पिछले दिनों देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में गोवंडी स्टेशन के पास चलती ट्रेन के सामने आने से एक भिखारी की मौत हो गई थी। रेलवे पुलिस ने भिखारी की पहचान 82 साल के बिरभीचंद आजाद के रूप में की। कहने को तो बिरभीचंद एक भिखारी था, लेकिन जब पुलिस इस भिखारी के घर पहुंची तो उसे 1.77 लाख रुपये के सिक्के और 8.77 लाख रुपये के फिक्स्ड डिपॉजिट के पेपर्स मिले। भीख मांगने को मजबूरी का नाम देकर भीख मांगने के अधिकार का समर्थन करने वाले लोगों का मुंह बंद कराने के लिए यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। भीख मांगना भारत में आज एक ऐसा स्थापित व्यवसाय बन चुका है जो बेरोजगारी के नाम पर लोगों को ‘रोजगार’ देता है। भीख मांगने का विरोध करने वालों का सबसे बड़ा तर्क यही होता है कि भीख मांगना व्यवसाय का माध्यम कतई नहीं हो सकता। हालांकि, दुर्भाग्य से आज देश में यही हो रहा है।
भीख को लेकर वर्ष 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बड़ा विवादित फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट ने तब भीख मांगने को लोगों के मूलभूत अधिकारों से जोड़कर प्रस्तुत किया और कहा कि कुछ लोगों के पास यह जीने का आखिरी तरीका होता है। अगर इसी तर्क का सहारा लिए जाए तो पेट भरने के लिए की जाने वाली चोरी को भी वैध करार दिया जाना चाहिए। भीख मांगना किसी भी सभ्य समाज का हिस्सा नहीं हो सकता, और इसीलिए इसके खिलाफ कानून भी बनाया गया था। कई देशों में अब भी भीख मांगना कानूनी रूप से अवैध है। भीख मांगना एक समस्या है और इसका समाधान निकालने के लिए हमें इसे समस्या के रूप में स्वीकार तो करना ही होगा।
भीख मांगना समस्या इसलिए है क्योंकि भारत में आज यह एक व्यवस्थित उद्योग बन चुका है। लाखों लोग आज सड़कों पर भीख मांगते हैं और इस उद्योग में सबसे ज़्यादा बच्चों का शोषण होता है। बच्चों को जानबूझकर कुपोषित रखा जाता है ताकि लोग उन्हें कुछ पैसे देने के लिए प्रेरित हों। यानि एक तो खुद यह उद्योग एक समस्या बनता जा रहा है, वहीं इसके साथ ही यह उद्योग अन्य अपराधों की जड़ भी बनता जा रहा है। बच्चों को अगवा कर इस उद्योग में धकेल दिया जाता है, और सरकार इनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकती क्योंकि कोर्ट के मुताबिक भीख मांगना कोई अपराध ही नहीं है।
अब आइए एक बार भीख उद्योग के कुछ आंकड़ों पर नज़र डाल ली जाए। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश का हर भिखारी औसतन महीने में 24 हज़ार रुपये कमाता है। वहीं 2011 की जनगणना के मुताबित देश में कुल 4,13,670 भिखारी हैं, जिसमें 2,21,673 पुरुष हैं, जबकि 1,91,997 महिलाएं हैं। इस हिसाब से भीख उद्योग का कुल सालाना राजस्व 9 अरब, 91 करोड़ 20 लाख रुपये बनता है। यह राशि 1 बिलियन डॉलर से कहीं ज़्यादा बनती है। यह देश में कई बड़ी कंपनियों के कुल सालाना राजस्व से कहीं ज़्यादा है।
बाल रोजगार भारत में गैर-कानूनी है। हालांकि, जब इसी उम्र में बच्चे बड़े-बड़े शहरों में भीख मांगते हैं, तो किसी को उनसे कोई समस्या नहीं होती। बच्चों की तस्करी की जाती है और उन्हें इस उद्योग में धकेल दिया जाता है। यानि बच्चों का शोषण भी सबसे ज़्यादा इसी उद्योग में किया जाता है।
हालांकि, समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं है। ये भिखारी देश के लिए बड़ा सुरक्षा खतरा भी होते हैं। जिस इलाके में ये सक्रिय होते हैं, उस इलाके के बारे में इन्हें सबकुछ पता होता है। यही कारण है कि देश के खिलाफ काम करने वाली ताकतों का भी ये सबसे आसान टार्गेट बन जाते हैं। गरीब होने की वजह से इन्हें पैसे का लालच देकर किसी भी जगह की महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई जा सकती हैं। यानि कुछ मामलों में अगर भीख देने को आतंक की फंडिंग कहा जाये, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगा। बेशक कुछ लोग इसे अतिशयोक्ति कह सकते हैं, लेकिन फिर भी यह सवाल उठता है कि आखिर इतना सारा पैसा जाता कहां है?
कुछ मामलों में यह देखने में आया है कि ये भिखारी अपने नाम पर बड़े-बड़े फ्लैट्स खरीद लेते हैं या फिर पैसे का अन्य संपत्तियाँ खरीदने में इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं देखने को मिलता। ज़्यादातर मामलों में पैसे का इस्तेमाल शराब और ड्रग्स जैसे नशे करने में इस्तेमाल किया जाता है। यानि जिस भूख के नाम पर ये भिखारी लोगों से पैसे को ऐंठते हैं, उसी पैसे का इस्तेमाल ये लोग शाम को शराब खरीदने में करते हैं और अन्य नशा करने में दुरुपयोग करते हैं।
इसके अलावा कई भिखारी भीख मांगने के नाम पर आम नागरिकों का सार्वजनिक उत्पीड़न करते हैं। ये भिखारी आम लोगों के लिए ना सिर्फ असुविधा का कारण बनते हैं, बल्कि उन्हें भीख देने के लिए जबरन मजबूर करते हैं। हालांकि, यह पूरी तरह वैध है क्योंकि इस जबरन वसूली को भीख का नाम दिया जाता है।
जैसा हमने बताया कि सभ्य समाज में भीख मांगना किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता। यही कारण है कि कई देशों में यह पूरी तरह गैर-कानूनी है। उदाहरण के तौर पर चीन, फ्रांस, डेनमार्क और फ़िनलैंड जैसे देशों में भीख मांगना पूरी तरह अवैध है। भीख मांगना का समर्थन करने वालों के अपने कुछ तर्क हो सकते हैं। हालांकि, इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि भीख उद्योग देश में कई अपराधों की जड़ है और इसे जल्द से जल्द उखाड़कर फेंकना ही देश के हित में होगा।