले ने दल बदला है और उसी का परिणाम उन्हें भुगतना पड़ा। यह जानना जरुरी है कि चुनावों से पहले NCP के कई बड़े नेता शरद पवार का साथ छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके थे। बड़े चेहरे के रूप में सिर्फ शरद पवार ही बचे थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
शरद पवार ने पार्टी को निराश नहीं किया। सीएम फडणवीस ने 78 वर्षीय पवार पर भरोसा करने के लिए एनसीपी की आलोचना भी की थी, जिसके जवाब में पवार ने कहा था, ‘मैं अभी भी युवा हूं’। पवार का यह जुझारूपन और हार न मानने की भावना प्रशंसनीय है। शरद पवार एक व्यक्ति के रूप में भ्रष्ट और अवसरवादी है, लेकिन एक राजनेता के रूप में, स्पष्ट रूप से असाधारण नेताओं की श्रेणी में आते है।