आंध्र प्रदेश के सुप्रसिद्ध तिरुपति तीर्थस्थल का प्रबंध संभालने वाले तिरुमला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड ने यूपी सरकार और जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश के प्रस्ताव को स्वीकारते हुए दोनों राज्यों में और भगवान विष्णु के स्वरूप भगवान बालाजी का1 मंदिर स्थापित करने का निर्णय लिया है। उत्तर प्रदेश में ये मंदिर वाराणसी में निर्मित किया जाएगा, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है, और जम्मू कश्मीर में ये मंदिर जम्मू क्षेत्र में निर्मित किया जाएगा।
बोर्ड अध्यक्ष वाई वी सुब्बा रेड्डी के अनुसार, “जम्मू कश्मीर एवं उत्तर प्रदेश की सरकारों ने हमें प्रस्ताव दिया कि बालाजी स्वामी का मंदिर इन दोनों राज्यों में बनाया जाये, जिसके लिए उन्होंने आवश्यक भूमि भी प्रदान करने का विश्वास दिलाया”।
यहाँ पर ये ध्यान देना आवश्यक है कि तिरुमला तिरुपति देवस्थानम नामक तीर्थस्थल देश के सबसे धनाढ्य तीर्थ स्थलों में शामिल है। विश्व में सभी धार्मिक स्थलों में हिन्दू तीर्थस्थल सबसे समृद्ध धार्मिक स्थल माने जाते हैं। सनातनी हिन्दू धार्मिक उद्देश्यों के लिए काफी धन दान करते हैं, इसलिए हिन्दू मंदिरों में सदियों से धन की कोई कमी नहीं है। वैटिकन में हर वर्ष आने वाले आगंतुकों से लगभग दोगुनी संख्या में लोग तिरुपति देवस्थानम के दर्शन के लिए पधारते हैं। मंदिर के एक अफसर के अनुसार, “तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और शेष भारत के अलावा लंदन, सिंगापुर जैसे विदेशी शहरों से भी बड़ी संख्या में तीर्थयात्री यहाँ पर पधारते हैं”।
तिरुपति देवस्थानम कितना समृद्ध है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2019-20 के वित्तीय वर्ष में तिरुमला तिरुपति देवस्थानम का राजस्व 3116.25 करोड़ रुपये, जिसके अनुसार ये विश्व के सबसे अमीर धार्मिक स्थलों में शामिल है। श्रीवरी हुंडी यानि दानपेटी में डाले जाने वाले रुपयों का कुल हिसाब ही 1280 करोड़ रुपये हैं। टीटीडी का वार्षिक राजस्व पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेश के वार्षिक व्यय का लगभग आधा है।
परंतु तिरुपति के वैभव का अक्सर दुरुपयोग भी हुआ है। आदर्श स्थिति में हर धार्मिक स्थल के भांति हिन्दू मंदिरों की बागडोर उसके भक्तों के हाथ में होनी चाहिए। परंतु देश के विभिन्न राज्य सरकारें अधिकांश हिन्दू स्थलों का प्रशासन अपने हाथों में ली हुई है, और ऐसे ही तिरुपति तिरुमला देवस्थानम की बागडोर आंध्र प्रदेश सरकार के हाथ में है। यूं तो वर्तमान अध्यक्ष वाई वी सुब्बा रेड्डी मंदिर को सुचारु रूप से चला रहे हैं, परंतु पूर्ववर्ती सरकारों के बर्ताव को देखते हुए संदेह का स्थान बना हुआ है।
प्राचीन भारत में धार्मिक स्थलों पर शासन का बहुत कम प्रभुत्व होता था, जिसके कारण मंदिर केवल दार्शनिक स्थल न होकर सभ्यता का एक अहम प्रतीक बन जाते थे। वे बैंक का भी काम करते थे, गुरुकुलों को भी बढ़ावा देते थे और साथ ही साथ व्यापारियों को कर्ज़ भी प्रदान करते थे। जब विदेशी आक्रांता मंदिरों को निशाने पर लेते थे, तो इसके पीछे का प्रमुख ध्येय केवल अपनी धार्मिक प्रभुत्व दर्शाना ही नहीं होता था, अपितु इन मंदिरों में स्थित अकूत धन संपत्ति पर अपना अधिकार जमाना भी होता था।
पिछले एक वर्षों से धीरे धीरे ही सही, पर मंदिरों पर भक्तों के पुनः अधिकार प्राप्त करने हेतु एक सुनियोजित अभियान का आरंभ हो चुका है। इसी दिशा में एक सकारात्मक कदम उठाते हुए ओडिशा सरकार ने पुरी के गोवर्धन मठ का प्रबंधन पुरी के शंकराचार्य को सौंपा है। अब जिस तरह से तिरुपति तिरुमला देवस्थानम देश के कोने कोने में बालाजी स्वामी के मंदिर स्थापित करना चाहता है, उससे हमारे देश के धार्मिक पुनरुत्थान का मार्ग प्रशस्त हो चुका है।