विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कल मीडिया ग्रुप इंडियन एक्स्प्रेस के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया जहां उन्होंने पिछले कुछ सालों में भारत की विदेश नीति में आए कई बदलावों का उल्लेख किया। एक तरफ जहां उन्होंने भारतीय कूटनीति को नयी शक्ल देने की बात कही, तो वहीं उन्होंने आज़ादी के बाद भारत की विदेश नीति को कई चरणों में बांटते हुए पिछली सरकारों की कई उपलब्धियों और नाकामियों पर भी प्रकाश डाला। इस दौरान उन्होंने अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर भी अपने विचार रखे और कहा कि हम सभी को भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर निराश होने की कोई ज़रूरत नहीं है और देश की अर्थव्यवस्था थोड़े ही समय में ट्रैक पर लौट आएगी।
विदेश मंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत में सबसे बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि भारत के विकास में कोई बाहरी ताकत रुकावट नहीं बन रही है, बल्कि दिल्ली में बैठे कुछ लोगों की सीमित सोच देश के विकास में रोड़ा अटका रही है। इसके साथ उन्होंने कहा कि भारत की कूटनीति आज़ादी के बाद सच्चाई से कहीं दूर ही भटकती दिखाई दी। उन्होंने कहा ‘हम इतिहास में कई घटनाओं का फायदा उठाकर उन्हें अपने हित में इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन हमने ऐसा किया नहीं। अगर आप वैश्विक ताकत बनना चाहते हैं, तो आपको दुनिया में बदलते समीकरणों को पहचानना होगा और जोखिम उठाना होगा। बिना जोखिम उठाए आप अपने सपनों को साकार नहीं कर सकते हैं’।
इसके बाद विदेश मंत्री ने पाकिस्तान और चीन को लेकर भी महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि हमें अनुभव की कमी होने की वजह से कभी पाकिस्तान के नापाक मंसूबों का पता ही नहीं चल पाया, इसके अलावा हम 50 के दशक में यह समझने में पूरी तरह विफल हो गए हमारे बगल में चीन नाम का एक कड़ा प्रतिद्वंद्वी पैदा हो रहा है’। उन्होंने कहा ‘पाकिस्तान ने आतंकवाद को उद्योग बना लिया है। वह भारत पर दबाव बनाने के लिए अपनी जमीन पर लगातार आतंकियों को समर्थन दे रहा है। इसका जवाब देना अब जरूरी हो गया है’। आगे उन्होंने कहा कि ‘1972 में हुए शिमला समझौते से सिर्फ पाकिस्तान में विद्रोह और जम्मू-कश्मीर में समस्याएं ही बढ़ी हैं, हम पाकिस्तान से सभी विवादों पर उसी स्थिति में बात करेंगे, जब वह सीमा पार आतंकवाद पर लगाम लगाएगा। विश्व मंच पर एक समय भारत की स्थिति काफी अच्छी थी, लेकिन चीन के साथ 1962 की जंग ने इसे काफी नुकसान पहुंचाया। इसके बाद पाकिस्तान से भी 1965 का युद्ध हुआ। यह भारत के लिए बहुत बुरा दौर रहा था’।
उन्होंने समझाया कि कैसे भारत ने इतिहास में कई गल्तियाँ की, जिसका खामियाजा भारत को आज तक भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि चीन से हुए युद्ध से पहले वर्ष 1960 में झोउ एनलाई भारत आए थे, जो कि चीन के प्रथम प्रधानमंत्री थे। उस समय अगर उनसे कूटनीतिक माध्यम से विवाद को हल करने की कोशिश की गयी होती, तो शायद वर्ष 1962 के युद्ध को टाला जा सकता था’।
इसके बाद उन्होंने अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर भी खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने RCEP पर बोलते हुए कहा ‘और तय हुआ कि इस समय खराब समझौते से अच्छा है कि कोई समझौता न किया जाए। यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि आरसीईपी पर फैसले का मतलब क्या है। इसका मतलब ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ से कदम वापस खींचना नहीं है, जोकि किसी भी मामले में दूर तक और समकालीन इतिहास में गहराई से निहित है’।
अपने इस भाषण से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने फिर एक बार साबित कर दिया कि भारतीय विदेश नीति पर बोलने के लिए उनसे बेहतर कोई व्यक्ति नहीं हो सकता और भारतीय विदेश मंत्रालय का नेतृत्व करने के लिए वे ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। वे एक अनुभवी राजनयिक हैं और सफल कूटनीतिज्ञ हैं। इसीलिए मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उनको विदेश मंत्री बनाया गया था। अब तक देश को दी अपनी सेवाओं के आधार पर इस पद के लिए वे सबसे काबिल व्यक्ति के तौर पर उभरकर सबके सामने आए हैं।