हाल ही में कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरने के लिए ‘भारत बचाओ रैली’ का आयोजन किया था। यह रैली दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस ने आयोजित कराई थी, जिसमें गांधी परिवार और पी चिदम्बरम समेत पार्टी की कई बड़ी हस्तियां मौजूद थी। निस्संदेह ये रैली भारत को वर्तमान स्थिति से निकालने पर कम, और नेहरू गांधी परिवार के शक्ति प्रदर्शन पर ज़्यादा केन्द्रित थी।
रैली के दौरान राहुल गांधी ने हुंकार भरते हुए कहा,
“संसद में भाजपा के लोगों ने कहा कि मैं अपने भाषण के लिए माफी मांगू। मुझे एक ऐसी चीज के लिए माफी मांगने के लिए कहा गया जो कि सही है। मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है। मैं सच्चाई के लिए माफी नहीं मांगूंगा। मर जाऊंगा लेकिन माफी नहीं मांगूंगा। कांग्रेस का कोई सदस्य माफी नहीं मांगेगा। माफी नरेंद्र मोदी को मांगनी चाहिए। उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए। उनके सहयोगी अमित शाह को देश से माफी मांगनी चाहिए”।
राहुल के तंज़ से स्पष्ट था कि वे किस पर उंगली उठा रहे थे। पर राहुल गांधी ने इस बार गलत बात नहीं की। उन्होंने ठीक कहा, वे राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है, क्योंकि जितनी पीड़ा स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ने सहा, देश की स्वतन्त्रता के लिए जितने कष्ट वीर सावरकर ने झेले, उसका अंशमात्र भी राहुल गांधी झेल नहीं पाएंगे।
अक्सर राहुल गांधी इस बात का तंज़ कसते हैं कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी, और उनकी सेवा की। परंतु उन्हें भी क्या दोष दें, जब इतिहास उसी के परनाना ने लिखवाया हो। वास्तव में सावरकर को 1911 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी। इस दौरान उन पर जितने अत्याचार ढाये गए, उन्हें सुनकर किसी की भी आत्मा कांपने लगेगी। वीर सावरकर को घंटों तक कोल्हू से तेल निकलवाने को कहा जाता था, और बैलों की भांति उनसे काम करवाया जाता था।
उन्हें सजा की अवहेलना करने पर घंटों तक बेड़ियों में जकड़े खड़ा रहना पड़ता था। इतनी यातना देने के बाद भी अंग्रेज़ उनसे इतना डरते थे कि उन्हें लिखने के लिए कलम भी नहीं देते थे, और उन्होंने जेल में अपनी कई पुस्तकें एक कील से लिखी थीं। वीर सावरकर को इस तरह से कारागार में रखा गया था कि उन्हें आभास भी नहीं था कि उनके कोठरी से कुछ कोठरी दूर उनके बड़े भाई गणेश बाबाराव सावरकर को कैद किया था। क्या राहुल गांधी एक सेकंड के लिए भी ऐसा दंड झेल सकते हैं?
10 वर्ष की कठोर सजा झेलने के बाद विनायक दामोदर सावरकर को सेलुलर जेल से तत्कालीन राजा जॉर्ज पंचम द्वारा जारी एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत रत्नागिरी जेल स्थानांतरित किया गया, जहां उन्होंने 3 वर्ष और बिताए। उन्हें 1924 में रिहा किया गया, और उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर 1937 तक रोक लगा दी गयी थी। इस तुलना में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को यदि कारागार में रखा जाता था, तो एक राजनीतिक कैदी होने के नाते उन्हें किसी भी प्रकार की सुविधा की कमी नहीं होती थी। विडम्बना की बात तो यह है कि ऐसी सुविधाओं के लिए भगत सिंह और उनके साथियों को महीनों तक भूख हड़ताल पर रहना पड़ा था, और जतीन्द्र नाथ दास को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी थी। यदि नेहरू और गांधी अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े थे, और ब्रिटिश सरकार के लिए खतरा थे, तो उन्हें भी कालापानी भेजा जाना चाहिए था, पर उन्हें तो कभी कालापानी नहीं भेजा गया। क्या इसका उत्तर है राहुल गांधी के पास?
जिस एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत सावरकर बंधुओं को रत्नागिरी जेल स्थानांतरित किया गया था, उस याचिका पर महामना मदन मोहन मालवीय और मोहनदास करमचंद गांधी ने स्वयं हस्ताक्षर किए थे। यदि हम विपक्ष के तर्क अनुसार चलें, तो कांग्रेस के प्रिय महात्मा गांधी देशद्रोही नहीं हैं? यदि सावरकर अंग्रेजों के चाटुकार थे, तो फिर भगत सिंह भी देशभक्त नहीं थे, क्योंकि वे सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘इंडियाज़ वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस’, ‘हिन्दू पद पदशाही’ बड़े चाव से पढ़ते थे।
जब हाल ही में सीएबी की चर्चा के दौरान अमित शाह ने कांग्रेस का वास्तविक चेहरा उजागर करते हुए उन्हें देश के विभाजन के लिए दोषी ठहराया था, तो कांग्रेस ने सावरकर पर विभाजन का दोष डालने का प्रयास किया। सत्य तो यह है कि सावरकर ने न केवल विभाजन का विरोध किया था, बल्कि उन्होंने ये भी कहा था कि धार्मिक कट्टरता के आधार पर बना कोई भी देश एक अच्छा पड़ोसी कभी नहीं बन सकता। यही नहीं, जब यहूदियों ने विश्व युद्ध के बाद इज़राइल की स्थापना की, तो भारत की ओर से विनायक दामोदर सावरकर ही थे जिन्होंने सर्वप्रथम यहूदियों का समर्थन किया था और उन्हें इजराइल की स्थापना के लिए शुभकामनाएं भेजी थीं।
हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राहुल गांधी की टिप्पणी पर उन्हें आईना दिखाते हुए कहा, “कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से दिया गया बयान पूरी तरह से निंदनीय है। राहुल गांधी सावरकर के नाखून के बराबर भी नहीं हैं और खुद को ‘गांधी‘ समझने की गलती उन्हें नहीं करनी चाहिए। केवल आखिरी नाम गांधी होने से कोई महात्मा गांधी नहीं बन जाता है। सावरकर ने अपने जीवन की आहुति मातृभूमि के लिए दी। सब कुछ त्याग किया। उनके खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना, देश के लिए सब कुछ त्याग करने वाले तमाम देशभक्तों का अपमान है”।
सच कहें तो राहुल गांधी पर एक ही कहावत चरितार्थ होती है, “जाके पाँव न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई!” जिसने जीवन में हर चीज़ चांदी की तश्तरी में पायी हो, जो अपने मामूली चोट के लिए विदेश में इलाज कराए हों, जो मन की शांति के लिए थाइलैंड जाते हों, उन्हे क्या पता होगा कि कोई ऐसा भी हो सकता है, जिसने अपने जीवन के दस वर्ष सबसे अमानवीय स्थिति में बिताए, और जीवन पर्यंत उन्होंने भारत में सांप्रदायिकता और तुष्टीकरण की राजनीति के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाई।