लगता है अभी कांग्रेस के बुरे दिन खत्म नहीं हुए। हाल ही में प्रयागराज नगर निगम ने जवाहर लाल नेहरू स्मारक निधि के अधीन आनंद भवन, संग्रहालय व तारामंडल (प्लेनेटोरियम) पर ब्याज समेत 4.35 करोड़ रुपये गृहकर बकाया का नोटिस जारी किया है।
प्रयागराज नगर निगम के प्रमुख टैक्स एसेस्मेंट ऑफिसर पीके मिश्रा के अनुसार, ”हमें जवाब में इन तीनों का संचालन करने वाली जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फ़ंड के प्रशासनिक सेक्रेटरी एन बालाकृष्णन का पत्र मिला है, जिसे ज़ोनल ऑफिस को फॉरवर्ड हमने एक विस्तृत सर्वे करने का निर्णय लिया है, और सभी बकाए मूल्यों का एक रिपोर्ट इस सर्वे के बाद हम प्रस्तुत करेंगे। रिपोर्ट मिलने के बाद हम आगे के निर्णय लेंगे”। पीएमसी के अफसरों की माने तो, तो यह नोटिस इसलिए दिया गया है क्योंकि अपने दावे के उलट कांग्रेस समर्थित जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फ़ंड व्यवसायिक उद्देश्यों से कर रहा है, जिसके लिए हाउस टैक्स चुकाना महत्वपूर्ण है।
बता दें कि आनंद भवन और स्वराज भवन नेहरू वंश से जुड़े दो अहम भवन है। स्वराज भवन 1930 तक मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू के निवास के साथ साथ कांग्रेस के बैठकों के लिए एक अहम केंद्र था। इसे तब आनंद भवन के नाम से जाना जाता था। परंतु 1930 में आनंद भवन के निर्मित किए जाने पर पुराने भवन का नाम बदलकर स्वराज भवन रखा गया था। आनंद भवन और स्वराज भवन को कांग्रेस के इतिहास में एक अहम पड़ाव से कम नहीं माना जाता।
सच कहें तो यह कांग्रेस के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं है। अभी एक हफ्ते पहले ही नेहरू मेमोरियल सोसाइटी के पुनर्गठन में सबसे उच्च पद की कमान पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को सौंपे गए थे। इसके पीछे का प्रमुख उद्देश्य था तीन मूर्ति भवन को केवल नेहरू तक केन्द्रित न रखकर भारत के सभी प्रधानमंत्रियों तक केन्द्रित करना, ताकि कांग्रेस का एकाधिकार इस भवन पर से हट जाये।
पीएमसी के अफसरों का यह निर्णय एक ऐसा दांव है, जहां कांग्रेस के लिए न निगलते बनेगा, न उगलते। सच कहें तो कांग्रेस का इस विषय पर विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि ऐतिहासिक मामलों में उनका रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है। कांग्रेस ने इतिहास में असली नायकों और नेहरू गांधी परिवार के परिप्रेक्ष्य में कैसा व्यवहार किया है, यह जानने के लिए कोई पीएचडी लेवल रिसर्च की आवश्यकता नहीं। अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों के साथ भी कांग्रेस ने बहुत भेदभाव किया है, और वीर सावरकर को लेकर कांग्रेस के अधिकांश नेताओं की विचारधारा से बेहतर प्रमाण क्या होता है?
सच कहें तो कांग्रेस की स्थिति ऐसी है, कि वे अब न घर के रहे, और न ही घाट के। महाराष्ट्र में स्थिति चाहे जैसी हो, परंतु राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी अब पूर्णतया अप्रासंगिकता की तरफ बढ़ रही है। इतना ही नहीं, एक-एक करके उनके कच्चे चिट्ठे बाहर आते जा रहे हैं, और सत्ता में उनकी मनमानी का चुन-चुनकर उन्हें हिसाब दिया जा रहा है। इस स्थिति को देखते हुए हम इतना ही कह सकते हैं : तेरा क्या होगा कांग्रेस?