हाल ही में एक 43 वर्षीय पूर्व हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी की हत्या ने पूरे देश का ध्यान खिंचा। तिवारी ने लगभग 4 साल पहले पैगंबर मोहम्मद साहब पर कुछ अभद्र टिप्पणी की थी, जिसके बाद उनकी बेहद निर्मम हत्या कर दी गई। तिवारी के बयान को मोहम्मद साहब के प्रति अपमानजनक करार दिया गया था और मौलवियों ने तिवारी के खिलाफ फतवा जारी किया था। धार्मिक नेताओं में से एक ने घोषणा की थी कि जो भी कमलेश तिवारी का सिर कलम करेगा उसे 51 लाख रूपए का इनाम दिया जाएगा। कमलेश तिवारी की मौत की सजा के लिए लगभग एक लाख मुसलमान सड़कों पर उतर आए थे।
बता दें कि कमलेश तिवारी की बीते 18 अक्टूबर को लखनऊ स्थित उनके घर में घुसकर हत्या कर दी गई थी। दो आरोपियों अशफाक और मोईनुद्दीन ने गला रेतकर और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। मृत्यु से पहले गंभीर अवस्था में उन्हें अस्पताल भी ले जाया जा रहा था लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। लेकिन इस मामले में देश की लेफ्ट लिबरल मीडिया द वायर प्रोपेगेंडा फैलाने से बाज नहीं आ रही है। वामपंथियों के पक्ष में ढोल पीटने वाले दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने टुकड़े-टुकड़े गैंग के उमर खालिद की एक इंटर्व्यू ली है, जो यूट्यूब पर उपलब्ध है, उसका शीर्षक है क्या मुसलमान, मुसलमान की तरह बोल सकता है?
अपने कई साक्षात्कारों में नास्तिकता का ढोल पीटने वाले उमर खालिद ने दावा किया है कि हिंदू धर्म में उच्च जाति का वर्चस्व है और जब वे पाश इलाकों में गए तो उन्होंने पाया कि केवल उच्च जाति के लोगों ने ही घरों के बाहर नेमप्लेटों पर अपनी जाति लिखे हैं।
अभिव्यक्ति की आजादी की बात करने वाले उमर खालिद न तो कमलेश तिवारी की हत्या करने वालों के खिलाफ बोला और न ही उन्होंने उन लोगों के खिलाफ बोला जो तिवारी की हत्या का जश्न मना रहे थे। इसलिए यह समझ से परे है कि तिवारी की हत्या के बाद द वायर ने उमर खालिद जैसे किसी व्यक्ति का साक्षात्कार क्यों लिया। खालिद कोई प्रगतिशील मुसलमान नहीं हैं जो इस मुद्दे के बारे में संवेदनशील तरीके से बात कर सकते थे, बल्कि उनका पक्षपाती विचार उजागर हो गया है। द वायर को अगर तार्किक बात ही करनी होती तो केरल के राज्यपाल, आरिफ मोहम्मद खान जैसे किसी व्यक्ति को आमंत्रित कर सकता था, जो इस तरह के मुद्दों के प्रति उदार और प्रगतिशील दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।
अपूर्वानंद ने इंटरव्यू की शुरूआत तिवारी हत्याकांड में शिकार हुए एक पीड़ित व्यक्ति से की। उन्होंने सबसे पहले तिवारी को एक नफरती करार दिया। इसके बाद उन्होंने मात्र एक वाक्य में कहा कि ऐसे नफरती लोगों की हत्या की निंदा भी की जानी चाहिए। अपूर्वानंद यहीं नहीं रूके उन्होंने कहा कि कमलेश तिवारी की हत्या अभी भी एक रहस्य है। इसके साथ ही एंकर ने तिवारी के हत्यारों पर चर्चा करने से बचने की कोशिश की। उन्होंने यह भी बताने की कोशिश की कि चार साल पहले तिवारी ने मोहम्मद साहब पर जो बयान दिया था उस कारण उनकी हत्या नहीं हुई थी। यहां यह बताना जरूरी है कि कुछ दिन पहले कमलेश तिवारी हत्याकांड के दो मुख्य आरोपियों को गुजरात एटीएस ने गिरफ्तार किया था। दोनों संदिग्धों की पहचान 34 वर्षीय अशफाक हुसैन जाकिर हुसैन शेख और 27 वर्षीय मोइनुद्दीन खुर्शीद पठान के रूप में की गई है, दोनों सूरत के निवासी हैं। इन्हें एटीएस ने गुजरात-राजस्थान सीमा से गिरफ्तार किया गया था। प्राथमिक जांच से पता चला है कि दोनों ने हत्या की वारदात को “तिवारी के मोहम्मद साहब के खिलाफ वाले बयानों के प्रतिशोध में” किया था। ऐसे में यह स्पष्ट रूप से स्पष्ट है कि नबी के बारे में टिप्पणी के प्रतिशोध में भीषण हत्या की गई थी।
