सोमवार को नागरिकता संशोधन बिल यानि Citizenship Amendment Bill लोक सभा से पारित हुआ। कई दल भाजपा के साथ थे तो कई विरोध में, इसी कारण इस मुद्दे पर लगभग 9 घंटे लंबी बहस चली। इस दौरान 50 से ऊपर सदस्यों ने बहस में भाग लिया। भाजपा का साथ देने वालों में JDU यानि जनता दल यूनाइटेड भी थी। यह आश्चर्य की बात थी क्योंकि अभी तक नीतीश कुमार की जेडीयू ट्रिपल तलाक और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों को लेकर पर भाजपा के निर्णय के खिलाफ थी। परन्तु जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने पार्टी से अलग ही राग अलापा है। ऐसा लग रहा है कि PK अब पार्टी लाइन से अलग हो कर JDU को छोड़ने का मन बना चुके है। आजकल जिस तरह के वो ट्वीटस कर रहे हैं उसे देखकर तो यही लगता है।
किशोर ने ट्वीट कर कहा, ‘हमें बताया गया था कि नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 नागरिकता प्रधान करने के लिए और यह किसी से भी उसकी नागरिकता को वापस नहीं लेगा। लेकिन सच यह है कि यह नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस के साथ मिलकर सरकार के हाथ में एक हथियार दे देगा। जिससे वह धर्म के धार पर लोगों के साथ भेदभाव कर और यहां तक कि उनपर मुकदमा चला सकती है।’
We are told that #CAB is bill to grant citizenship and not to take it from anyone. But the truth is together with #NRC, it could turn into a lethal combo in the hands of Government to systematically discriminate and even prosecute people based on religion.#NotGivingUp
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 12, 2019
इससे पहले कल यानि बुधवार को उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन करने से पहले जदयू नेतृत्व को उन लोगों के बारे में एक बार जरूर सोचना चाहिए जिन्होंने साल 2015 में उन पर भरोसा जताया था। हमें नहीं भूलना चाहिए कि 2015 के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए जदयू और इसके प्रबंधकों के पास बहुत रास्ते नहीं बचे थे।’
While supporting #CAB, the JDU leadership should spare a moment for all those who reposed their faith and trust in it in 2015.
We must not forget that but for the victory of 2015, the party and its managers wouldn’t have been left with much to cut any deal with anyone.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 11, 2019
इससे पहले लब यह विधेयक लोक सभा से पारित हुआ था तब भी उन्होंने पार्टी के स्टांस पर निराशा जताते हुए ट्वीट किया था और लिखा, “धर्म के आधार पर नागरिकता के अधिकार में भेदभाव करने वाले बिल का जेडीयू द्वारा समर्थन दिया जाना निराशाजनक हैं। यह पार्टी के संविधान से मेल नहीं खाता जिसमें धर्मनिरपेक्ष शब्द पहले पन्ने पर तीन बार आता है। पार्टी का नेतृत्व गांधी के सिद्धांतों को मानने वाला है”।
जब प्रशांत किशोर ने इस तरह का बागी रुख अपनाया तो इस पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने बुधवार को साफ-साफ शब्दों में कहा कि जो भी नेता अनावश्यक बयान दे रहे हैं उससे पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। चाहे कोई भी हो उसे नीतीश कुमार के व्यवक्तित्व, नेतृत्व और फैसले पर सवाल उठाने की इजाजत नहीं है।
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन बिल पर जेडीयू पहले सरकार को समर्थन करने के मूड में नहीं थी, लेकिन रविवार को पार्टी ने अपने फैसले पर यू-टर्न लिया और इस बिल पर सरकार का समर्थन करने का फैसला लिया। इसका मतलब नीतीश को बिहार विधान सभा चुनाव की याद आ गई और वह यह जानते हैं कि उनकी पार्टी भाजपा के बिना विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकती है। नीतीश कुमार सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अब जब प्रशांत किशोर ने पार्टी से विपरीत लाइन ली है तो अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश प्रशांत किशोर को कब पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते है। अब हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसके पीछे का कारण भी आपको समझा देते हैं।
