जब से नागरिकता संशोधन बिल सदन के पटल पर रखा गया तब से ही विरोधी पार्टियां इसके विरोध में खड़ी हो गयीं और देश भर में इस कानून के बारे में दुष्प्रचार किया जा रहा है। इसी दुष्प्रचार की वजह से कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन भी देखने को मिला और सबसे अधिक प्रदर्शन देखने को मिला पश्चिम बंगाल में। हालांकि, दिल्ली में भी कम नहीं है और यहाँ भी पुलिस पर पत्थरबाजी की गयी थी लेकिन पश्चिम बंगाल की हालत को देख कर ऐसा लग रहा था न तो सरकार को चिंता है और न ही पुलिस प्रशासन को। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो स्वयं विरोध प्रदर्शन का आगे से न सिर्फ नेतृत्व कर रही हैं बल्कि, राज्य कोष से इस कानून के विरोध में पोस्टर भी लगवाने का फैसला किया है। यह स्पष्ट रूप से टैक्सपेयर्स के रुपयों का गलत इस्तेमाल है। राज्य में अराजकता इतनी बढ़ गयी है कि ऐसा लगने लगा है कि पश्चिम बंगाल अब दंगाइयों के कब्जे में जा चुका है। राज्य कि स्थिति देखते हुए राष्ट्रपति को तुरंत राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए।
बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून पारित होने के बाद से ही पश्चिम बंगाल के बांग्लादेश के सटे जिलों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गया था। यहाँ तक कि स्वयं मुख्यमंत्री ने यह ऐलान किया था कि वह इस कानून को पश्चिम बंगाल में नहीं लागू होने देंगी। हालांकि, अगर वह इस कानून को नहीं लागू करती है तो संविधान का ही उल्लंघन करेंगी जिसकी दुहाई वो बार बार देती रहती हैं।
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 256 के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्तियां इस तरह प्रयोग में लाई जाएं कि संसद द्वारा पारित विधियों का पालन हो सके। क्योंकि यह बिल संसद में पारित हो कर कानून बना है तो यह राज्यों की ज़िम्मेदारी है कि वह इसे लागू करे। सिर्फ यही नहीं संविधान के अनुसार नागरिकता एक केंद्रीय विषय है और इस पर कानून बनाने से लेकर लागू करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। संघ सूची (Union List) भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में वर्णित कुछ विषयों की सूची है जिसमें दिये गये विषयों पर केवल केन्द्र सरकार कानून बना सकती है। इस सूची में नागरिकता 17वें स्थान पर आता है। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 11 से नागरिकता अधिनियम में संशोधन के लिए संसद के पास विशेष अधिकार है।
ऐसे में ममता बनर्जी अगर इस कानून को नहीं लागू करती है तो यह स्पष्ट रूप से संविधान का अपमान होगा।
पश्चिम बंगाल कि हिंसा को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि ममता बनर्जी यह जानबूझकर होने दे रही है। बता दें कि पश्चिम बंगाल राज्य के चार जिलों में तनाव के हालात हैं। मुर्शिदाबाद, हावड़ा, मालदा और उत्तर 24 परगना जिले हिंसा के केंद्र में हैं। शनिवार को प्रदर्शनकारियों ने 17 बसों को आग के हवाले कर दिया। इसके साथ ही पांच ट्रेनों को भी जला दिया गया। हिंसा के दौरान पुलिस की गाड़ियों और फायर ब्रिगेड को निशाना बनाने के साथ ही आधा दर्जन रेलवे स्टेशनों में तोड़फोड़ की गई। कई जगह प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच आमने-सामने भिड़ंत हुई। मुर्शिदाबाद के जंगीपुर में तो बच्चों को ढाल बनाकर पुलिस पर हमला करने की जानकारी सामने आई है।
नैशनल और स्टेट हाइवे ठप होने की वजह से राज्य में हजारों मुसाफिर फंस गए हैं। साउथ ईस्टर्न रेलवे ने हावड़ा-खड़गपुर रूट पर 15 ट्रेनों को पूर्ण रूप से और 10 रेलगाड़ियों को आंशिक रूप से कैंसल कर दिया है। लंबी दूरी की कम से कम 28 ट्रेनों को रद्द किया गया है। इसके साथ ही 50 लोकल ट्रेनें भी कैंसल कर दी गई हैं। कई ट्रेनों को बीच रास्ते में ही रोकना पड़ा है।
हावड़ा में कोना एक्सप्रेस-वे हिंसक प्रदर्शनों का केंद्रबिंदु बना हुआ है। यहां प्रदर्शनकारियों ने यात्रियों को उतारकर 17 सिटी बसें फूंक दीं। बता दें कि यह इलाका राज्य सचिवालय से तकरीबन 10 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां तक कि भीड़ ने आग बुझाने आ रही फायर ब्रिगेड का रास्ता रोकने की कोशिश की। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव करते हुए कई गाड़ियों को जला दिया, जिससे यहां पांच घंटे तक ट्रैफिक बंद रहा।
इतना होने के बाद भी पश्चिम बंगाल पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। अगर प्रशासन ने चाहा होता तो मजाल है कोई भीड़ किसी भी सार्वजनिक वस्तु को नुकसान पहुंचा दें। इतनी हिंसा स्पष्ट रूप से प्रायोजित लग रही है। अब तो कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भी संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ जारी हिंसक प्रदर्शनों के बीच सोमवार को पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था के संबंध में उठाए गए कदमों पर राज्य सरकार को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
इसी से स्पष्ट होता है कि राज्य अब अराजक तत्वों के हाथ में चला गया है इसे तुरंत राष्ट्रपति को अनुच्छेद 356 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र में लेना चाहिए जिसे राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।