रविवार को जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के निकट स्थित जामिया नगर एक युद्ध क्षेत्र में बदल गया था। नागरिकता संशोधन के विरोध में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों विरोध प्रदर्शन किया और यह प्रदर्शन हिंसक हो गया। चार डीटीसी बसों को आग लगा दी गई, पत्थरबाजी की गयी, पेट्रोल बम भी मारे गए। इस दौरान कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। राष्ट्रीय राजधानी में इस तरह की हिंसा की घटना किसी झटके से कम नहीं थी। हालांकि, बता दें कि जामिया नगर में हिंसा और सांप्रदायिक विरोध का इतिहास रहा है। 11 साल पहले, ‘ऑपरेशन बटला हाउस‘ दिल्ली के जामिया नगर के बटला हाउस इलाके में हुआ था, जिसमें दो आतंकवादी मारे गए थे, दो गिरफ्तार किए गए थे तथा एक अन्य भाग निकला था। इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा ने मुठभेड़ के दौरान सर्वोच्च बलिदान दिया था।
साल 2008 में 19 सितम्बर को दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर में पुलिस ने दिल्ली के जामिया नगर इलाके में इंडियन मुजाहिदीन के दो संदिग्ध आतंकवादी आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद को मार गिराया था, दो अन्य संदिग्ध सैफ मोहम्मद और आरिज़ खान भागने में कामयाब हो गए, जबकि एक और आरोपी ज़ीशान को गिरफ्तार कर लिया गया था जिसे इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और 2013 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
इस मुठभेड़ का नेतृत्व कर रहे एनकाउंटर विशेषज्ञ और दिल्ली पुलिस निरीक्षक मोहन चंद शर्मा इस घटना में शहीद हो गये थे। इस मुठभेड़ से 6 दिन पहले राजधानी में सीरियल ब्लास्ट हुए थे, जिसमें 26 लोग मारे गये थे और 133 घायल हुए थे। सीरियल ब्लास्ट के 6 दिन बाद 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सूचना मिली थी कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पांच आतंकी बटला हाउस के फ्लैट संख्या एल18 में हैं जिसके बाद पुलिस ने इस एनकाउंटर को अंजाम दिया था।
पुलिस ने 21 सितंबर तक इस मामले में कुल 14 लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें एल-18 मकान की देखभाल करने वाला भी शामिल था। गिरफ्तारियां दिल्ली और उत्तर प्रदेश से की गई थीं। इस दौरान मानवाधिकार संगठनों ने बाटला हाउस एनकाउंटर को फेक बताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि इसकी न्यायिक जांच की जाए। इस पर दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को जांच कर दो महीने में रिपोर्ट देने के लिए कहा था।
वर्ष 2008 में, जामिया नगर और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में बाटला हाउस मुठभेड़ के बारे में कई अफवाहें और मिथक फैलाये गए जिसके कारण भारी विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था। इस क्षेत्र में लोगों ने आरोपी आतंकवादियों के पक्ष में और दिल्ली पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। 11 साल बाद, भी विश्वविद्यालय और जामिया नगर क्षेत्र दोनों में बहुत कुछ नहीं बदला है। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के बारे में एक बार फिर से झूठे समाचारों और अफवाहों के कारण फिर से उसी तरह का प्रदर्शन देखा गया। उस नगर में ही उकसाने वाले कई असामाजिक और राष्ट्रविरोधी तत्वों की उपस्थिति देखी गयी।
बता दें कि जामिया नगर में हिंसा और सांप्रदायिक विरोध प्रदर्शनों का बाटला हाउस से भी पहले की है। वर्ष 2007 में, जामिया नगर क्षेत्र में रविवार को हुए इस प्रदर्शन से कहीं अधिक बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे। यह फिर से उसी प्रकार का एक असामाजिक, असभ्य भीड़ का मामला था जो अफवाहों से भड़का था। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के आसपास स्थानीय निवासियों और छात्रों की भीड़ ने पुलिस के पोस्ट को आग के हवाले कर दिया था। एक पुलिसकर्मी द्वारा कुरान को गिराए जाने की अफवाह के कारण बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, जिसके परिणामस्वरूप दो दर्जन से अधिक पुलिस अधिकारी घायल हो गए थे। ऐसी अफवाहों के आधार पर एक स्थानीय नेता ने एक पुलिस अधिकारी को थप्पड़ भी मारा। यही नहीं इलाके के SHO और एडिशनल SHO गंभीर रूप से घायल हो गए थे और हजारों दंगाइयों द्वारा पुलिस रिकॉर्ड में आग लगा दी गई थी।
इससे पहले वर्ष 2000 में जामिया नगर इलाके में एक मुठभेड़ के दौरान संदिग्ध लश्कर आतंकवादी मारा गया था, जो लाल किला हमले में शामिल था। कट्टरपंथी विचारों के कारण अफवाह तेजी से फैलती है जिससे इस इलाके में हिंसा आसानी से भड़क उठती है, और ऐसे हिंसक प्रदर्शन के पीछे का यही कारण है। ये इलाके में 11-12 साल से हिंसक प्रदर्शन के कारण चर्चित हैं और रविवार को हुए जामिया नगर हिंसा से पता चलता है कि बीते वर्षों में कुछ भी नहीं बदला है।