ये दुनिया जो है, ये दो धड़ों में प्रमुख रूप से बंटी है। या तो आप किन्ही कारणों से वामपंथी हैं, या फिर आप किन्ही कारणों से दक्षिणपंथी है। भारत में स्थिति थोड़ी ज़्यादा जटिल है। यहाँ पर या तो वामपंथ के मुक़ाबले आप खुलेआम दक्षिणपंथी या फिर दबी आवाज़ में दक्षिणपंथ का समर्थन करते हैं, और फिर आते हैं अर्नब गोस्वामी जैसे लोग, जो मौके पर चौका मारने में विश्वास रखते हैं।
हाल ही में पत्रकार अर्नब गोस्वामी ने सभी को चौंकाते हुए सीएबी पर एक अलग मत रखा। वे रिपब्लिक चैनल पर सीएबी पर हो रहे बातचीत पे कहते हैं, “मैं सीएबी पर आश्वस्त नहीं हूँ। भाजपा संघ परिवार को खुश करने का प्रयास कर रही है। यहाँ मुद्दा घुसपैठ का है, यहाँ मुद्दा धर्म का कभी नहीं था। मैंने हमेशा कहा है कि भारत भारतीयों के लिए है। अब भाजपा कहती है कि भारत पाकिस्तानियों, अफगानियों और बांग्लादेशियों के लिए है, परंतु एक भी मुसलमान भारत में नहीं आ सकता। ये हास्यास्पद है, और मैं नागरिकता संशोधन विधेयक में इन बदलावों का विरोध करता हूँ”।
परंतु अर्नब यहीं नहीं रुके। उन्होने आगे यह भी कहा, ‘पाकिस्तान या बांग्लादेश से आये हिन्दू जॉर्डन जाये या मलेशिया, हमें उससे क्या? भाजपा ने विदेशियों के घुसपैठ पर अपनी पोज़ीशन को काफी नुकसान पहुंचाया है”।
अब बता दें कि नागरिकता संशोधन विधेयक [जो अब एक अधिनियम हो चुका है] अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों, जैसे हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई समुदायों से आने वाले लोगों को एक निश्चित समय सीमा पूरी करने के एवज में भारतीय नागरिकता प्रदान करता है। यह किसी भी स्थिति में भारतीय मुसलमानों की नागरिकता न छीनता है, और न ही उन्हें भारत में शरण लेने से रोकता है।
इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार स्पष्टीकरण भी दिया है, परंतु मीडिया की भ्रामक रिपोर्टिंग पूर्वोत्तर में स्थिति को भड़काने के अलावा और कुछ नहीं कर रही है, और अब विडम्बना की बात तो यह है कि अर्नब गोस्वामी भी इसी भ्रामक कवरेज को बढ़ावा दे रहे हैं।
परंतु ऐसा पहली बार नहीं है जब अर्नब गोस्वामी ने किसी अहम मुद्दे पर ऐसी अतार्किक रिपोर्टिंग की हो। 2018 में जब सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के पीछे केरल सरकार ने अयप्पा भक्तों पर एक दमनकारी अभियान चलाया था, तब अर्नब गोस्वामी ने न केवल महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया, अपितु उसका विरोध करने वालों को संकीर्ण मानसिकता वाला भी बताया। यदि बात समानता की होती, तो निस्संदेह ये एक स्वागत योग्य कदम होता, परंतु देश के असंख्य मंदिरों में सबरीमाला का तीर्थ उन चंद मंदिरों में से एक है, जिनकी अपनी विचित्र परम्पराएं हैं। देश में कुछ ऐसे भी मंदिर, जहां पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है, पर अर्नब गोस्वामी को उनका उल्लेख करने में सांप सूंघ जाता है।
इतना ही नहीं, जब कठुआ में एक बच्ची से दुष्कर्म और हत्या का मुद्दा राष्ट्रीय मीडिया ने उठाया, तो बिना जांच पड़ताल किए अर्नब गोस्वामी ने वामपंथियों की भांति न केवल हिन्दू धर्म पर दुष्कर्म समर्थक होने का आरोप लगाया, अपितु अपने मीडिया ट्रायल में आरोपियों को दोषी ठहराने का प्रयास भी किया।
ऐसे में अब एक प्रश्न उठता है – क्या अर्नब गोस्वामी वास्तव में दक्षिणपंथी हैं? अगर आर्थिक और सैन्य दृष्टिकोण से देखा जाये, तो निस्संदेह वे दक्षिणपंथी लगते हैं। परंतु दक्षिणपंथी होने का सबसे मूलभूत आवश्यकता है अपनी संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए प्रतिबद्ध होना, और यहीं पर अर्नब गोस्वामी मात खाते हैं। शनि शिंगणापुर हो, सबरीमाला हो, या फिर सीएबी पर उनके वर्तमान विचार, अर्नब सांस्कृतिक रूप से कभी भी दक्षिणपंथी नहीं रहे है। जब सबरीमाला में दो महिलाएं मंदिर के प्रांगण में घुसने में सफल रहीं, तो अर्नब गोस्वामी द्वारा संचालित रिपब्लिक टीवी ने इसका समर्थन करते हुए इस कृत्य को ‘एक ऐतिहासिक कदम बताया।’
ऐसे में सीएबी का अतार्किक विरोध कर अर्नब गोस्वामी अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर रहे हैं, क्योंकि वे न केवल अपनी विचारधारा से विमुख हो रहे हैं, बल्कि अपने प्रमुख दर्शकों की भावनाओं का भी उपहास उड़ा रहे हैं, जो सांस्कृतिक रूप से दक्षिणपंथी हैं। स्वघोषित राष्ट्रवादी अर्नब गोस्वामी ने जिस तरह से सीएबी का विरोध किया है, उसे जनता कतई नहीं भूलने वाली है।