द वायर को इस बात से सहमत होने से पहले और क्या सबूत चाहिए कि तिवारी की हत्या वास्तव में हिंदूफोबिया और कट्टरपंथी इस्लामवाद का परिणाम था। द वायर जैसे वामपंथी पोर्टल जुनैद खान की हत्या जैसे अन्य मामलों में धैर्यवान नहीं दिखे, तब तो उन्होंने झट से निर्णय सुनाते हुए कहा कि इस हत्या में सांप्रदायिक कोण था। द वायर का यह तर्क यानि आर्टिकल बाद में गलत साबित हुआ। जब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने जमानत आदेश में कहा, “जानबूझकर या जानबूझकर घटना पैदा करने या असहमति पैदा करने के लिए किसी भी तरह की तैयारी का कोई सबूत नहीं है।”
पूरा साक्षात्कार इस बात पर आधारित था कि हिंदू धर्म के लोग मुसलमानों पर कैसे हमले कर रहे हैं और तिवारी की हत्या के बाद की घटनाएं मुसलमानों के लिए खतरा है। लेकिन अपूर्वानंद को पहले यह भी जानना होगा कि किस तरह से कमलेश तिवारी की हत्या के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग जश्न मना रहे थे, एक दूसरे को बधाईयां दे रहे थे। जिसके बाद हिंदुओं में गुस्सा का माहौल बना और उन्होंने भी पैगंबर के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए हैश टैग के साथ ट्वीट करना शुरू कर दिया। अब सोचने वाली बात यह है कि तिवारी की नृशंस हत्या करने वाले हत्यारों व इस हत्या पर खुशी मनाने वाले लोगों के खिलाफ बोलना कैसे उमर खालिद और पूरे मुसलमानों पर हत्या है? क्या ये अपूर्वानंद बता सकते हैं?
उमर खालिद ने दावा किया कि वह ‘प्रेम’ के साथ ‘नफरत’ का मुकाबला कर रहे थे, उन्होंने दावा किया कि इस्लामी पैगंबर का अपमान वास्तव में मुसलमानों के स्वाभिमान का अपमान था। उन्होंने कहा कि जो अपमानजनक टिप्पणी की गई, वह इस बहाने नजरअंदाज नहीं की जा सकती थी। इसके बाद उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आज जो अपमान के रूप में प्रकट हो रहा है, वह कल मुस्लिमों पर हमले के रूप में बदल जाएगा। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि खालिद जिस इस्लामिक पैगंबर के अपमान की बात कर रहे थे, उसका सीधा कारण तिवारी की हत्या भी है। यह ठीक उसी तरह का डर-भय है, जिससे यह विश्वास पैदा हुआ कि तिवारी इस्लाम के लिए खतरा थे और इसीलिए उन्हें क्रूर तरीके से खत्म कर दिया गया। बाद में, उमर खालिद ने यह भी तर्क दिया कि मुसलमानों को “क्रोध में वृद्धि” क्यों करनी चाहिए, अन्य चीजों के अलावा, अपने आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए।
इस पूरे इंटरव्यू में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि मुस्लिम एक पीड़ित वर्ग है जिसे देश में सताया जाता है, हिंदू उन्हें प्रताड़ित करते हैं। नास्तिकता की बात करने वाले उमर खालिद पैगंबर के लिए धार्मिक हो जाते हैं। वहीं तिवारी की हत्या को पूरे इंटरव्यू में बस मुसलमानों को डराने व उन्हें जागृत करने के लिए प्रयोग किया गया है।