पीएम मोदी 2 नवम्बर को जब थाईलैंड के दौरे पर गए थे, तो सब की नज़र इस बात पर टिकी थी कि भारत Regional Comprehensive Economic Partnership यानि RCEP डील पर हस्ताक्षर करता है या नहीं। RCEP के तहत अभी दस सदस्य देशों यानी ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और छह एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता प्रस्तावित है, और ये सभी देश चाहते हैं कि भारत जल्द से जल्द इस डील पर साइन कर दे लेकिन भारत की ओर से पीएम मोदी ने यह साफ कर दिया है कि भारत किसी भी डील पर साइन करने से पहले अपने हितों को देखेगा और अभी उनकी अंतरात्मा इस डील पर साइन करने के लिए उन्हें इजाजत नहीं देती है। इसी के साथ भारत ने RCEP की बातचीत से अपने आप को बाहर कर लिया।
RCEP शिखर सम्मेलन में अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “RCEP समझौते का मौजूदा स्वरूप RCEP की बुनियादी भावना और मान्य मार्गदर्शक सिद्धांतों को पूरी तरह जाहिर नहीं करता है। यह मौजूदा परिस्थिति में भारत के दीर्घकालिक मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक रूप से समाधान भी पेश नहीं करता।” आगे उन्होंने कहा “देश के किसानों, व्यापारियों, पेशेवरों और उद्योगों और श्रमिकों और उपभोक्ताओं का हवाला देते हुए, जो ऐसे फैसलों से प्रभावित होते हैं, उन्होंने कहा – जब मैं सभी भारतीयों के हितों के संबंध में आरसीईपी समझौते को मापता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता है. इसलिए मेरा विवेक मुझे आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति नहीं देता है”।
इतिहास में भारत ने अन्य देशों के दबाव में आकर ऐसे कई बड़े फैसले लिए हैं, जिनका खामियाजा भारत को आज तक भुगतना पड़ रहा है। हालांकि, अब मोदी सरकार ने व्यापारिक समुदाय के हितों को देखते हुए RCEP को साइन करने से मना कर दिया है। दरअसल, भारत का कहना है कि RCEP को लेकर कई ऐसे मुद्दे हैं जो अभी स्पष्ट नहीं हैं। इसपर विदेश मंत्रालय के सचिव विजय ठाकुर सिंह ने कहा था कि “भारतीय प्रतिनिधि आरसीईपी व्यापार सौदे से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने में जुटे हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह बेहतर और पारदर्शी है। कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो अभी भी स्पष्ट नही हैं। यह मुद्दे हमारी अर्थव्यवस्था और हमारे लोगों की आजीविका के लिए बेहद जरूरी हैं”। इससे पहले पीयूष गोयल ने भी यह जानकारी दी थी कि रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने से पहले सरकार देश की इंडस्ट्री के हितों को प्राथमिकता देगी। साथ ही उन्होंने कहा था कि कोई फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट करने से पहले डोमेस्टिक इंडस्ट्री और देश के लोगों के हितों की सुरक्षा करना जरूरी है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत सिर्फ RCEP डील को लेकर ही सतर्क है।
भारत ने ASEAN देशों के साथ पहले से FTA एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हुए हैं, उस समझौते को भी भारत रिव्यू करना चाहता है। इसके लिए भारत ने सभी ASEAN देशों को मना भी लिया है। आसियान ने माना है कि आर्थिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए एफटीए को ज्यादा बिजनेस फ्रेंडली बनाने की जरूरत है। बता दें कि सितंबर महीने में थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में दक्षिण पूर्व एशिया के 10 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक में एफटीए की समीक्षा को लेकर सहमति बनी थी। भारत RCEP को लेकर जो सावधानी बरत रहा है, वह काफी हद तक उचित भी है। दरअसल, इस समझौते पर बातचीत अभी तक जारी थी, लेकिन भारत को इससे कोई खास फायदा नहीं होने वाला था। इस समझौते पर हस्ताक्षर करते ही इन सभी देशों को बड़ी ही आसानी से भारत के बाज़ार तक पहुँच मिल जाती और भारत को आयात शुल्क को भी कम करना पड़ता। चूंकि, चीन भी RCEP का सदस्य देश है, ऐसे में डर था कि चीन इस समझौते के तहत भारत में अपने निर्यात को बढ़ा सकता था, और व्यापार संतुलन को और ज़्यादा बिगाड़ सकता था।
बता दें कि भारत की कमजोर कूटनीति का ही नतीजा था कि UPA शासनकाल में भारत के हितों के विरुद्ध ASEAN देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर लिया गया था। दरअसल, भारत ने वर्ष 2009 में ASEAN के साथ यह समझौता किया था लेकिन आज मोदी सरकार को इस समझौते पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है, क्योंकि इस समझौते का सबसे अधिक फायदा भारत की बजाय अन्य ASEAN देश उठाते रहे। हालांकि, पीएम मोदी के नेतृत्व में अब भारत ऐसी किसी भी गलती को दोहराने के पक्ष में नहीं है। पीएम मोदी इस डील को लेकर इंडिया फ़र्स्ट की नीति पर काम कर रहे हैं और देश के व्यापारी समुदाय को अपने विश्वास में लेकर आगे बढ़ रहे हैं। यह दिखाता है कि पीएम मोदी की सफल कूटनीति भारत को सिर्फ सुरक्षा क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी फायदा पहुंचा रही है।























 
 







