राजस्थान में सत्ता में आने के बाद से पुरानी भाजपा सरकार के कई फैसले पलट चुकी कांग्रेस ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों में कई बदलाव किये गये। गहलोत सरकार ने पहले स्कूली पाठ्यक्रम में सावरकर की जीवनी वाले हिस्से में बदलाव किया। अब इस सरकार ने इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रिसर्च (आईसीएचआर) के उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है जिसमें वीर सावरकर पर सेमीनार करने की अनुमति मांगी गई थी।
इकॉनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले पर आईसीएचआर के एक अधिकारी ने बताया कि “हमने राजस्थान यूनिवर्सिटी से परिसर में सावरकर पर एक सेमिनार आयोजित करने के लिए स्थान और अनुमति मांगी थी, लेकिन उन्होंने कहा कि हम कोई अन्य विषय चुन सकते हैं।” अधिकारी ने आगे कहा, “टॉक सीरीज में मुख्य रूप से ‘स्वतंत्रता संग्राम के 1857 के युद्ध पर सावरकर और उनके लेखन के बारे में झूठ का सामना’ पर केंद्रित होती।” वहीं इस पर राजस्थान यूनिवर्सिटी का इसपर कहना है कि, “सावरकर के कुछ पहलु खासे विवादास्पद थे, जिसके चलते सेमिनार के लिए जगह के अनुरोध अस्वीकार कर दिया।”
बता दें कि इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रिसर्च भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित एक स्वायत्त शैक्षणिक निकाय है। सावरकर पर आईसीएचआर के अन्य सेमिनार जयपुर, गुवाहाटी, पोर्ट ब्लेयर, पुणे और कुछ अन्य शहरों में आयोजित किए जाने थे। परन्तु राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने एक स्वायत्त शैक्षणिक निकाय द्वारा आयोजित किये जाने वाले सेमिनार को अनुमति न देकर अपनी सहिष्णुता का भी परिचय दिया है। एक स्वायत्त शैक्षणिक निकाय को कार्यक्रम आयोजित करने से रोक कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी राजस्थान सरकार ने हमला किया है।
भाजपा सरकार पर आये दिन असहिष्णुता का आरोप मढ़ने वाली कांग्रेस खुद असहिष्णु है जिसे गाँधी परिवार के गुणगान के अलावा कोई और क्रांतिकारी या नायक की सराहना रास नहीं आती। वैसे भी किसी भी राज्य में कांग्रेस सरकार से और उम्मीद भी की जा सकती है। इससे पहले राजस्थान की कांग्रेस क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी में बड़ा बदलाव कर एक तरह से उन्हें बदनाम करने का भद्दा प्रयास किया था। पाठ्यपुस्तक में कांग्रेस ने विनायक दामोदर सावरकर को वीर कहने की बजाय शर्मनाक तरीके से उन्हें दया की भीख मांगने वाला बताया था। जबकि वीर सावरकर एक स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रवादी, विचारक, लेखक और कवि होने के साथ साथ ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। हिंदुत्व के अनुयायी और पोषक विनायक दामोदर सावरकर को तीन साल पहले बीजेपी सरकार में तैयार पाठ्यक्रम में महान देशभक्त, वीर और महान क्रांतिकारी बताया गया था। कांग्रेस अपने शासन में इस स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव कर चुकी है।
बता दें कि विनायक दामोदर सावरकर के जन्मशताब्दी की तैयारी चल रही थी, तो उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वयं आयोजंकर्ताओं को अपनी शुभकामनाएँ भेजी थीं, और अपने शासनकाल दौरान 1970 में उन्होंने सावरकर के स्मरण में डाक टिकट भी जारी किया। इसके साथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से 11,000 रुपए दान किए थे। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने साल 1983 में फिल्म डिवीजन को आदेश दिया था कि वह ‘महान क्रांतिकारी’ के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाएं।”
कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा पहले वीर सावरकर को शिक्षा पाठ्यक्रम से बाहर करने के प्रयास के बाद एक स्वायत्त शैक्षणिक निकाय पर सेमिनार करवाने से रोक लगाना कांग्रेस के दोहरे मापदंड को दिखाता है।