भारत के पड़ोस, श्रीलंका में चुनाव समाप्त हो गए हैं और चुनावी नतीजों में उस शख्स को जीत मिली है, जिसे आमतौर पर चीन का समर्थक और भारत का विरोधी माना जाता है। श्रीलंका के चुनावों में दरअसल गोटाबाया राजपक्षा को जीत मिली है, जो कि श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षा के छोटे भाई हैं और वे श्रीलंका के रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। उनके राष्ट्रपति बनने के बाद से ही भारत में यह चर्चा चल रही है कि क्या वे भारत के हितों को दरकिनार करते हुए चीन की कठपुतली की तरह बर्ताव करेंगे? यह सवाल उठना इसलिए भी जायज़ है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में गोटाबाया काफी भारत-विरोधी बयान दे चुके हैं, और वे एक बार तो भारत सरकार पर उनकी पार्टी के खिलाफ काम करने के आरोप भी लगा चुके हैं। हालांकि, जीत के बाद गोटाबाया ने जिस तरह के संकेत भारत को दिये हैं, उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि वे भारत के साथ रिश्तों को मजबूती प्रदान करने की दिशा में ही काम करेंगे।
बता दें कि गोटाबाया श्रीलंका के रक्षा मंत्री रह चुके हैं और उन्होंने वर्ष 2009 में तमिल अलगाववादी संगठन लिट्टे को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी। उस दौरान उन्होंने भारत से मदद मांगी थी लेकिन मनमोहन सरकार ने अपनी राजनीतिक मजबूरीयों के चलते तब श्रीलंका सरकार की मदद नहीं की थी, जिसके चलते गोटाबाया को पाकिस्तान और चीन से मदद मांगने को मजबूर होना पड़ा था और चीन के साथ श्रीलंका के रिश्ते और मजबूत हुए। श्रीलंका पर चीन के प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता, क्योंकि अभी इस आइलैंड देश पर चीन का भारी कर्ज़ है। दूसरी तरफ पिछले कुछ सालों में भारत और राजपक्षा परिवार के रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे थे। इसका एक उदाहरण हमें तब देखने को मिलता है जब वर्ष 2015 में महिंदा ने भारत सरकार पर यह आरोप लगाया कि उन्हें हराने में भारत सरकार का बड़ा योगदान है। इसके बाद वर्ष 2018 में यानि पिछले ही वर्ष गोटाबाया ने भारत पर आरोप लगाया कि राजपक्षा परिवार के खिलाफ भारत सरकार का विशेष द्वेष है।
हालांकि, गोटाबाया से ही जुड़े सूत्रों ने अब बताया है कि पिछले एक साल में उन्हें भारत सरकार के रुख में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। उनके सूत्रों के अनुसार ‘अब भारत सरकार के रुख में बड़ा बदलाव आया है। पहले कोलंबो में मौजूद भारतीय अधिकारी हमसे मिलने में आनाकानी करते थे, लेकिन अब हमारे बीच मधुर संबंध है। हम अभी भी उसी नीति का पालन करेंगे, जिसका हम पहले करते थे, और वह नीति है कि चीन हमारा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत एक रिश्तेदार है’।
राजपक्षा परिवार और भारत सरकार के बीच पुराने रिश्ते चाहे जैसे भी रहे हों, लेकिन अब दोनों के लिए यही फायदेमंद है कि वे पुरानी बातों को भुलाकर अपने रिश्तों को नए आयाम दें। ऐसा इसलिए क्योंकि बेशक भारत सरकार का ज़्यादा झुकाव मैत्रीपाला सिरिसेना और रानिल विक्रमसिंघे सरकार की ओर रहा हो, लेकिन उसका भारत को कोई खास फायदा नहीं मिला। भारत सरकार को लगा था कि सिरिसेना भारत के हितों की रक्षा करने में सफल होंगे, लेकिन अपने कार्यकाल में वे श्रीलंका के हितों की रक्षा ही नहीं कर पाये। भारत को भी श्रीलंका में एक मजबूत नेता चाहिए जो भारत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर खरा उतर पाये। अब जब श्रीलंकाई वोटर्स ने गोटाबाया को अपना नया नेता चुना है, जो कि श्रीलंका में काफी लोकप्रिय भी है, तो अब भारत का भी इसी में फायदा है कि वह गोटाबाया के साथ ही अपने रिश्ते सुधारे।
वहीं गोटाबाया को भी भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने से ही फायदा होगा, क्योंकि श्रीलंका का नेता होने के नाते उनको अपने देश पर चीन का ज़रूरत से ज़्यादा प्रभाव मंजूर नहीं होगा। उनके देश पर पहले ही चीन का अत्यधिक कर्ज़ का भार है, और अगर वे भविष्य में भी चीन की ओर ज्यादा झुकाव रखेंगे, तो इससे श्रीलंका की स्वायत्ता खतरे में आना तय है। उनकी पूर्व की सरकार के समय पहले ही श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट चीन के हवाले हो चुका है, जो कि किसी भी श्रीलंकाई सरकार के लिए शुभ-संकेत नहीं है। इसके अलावा श्रीलंका में इस्लामिक आतंकवाद का खतरा भी बढ़ा है, जिसके विरुद्ध लड़ाई में श्रीलंका की राजपक्षा सरकार को भारत सरकार से काफी सहयोग मिल सकता है।
यही बड़ा कारण है कि जीत के बाद गोटाबाया ने भारत को लेकर काफी सकारात्मक संकेत दिये। उनकी जीत के बाद जब पीएम मोदी ने ट्वीट के माध्यम से उनको बधाई संदेश दिया, तो एक घंटे से भी कम समय में गोटाबाया ने पीएम मोदी का धन्यवाद करते हुए उनको रिप्लाई किया। इसके अलावा उन्होंने अपने शपथ-ग्रहण समारोह के लिए भी सांस्कृतिक रूप से भारत से जुड़े शहर अनुराधापुरा को चुना। उनके सलाहकार भी स्वयं इस बात को कह रहे हैं कि वे भारत के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता देंगे। यानि स्पष्ट है कि पिछले एक साल में कूटनीति और दूतावास के माध्यम से भारत सरकार ने जिस तरह राजपक्षा परिवार के साथ संबंधों को दुरुस्त करने के लिए कदम उठाए, उसी का यह नतीजा है कि आज गोटाबाया का राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना भारत के लिए चिंता की बात बिलकुल नहीं है।