कई सदियों तक हर संकट से जूझने के बाद आज हिंदुओं को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का अधिकार आखिर मिल गया है। लाखों लोगों ने इस अभियान के लिए अनगिनत बलिदान दिये हैं। वीएचपी के पूर्व नेता प्रवीण तोगड़िया के अनुसार, “लगभग 4 लाख लोगों ने राम मंदिर के निर्माण के लिए 450 वर्ष लंबे अभियान में अपने प्राणों की आहुति दी है। इसमें कोठारी बंधु भी शामिल हैं जो 1990 में कार्तिक पूर्णिमा पर 16 कारसेवक अयोध्या में मुलायम सिंह यादव (तत्कालीन CM) द्वारा बर्बर पुलिस फायरिंग में शहीद हो गए थे।”
अपने प्राणों की आहुति देने वालों में कोलकाता के कोठारी बंधु भी शामिल थे। 22 वर्षीय राम कुमार कोठारी और 20 वर्षीय शरद कोठारी ने 69 कारसेवकों का जत्था लेकर बंगाल से अयोध्या की ओर 1990 में कूच किया था। परंतु तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर इन्हीं कारसेवकों के विरुद्ध फायरिंग की गयी थी। अक्टूबर 1990 में मुलायम ने घोषणा की थी, “आने दीजिये उन्हें अयोध्या। हम उन्हें कानून का पाठ पढ़ाएंगे। कोई मस्जिद नहीं तोड़ी जाएगी”। उन्हीं के निर्देशों पर यूपी पुलिस द्वारा की गयी फायरिंग में कोठारी बंधु शहीद हो गए थे।
अब बंगाल की भाजपा इकाई ने इन दोनों की स्मृति में एक स्मारक बनाने का निर्णय लिया है। भाजपा के राष्ट्रीय जनरल सेक्रेटरी कैलाश विजयवर्गीय ने उत्तरी कोलकाता में उनका स्मारक बनाने का निर्णय लिया है। राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष के अनुसार, “हमारे कुछ संगठन इसे बनाने में सहायता करेंगे। समाज को ज्ञात होना चाहिए कि इन दोनों भाइयों ने हमारे धर्म के लिए क्या किया”।
इसी संदर्भ में राज्य सभा सांसद एवं बेबाक पत्रकार स्वपन दासगुप्ता ने भी कोठारी बंधु के घर पहुँच कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित की और कहा- “जहां भारत अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर पर निर्णय का उत्सव मना रहा है, हमें उन्हे भी याद करना चाहिए जिन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनर्स्थापना के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। आज मैंने कोठारी बंधु के परिवार से बातचीत की, जो 1990 के कारसेवा में वीरगति को प्राप्त हुए थे”।
As India celebrates the verdict on the Ram Janmabhoomi temple in Ayodhya, let’s not forget the sacrifices of those who fought for restoration of national honour. Today I visited the family of brothers Ram Kumar & Sharad Kothari of Kolkata, martyred during the karsevabof 1990. pic.twitter.com/BhmNAJfRQN
— Swapan Dasgupta (@swapan55) November 10, 2019
बता दें कि 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों का एक समूह अयोध्या शहर में इकट्ठा हुआ था। वे राम मंदिर के निर्माण के लिए शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे। परंतु मुलायम सिंह यादव ने 30 अक्टूबर, 1990 को पुलिस को इन कारसेवकों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया। गोलीबारी की घटना के कारण 16 कारसेवकों की दर्दनाक मृत्यु हो गई।
आज तक, स्यूडो सेकुलर ब्रिगेड में से कोई भी इस क्रूर गोलीबारी की घटना का एक उचित चित्रण नहीं दे पाया है। विरोध करने वाले कारसेवकों ने कानून और व्यवस्था के लिए कोई खतरा नहीं पैदा किया था, परंतु विरोध को नियंत्रित करने के कई अन्य तरीके हैं। ऐसे में अकारण किसी निर्दोष नागरिक की हत्या करवाना भयावह और अनुचित है।
इतना ही नहीं, मुलायम सिंह यादव ने भी इस निंदनीय घटना में अपनी जान गंवाने वालों के परिवारों की चोटों पर नमक छिड़कते हुए अपने कृत्य को जायज ठहराया था। पिछले वर्ष मुलायम सिंह ने अनायास ही अपने आदेशों को सही ठहराया और यहां तक कहा कि “यदि देश की एकता और अखंडता के लिए अधिक लोगों को मारना आवश्यक होता, तो सुरक्षा बलों ने किया होता”।
2016 में तत्कालीन सपा सुप्रीमो ने कहा था कि उन्होंने कार्रवाई (कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश) दिए थे, क्योंकि यह “मुस्लिम समुदाय के विश्वास“ को बनाए रखने और “एकता” को बनाए रखने के लिए आवश्यक था। इससे स्पष्ट है कि उन कारसेवकों को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की वेदी पर अपनी जान गंवानी पड़ी। जबकि देश की एकता एक मात्र दिखावा था, असली इरादा एक विशेष समुदाय को खुश करना था।
कारसेवकों जिस कारण के लिए विरोध कर रहे थे, उन्हें भुलाया नहीं जाना चाहिए। उन्होंने एक विशेष कारण के लिए अपने जीवन का बलिदान किया है, उन्हें हमारे हाल के दिनों में एक विशेष स्थान देता है। वे एक मांग के लिए विरोध कर रहे थे जो हिंदू समुदाय को बहुत संवेदनशील मुद्दे पर गहराई से चिंतित करता है। तथ्य यह है कि वे घोर अन्याय और अपने मूल अधिकारों की मांग के लिए आवाज उठा रहे थे, आज जिसके पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुना दिया है। अब उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देकर सम्मान किया किया जाना चाहिए। ऐसे में एक स्मारक उन शहीदों को श्रद्धांजलि होगी, जिन्होंने प्रभु राम के लिए अपना जीवन बलिदान किया था।