केरल राज्य कैबिनेट ने इसरो के पूर्व वैज्ञानिक एस नंबी नारायणन को 1.3 करोड़ रुपये का मुआवजा देने के लिए सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी है। तिरुवनन्तपुरम सब कोर्ट में नारायणन की गैरकानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ दायर मामले का निपटारा करने के लिए यह मुआवजा मंजूर किया गया है। यह राशि 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिए गए 50 लाख रुपये मुआवजे के अतिरिक्त है।
यह क्षतिपूर्ति एक तरह से केरल सरकार द्वारा प्रायश्चित की तरह है, जिसने 1994 में नारायणन को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के सीक्रेट बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया था। दरअसल, नारायणन के खिलाफ 1994 में दो कथित मालदीव के खुफिया अधिकारियों को रक्षा विभाग से जुड़ी गुप्त जानकारी लीक करने का आरोप लगा था। नारायण को इस मामले में गिरफ्तार भी किया था और जहां उन्हें काफी यातनाएं दी गईं।
बाद में यह पता चला कि यह पूरा मामला राज्य के शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने जानबूझकर बनाया था जो केरल के राजनीतिक इशारे पर किया गया था। इस साल जनवरी में, पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा था, “कुछ साल पहले, एक मेहनती और देशभक्त इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन को एक झूठे मामले में फंसाया गया था क्योंकि यूडीएफ (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) के कुछ नेता राजनीति में ऊपर उठना चाहते थे।”
पिछले ढाई दशक से केरल में सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ सरकारों का शासन रहा है और दोनों दलों ने नंबी नारायणन का इस्तेमाल अपनी बदले की राजनीति के लिए किया।
मामला 1994 में शुरू हुआ था, जब केरल पुलिस ने मालदीव के कुछ जासूस के माध्यम से पाकिस्तान को गुप्त सूचना देने के आरोप में नंबी नारायणन को गिरफ्तार किया। बाद में यह पता चला कि, यह पूरी कहानी केरल कांग्रेस के एके एंटनी गुट ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मदद से गढ़ी थी, जो केरल के तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री कन्नौथ करुणाकरण के खिलाफ लामबंदी की कोशिश में लगे थे।
एके एंटनी ने जासूसी के मामले से करुणाकरण को नीचा दिखाने में सफल रहे। इसके बाद एंटनी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन कांग्रेस पार्टी अगला विधानसभा चुनाव हार गई, और सीपीएम के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार सत्ता में आई।
इस बीच, सीबीआई ने कोच्चि में विशेष अदालत के रूप में क्लोजर रिपोर्ट पेश की, जिसमें नंबी नारायणन को क्लीन चिट दी गई थी। हालांकि, नव निर्वाचित एलडीएफ सरकार ने मामले की जांच के लिए सीबीआई को दी गई सहमति वापस ले ली, और पूरे मामले को ‘ पुनः परीक्षण’ करने का फैसला किया, और मामले को फिर से राजनीतिकरण करने के लिए केरल पुलिस को दिया गया।
इसके बाद जनवरी 1996 में, सीबीआई ने मामले को पुनः परीक्षण करने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और शीर्ष अदालत ने 1998 में केरल सरकार के पुनः परीक्षण के आदेश को रद्द कर दिया।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये देने का आदेश दिया, लेकिन केरल सरकार को NHRC के आदेश पर स्टे मिल गया। अंत में, शीर्ष अदालत ने केरल सरकार को नम्बी नारायणन को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। यही नहीं मोदी सरकार ने 2019 में पद्म भूषण पुरस्कार देकर भारत के अन्तरिक्ष प्रोग्राम में उनके योगदान को मान्यता दी।
नंबी नारायणन का मामला सबसे अच्छा उदाहरण है कि कैसे एके एंटनी जैसे राजनेता जो कि देश के रक्षा मंत्री (26 अक्टूबर 2006 – 26 मई 2014) भी रह चुके है एक बेहतरीन वैज्ञानिक के कैरियर को नष्ट कर सकते हैं।