दरअसल, भारत के राजनीतिक परिदृश्य को देखे तो यहां 2 तरह की पार्टियां दिखाई देती हैं, पहली कैडर आधारित पार्टी और दूसरी सुप्रीमो आधारित पार्टी जहां सिर्फ सुप्रीमो की चलती है। भारत में 2 ही पार्टीयों को कैडर आधारित पार्टी कहा जा सकता और वो दो पार्टियां है भाजपा और कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया। हालांकि, भारत में CPI का बहुत ही कम जनाधार है और यह भी देश के कुछ ही हिस्सों तक ही सीमित है। इसका मतलब यह हुआ कि भाजपा ही सबसे बड़ी कैडर आधारित पार्टी है।
इन दोनों के अलावा भारत की अधिकतर राजनीतिक पार्टियां सुप्रीमो पर आधारित है। आप चाहे किसी का भी नाम लें, सपा, बसपा, डीएमके जैसे कई उदाहरण हैं, और जो भी सुप्रीमों के खिलाफ जाता है या तो उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया जाता है या उन्हें अप्रासंगिक बना दिया जाता है। जेडीयू यानि कि नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड भी इसी तरह की पार्टी है। यहाँ कर्ता भी नीतीश है धर्ता भी नीतीश ही हैं। इस पार्टी के मुखिया भी नीतीश है और संयोजक भी नीतीश ही है। कहने का मतलब है यहां सर्वेसर्वा नीतीश बाबू ही है। अब जब कोई नीतीश बाबू का विरोध करेगा तो वह भला पार्टी में कैसे टिक सकता है, चाहे वो पार्टी के शीर्ष नेताओं में ही क्यों न आता हो, पार्टी के खिलाफ जाने का परिणाम भुगतना ही पड़ता है। प्रशांत किशोर भले ही मौजूदा समय में पार्टी के उपाध्यक्ष हैं, लेकिन वह सिर्फ नीतीश बाबू द्वारा चुनाव जीतने के लिए प्रयोग किए जाते है। जिस दिन उनकी जरूरत खत्म उस दिन उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने में नीतीश कुमार हिचकेंगे नहीं। प्रशांत किशोर को शरद यादव और जीतन राम मांझी के साथ हुए बर्ताव को भी याद रखना चाहिए।
अब इनके साथ ऐसा क्या हुआ था? दरअसल, एक समय पर शरद यादव जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, लेकिन जेडीयू के एनडीए में शामिल होने का विरोध करते हुए उन्होंने बागी तेवर अपना लिए थे। जिसके बाद नीतीश कुमार ने शरद यादव सहित उनके कई समर्थकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था। नीतीश ने शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता रद्द करने के लिए राज्यसभा सभापति से आग्रह किया था और पिछले वर्ष 5 दिसंबर को उनकी राज्यसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इसके बाद वह स्वयं ही पार्टी के मुखिया बन गए। यानि स्पष्ट है की सत्ता हासिल करने के बीच में जो भी आएगा वे उसे नहीं छोड़ने वाले है। ऐसे ही सत्ता में बने रहने के लिए नीतीश ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद पर बैठा दिया था और स्वयं सब काम देखते थे। यह बात जीतन राम मांझी ने भी स्वीकारा था।
नीतीश कुमार की आदत है कि वह अपने तरीके से पार्टी को चलाते है और यह उनके घमंड से स्पष्ट दिखाई भी देता है। ऐसे में प्रशांत किशोर ने सोशल मीडिया में अब खुलकर अपने तेवर दिखाकर अपने लिए नयी मुश्किल जरुर खड़ी करने का काम किया है। ऐसे में अब उनके पास 2 ही रास्ते बचते है। पहला यह कि वह स्वयं ही पार्टी छोड़ दे नहीं तो नीतीश कुमार स्वयं उन्हें हटा देंगे। और दूसरा यह कि वह सार्वजनिक रूप से अपनी गलती मान कर पार्टी की ही लाइन पर बयान दें। ऐसा भी हो सकता है प्रशांत किसी दूसरे पार्टी के साथ साँठ-गांठ में हो क्योंकि जब नितीश और लालू यादव की राजद ने साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाई थी तब PK का रोल अहम रहा था। अवसरवादी और सत्ता के लिए कोई भी निर्णय लेने से पीछे न हटने वाले नीतीश कुमार को अभी बिहार विधान सभा चुनाव सामने दिखाई दे रहा है। बिहार में भाजपा की बढ़ती साख को भी वो नजरअंदाज नहीं कर सकते ऐसे में वो भाजपा के खिलाफ नहीं जाना चाहते क्योंकि ऐसा करने पर जेडीयू को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसी वजह से नागरिकता संशोधन बिल पर भाजपा का समर्थन करना नीतीश कुमार की मजबूरी भी है। स्पष्ट है अब प्रशांत किशोर ने पार्टी लाइन से विपरीत बयान देकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है अब उन्हें जल्द ही इसका परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।