10 नवंबर को पूर्व चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर टीएन शेषन की 86 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गयी। शेषन को 1990-1996 के बीच बतौर चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर उन्होंने देश की चुनावी प्रक्रिया का कायाकल्प करने में एक अहम भूमिका निभाई थी। टीएन शेषन 1955 के तमिलनाडु कैडर के आईएएस अफसर थे, जिन्होंने बतौर कैबिनेट सेक्रेटरी राजीव गांधी को अपनी सेवाएँ भी दी थी।
उन्हें बतौर चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर नियुक्त करने में भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है। स्वयं शेषन ने भी स्वामी के इस रोल को स्वीकार की है और उन्हें ये अवसर देने के लिए अपना आभार भी प्रकट किया है।
2013 में बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिये अपने साक्षात्कार के अनुसार, “शेषन का मानना है कि तत्कालीन विधि मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उनकी नियुक्ति में अहम योगदान किया था, जिसके लिए शेषन आज भी उनके आभारी हैं। स्वामी से उनके संबंध हावर्ड विश्वविद्यालय तक जाते हैं, जहां सरकार ने शेषन को लोक प्रशासन से संबन्धित कोर्स करने के लिए भेजा था, और स्वामी वहाँ पर विद्यार्थियों को अर्थशास्त्र पढ़ाते थे, उन्हीं विद्यार्थियों में से एक थे टीएन शेषन।
स्वामी चंद्रशेखर की सरकार (1990-1991) में सबसे वरिष्ठ मंत्री थे और उन्होंने विधि मंत्रालय के साथ-साथ वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय का डूअल पोर्टफोलियो भी संभाला था। दोनों दक्षिण भारतीय ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखते थे और भारतीय राजनीति और सार्वजनिक नीति से प्रभावित थे। स्वामी की पत्नी- रॉक्सना स्वामी ने अपनी आत्मकथा ‘इवेल्विंग विद सुब्रमण्यम स्वामी: ए रोलर कोस्टर राइड’ में शेषन के साथ स्वामी की आजीवन मित्रता की विस्तृत चर्चा करती हैं।
शेषन उम्र में भले ही बड़े थे लेकिन दोनों के बीच बराबरी वाली दोस्ती थी। कहा जाता है कि हार्वर्ड के दिनों में स्वामी को जब भी दक्षिण भारतीय खाने की तलब लगती थी तो वे शेषन के रूम पर पहुंच जाते थे। शेषन और स्वामी चाव से दही, चावल और रस्सम खाते थे।
टीएन शेषन ने बतौर देश के 10 वें मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में देश की निर्वाचन प्रणाली पर अपने प्रभुत्व की मुहर लगाई। उनका स्पष्ट निर्देश था कि मतदाताओं को रिश्वत देना या धमकाना, चुनाव के दौरान शराब का वितरण करना, चुनाव प्रचार के लिए आधिकारिक मशीनरी का इस्तेमाल करना, मतदाताओं की जाति या सांप्रदायिक भावनाओं का समर्थन करना, अभियानों के लिए धार्मिक स्थानों का उपयोग करना दंडनीय अपराध माना जाएगा। लाउडस्पीकर के प्रयोग के लिए भी पहले लिखित में अनुमति लेनी पड़ेगी। कांग्रेस से लेकर लालू के खिलाफ उन्होंने कोई नरमी नहीं बरती। बाहुबली नेता तो उनके सामने कांपते थे। कुल मिलाकर वह ऐसा दौर था जब नेता भगवान के बाद शेषन से ही डरते थे।
उन्होंने आदर्श चुनाव आचार संहिता को भी लागू किया, चुनाव खर्चों पर कड़ाई से निगरानी की और दीवार की भित्तिचित्र जैसी कई खामियों पर नकेल कसी। सभी पात्र मतदाताओं के लिए मतदाता पहचान पत्र उनकी निगरानी में ही जारी किया गया।
1994 में सभी को हैरत में डालते हुए उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री सीताराम केसरी और खाद्य मंत्री कल्पनाथ राय को मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए आड़े हाथों लिया और तत्कालीन पीएम को दोनों को पद से हटाने के लिए कहा। उस समय चर्चा हुई थी कि कहीं सीईसी ने सरकार को इस तरह की अनचाही सलाह देकर अपनी सीमाओं का उल्लंघन तो नहीं किया।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भारत के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और कई राजनेताओं के खिलाफ कई मामले को जनता के समक्ष उजागर किया है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो, कोयला आवंटन घोटाला हो, या फिर जयललिता के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति का मामला ही क्यों न हो, गांधी परिवार के भ्रष्टाचार को उजागर करने और उनके कोटेदार पी चिदंबरम के खिलाफ उनका धर्मयुद्ध विख्यात है। ठीक इसी तरह स्वामी ने टीएन शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की सलाह दी जिसके वजह से आज भारतीय चुनाव प्रक्रिया पर भारत ही नहीं पूरा विश्व आंख बंद करके विश्वास कर लेता है।