मोदी सरकार शांति और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए अयोध्या फैसले के आने से पहले पूरी तैयारी कर ली है। भारत के मुख्य न्यायधीश, रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। देश भर की मीडिया में चर्चा है कि अयोध्या बाबरी मस्जिद- रामजन्मभूमि विवाद का फैसला 15 नवंबर तक सामने आ जाएगा, जो CJI गोगोई के अंतिम दिन होगा। सुप्रीम कोर्ट की CJI गोगोई की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने इस विवाद की सुनवाई की और सुनवाई पिछले महीने 16 अक्टूबर को समाप्त हुई। यह विवाद जो 100 साल से अधिक समय से अदालतों लंबित रहा है, आखिरकार यह निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है।
अयोध्या विवाद एक संवेदनशील मामला है और देश भर के करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। 1990 के दशक में कई राज्यों में व्यापक दंगे हुए और मरने वालों की संख्या सैकड़ों में थी। अब, लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। और संभावना है कि कुछ असामाजिक तत्व नफरत और सांप्रदायिकता को उकसा सकते हैं। फैसला जो भी आए लेकिन सरकार को पता है कि ऐसे संवेदनशील मामलों पर कुछ भी अनहोनी घटित हो सकती है।
वर्तमान स्थिति और भी संवेदनशील बना देने वाली है, दरअसल, कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर अगले सप्ताह रामलला की जन्मस्थली पर तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ देखने को मिल सकती है। ऐसे में सरकार पूरी तरह से सावधानी बरत रही है।
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने और कानून-व्यवस्था की स्थिति पर कड़ी नजर बनाए रखने को कहा है। इसके साथ ही अर्धसैनिक बल के 4,000 जवानों को एहतियातन उत्तर प्रदेश भेजा गया है। दूसरी ओर, आरपीएफ ने भी अपने सभी कर्मियों की छुट्टियां रद्द कर 78 महत्वपूर्ण स्टेशनों की सुरक्षा-व्यवस्था का अलर्ट जारी किया है।
इस बीच, पीएम मोदी ने बुधवार को अपने मंत्रिपरिषद के साथ अयोध्या के संवेदनशील मामले पर भी चर्चा की। उन्होंने मंत्रियों से अयोध्या विवाद के बारे में अनावश्यक बयान देने से बचने और देश भर में सद्भाव बनाए रखने के लिए कहा।
उन्होंने देश में सौहार्द का वातावरण बनाए रखने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। भाजपा ने भी अपने कार्यकर्ताओं और प्रवक्ताओं से कहा है कि अयोध्या के फैसले के बारे में कोई भी भड़काऊ टिप्पणी करने से बचें। भाजपा के सोशल मीडिया प्रमुख, अमित मालवीय ने पार्टी की सोशल मीडिया टीमों को इस तरह के विवादास्पद बयानों से बचने के लिए कहा है।
अयोध्या मामले पर फैसले से मुंबई में भी सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दिया गया है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये हैं, खासकर शहर के संवेदनशील इलाकों में।
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि निषेधाज्ञा पहले से ही लागू है और शहर में फैसले का जश्न मनाने या इस पर दुख प्रकट करने के लिए किसी तरह के कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
मुंबई के पुलिस आयुक्त संजय बर्वे ने कहा, “संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त सावधानी के साथ सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए जा रहे हैं। शीर्ष अदालत का फैसला जो भी होगा, हर व्यक्ति को इसे देश के नागरिक के रूप में स्वीकार करना चाहिए और किसी समुदाय के सदस्य के रूप में नहीं। “बता दें कि दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद शहर में सांप्रदायिक दंगे भड़क गये थे।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कुछ दिन पहले आरएसएस ने दिल्ली में अपनी महत्वपूर्ण बैठक में अयोध्या के फैसले को हिंदुओं के पक्ष में जाने पर जश्न-जुलूस नहीं निकालने का एक सराहनीय निर्णय लिया था। विश्व हिन्दू परिषद (VHP) ने भी देश भर के अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लेकर, जो भी हो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा उसका सम्मान करेंगे और किसी भी तरह की इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी जाएगी।
इसके साथ ही फैसले से पहले विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिये पत्थरों को तराशने का काम भी बंद कर दिया है। विहिप ने 1990 के बाद से पहली बार पत्थरों को तराशने का काम बंद किया है। विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा ने बताया कि इस काम में लगे सभी कारीगर अपने घर वापस लौट गए हैं। उन्होंने कहा कि विहिप के नेताओं ने पत्थरों को तराशने का काम बंद करने का फैसला लिया है।
इसके अलावा, प्रमुख मुस्लिम निकायों के कई पदाधिकारियों, धर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों ने भी कहा है कि शीर्ष अदालत के फैसले का सभी को सम्मान करना चाहिए और उन्होंने अयोध्या के फैसले के बाद हर कीमत पर शांति और सद्भाव बनाए रखने का भी संकल्प लिया है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा आने वाला ऐतिहासिक फैसला करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है, सांप्रदायिक तनावों और हिंसक दंगों से बचने के लिए आवश्यक सावधानी बरतने के लिए मोदी सरकार की यह कदम बेहद सराहनीय है। जैसा कि हम जानते हैं कि अयोध्या मामला कितना संवेदनशील है। इतिहास में हमने कुछ कड़वे अनुभवों का स्वाद चखा है। इसलिए इस बार विवेकपूर्ण तरिके से सभी पक्ष एक साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं और जो भी निर्णय आएगा उसका सम्मान करेंगे यह भी संकल्प ले रहे हैं। विशेष रूप से सराहनीय बात यह है कि आरएसएस, वीएचपी और शीर्ष मुस्लिम संगठनों ने फैसले का सम्मान करने का अपील किया है।