बांग्लादेश पिछले कई सालों से दुनिया की सबसे बड़ी शरणार्थी समस्या से जूझ रहा है और वह है रोहिंग्या शरणार्थी की समस्या। पड़ोसी म्यांमार से इस देश में लाखों रोहिंग्या मुसलमान आकर बस गए हैं जिसके कारण इस देश पर वित्तीय बोझ बढ़ गया है और साथ ही इस देश के विकास पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। पिछले दिनों बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों की वजह से उनके देश के विकास पर गलत प्रभाव पड़ रहा है और बांग्लादेश को जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान खोजना ही होगा। इसी को लेकर अब बांग्लादेश में पूर्व राजनयिकों और विश्लेषकों ने बांग्लादेश सरकार को कहा है कि वह इस मुद्दे को लेकर भारत और चीन से बात करे, ताकि म्यांमार पर कूटनीतिक दबाव बनाया जा सके।
इन पूर्व राजनयिकों के समूह ने बांग्लादेश सरकार को कहा है कि भारत और चीन इस क्षेत्र की बड़ी शक्तियां हैं और इन दोनों देशों के म्यांमार के साथ अच्छे संबंध हैं, इसलिए म्यांमार पर रोहिंग्या समस्या को लेकर कोई दबाव नहीं बन पा रहा है। इन राजनयिकों का यह भी कहना है कि भारत और चीन के बांग्लादेश के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं। अगर बांग्लादेश चाहे तो अच्छी कूटनीति की बदौलत इन दोनों देशों की मदद से म्यांमार पर दबाव बना सकता है ताकि वह रोहिंग्या मुसलमानों को वापस अपने देश में लेने पर मजबूर हो सके। इन राजनयिकों ने यह भी कहा है कि बांग्लादेश को यूएस और यूएन की मदद भी लेनी चाहिए ताकि म्यांमार पर जरूरत पड़ने पर प्रतिबंध लगाया जा सके।
बता दें कि बांग्लादेश में धीरे-धीरे रोहिंग्या शरणार्थी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। यह देश पहले से ही गरीब है कि और ऐसे में अधिकारियों को इन रोहिंग्याओं को बसाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बता दें कि रखाइन प्रांत में इसी साल 25 अगस्त से शुरू हुई हिंसा के नए दौर के बाद से बांग्लादेश में 3 लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिम आ गए हैं। लगभग 3 लाख शरणार्थी पहले से ही म्यामांर सीमा के पास कॉक्स बाजार जिले में संयुक्त राष्ट्र के शिविरों में रह रहे हैं। ऐसे में इन शरणार्थियों को लेकर बांग्लादेश के लिए आए दिन नया सिरदर्द पैदा हो गया है। बता दें कि बांग्लादेश के लिए मुश्किलें सिर्फ उन्हें बसाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वहां की सरकार के लिए इनसे सुरक्षा का खतरा भी पैदा हो गया है।
इसी वर्ष सितंबर में बांग्लादेश सरकार ने दक्षिण पूर्व में शिविरों में रह रहे लगभग दस लाख रोहिंग्या शरणार्थियों की मोबाइल सेवाएं बंद करने का आदेश दिया था। सरकार ने इसके पीछे सुरक्षा कारणों का हवाला दिया था। पुलिस ने उस वक्त बताया था कि ये रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार से करोड़ों डॉलर मूल्य की मेथम्फेटामाइन गोलियों की तस्करी जैसी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए मोबाइल फोन का दुरुपयोग कर रहे हैं। पुलिस ने यह भी बताया था कि शरणार्थियों के खिलाफ नशीले पदार्थों की तस्करी, हत्या, डकैती, गिरोह से लड़ने और पारिवारिक झगड़े के लगभग 600 मामले दर्ज किए गए थे। यानि ये रोहिंग्या ना सिर्फ बांग्लादेश में आर्थिक संकट पैदा कर रहे हैं, बल्कि वहां की कानून व्यवस्था को भी खराब कर रहे हैं।
यही कारण है कि अब बांग्लादेश सरकार रोहिंग्या मुसलमानों से जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहती है। हालांकि, इस समस्या के समाधान को लेकर अभी बांग्लादेश को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से कोई खास सहयोग नहीं मिला है। यही वजह है कि अब बांग्लादेश के विशेषज्ञ लोगों ने बांग्लादेश सरकार से चीन और भारत जैसी बड़ी शक्तियों की मदद लेने को कहा है।