आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्देशित ‘पानीपत – द ग्रेट बिट्रेयल’
जो लोग आशा कर रहे थे कि आशुतोष भाऊ मोहेंजोंदारो जैसा कबाड़ लाएंगे, उन्हें तो अवश्य निराशा हाथ लगेगी, लेकिन जिन्हें आशा थी कि वे लगान या स्वदेस जैसी मूवी बनाएंगे, उन्हें भी पानीपत मूवी देख निराशा हाथ लगेगी। यहां बात हो रही है, हाल ही में आई फिल्म पानीपत की। आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्देशित मल्टी स्टारर मूवी ‘पानीपत – द ग्रेट बिट्रेयल’ में मुख्य भूमिकाओं में हैं अर्जुन कपूर, कृति सैनन और संजय दत्त, और इनका साथ दिया है मोहनीश बहल, पद्मिनी कोल्हापुरे, मंत्रा, कुनाल कपूर, मिलिंद गुणाजी, रवीन्द्र महाजनी, गश्मीर महाजनी, ज़ीनत अमान इत्यादि ने।
ये मूवी पानीपत के तीसरे युद्ध पर आधारित है, जो 1761 में अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी अथवा अब्दाली के नेतृत्व में अफगान, रुहिल्ला और अवधी सेना, और सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में मराठा सेना में लड़ी गयी थी। इस युद्ध के दौरान और उसके पश्चात भीषण रक्तपात हुआ था, और युद्ध जीतकर भी अहमद शाह अब्दाली को कोई विशेष फ़ायदा प्राप्त नहीं हुआ था।
मोहेंजोंदारो मूवी की असफलता के बाद आशुतोष गोवारिकर ने जब घोषणा की कि वे पानीपत के तीसरे युद्ध का उल्लेख करेंगे, तो काफी लोगों को संदेह था कि क्या वे पूरी तरह से इतिहास के इस अहम पड़ाव के साथ न्याय कर पाएंगे। अगर सतही स्तर पर देखें, तो हाँ, आशुतोष गोवारिकर ने न्याय तो किया है। उस समय की परिस्थिति, खानपान, रहन सहन, और दोनों पक्षों की विचारधारा पर आशुतोष गोवारिकर ने विशेष ध्यान दिया है।
पानीपत मूवी का विस्तृत विश्लेषण
परंतु अगर पानीपत मूवी का विस्तृत विश्लेषण करें, तो ये अपनी ही जटिलताओं में उलझ कर रह जाती है। एक तो मूवी की समयसीमा कई लोगों को अप्रिय लगी है, और इस फिल्म के अटपटे प्रसंग और चित्रण को देखकर फिल्म के अंत होते ही दर्शक के मन में एक प्रश्न तो अवश्य कौंधा होगा– (अरे भाई, आखिर कहना क्या चाहते हो?)
ये मूवी पानीपत के युद्ध से ज़्यादा सदाशिवराव भाऊ और उनकी धर्मपत्नी पार्वतीबाई के प्रेम प्रसंग पर ध्यान केन्द्रित करती हुई दिखाई देती है। एक ओर वे अफगान शासकों को बर्बर और मराठाओं को दयालु और न्यायप्रिय दिखाना चाहते हैं, और दूसरी ओर वे उन्हीं मराठा शासकों को अपरिपक्व दिखाने का भी प्रयास करते हैं। शायद आशुतोष गोवारिकर खुद ही स्पष्ट नहीं थे कि वे दिखाना क्या चाहते हैं। जहां कहीं भी पानीपत मूवी में एक रोचक मोड़ का आभास होता है, वहां आशुतोष गोवारिकर का अपरिपक्व निर्देशन आपका मूड ऑफ करने का पूरा प्रबंध सुनिश्चित करता है।
इसके अलावा जो पानीपत के तीसरे युद्ध के इतिहास से लेशमात्र भी परिचित हैं, उन्हें आशुतोष गोवारिकर के ऐतिहासिक तथ्यों से खिलवाड़ करने की प्रवृत्ति एक बार फिर खटकेगी। मूवी में कई तथ्य तो ऐसे पेश किए गए हैं, कि आपको संजय लीला भंसाली की ‘बाजीराव मस्तानी’ इससे ज़्यादा परिपक्व लगेगी। पर उनके बारे में बाद में।
मूवी में अभिनय
अगर पानीपत मूवी में अभिनय की बात की जाए, तो संजय दत्त इस फिल्म में सबसे ज़्यादा प्रभावी दिखे हैं। अहमद शाह अब्दाली के रूप में उन्होंने अफगान शासक को बिना किसी लाग लपेट के दर्शाया है। यदि किसी ने अपने अभिनय से सबसे ज़्यादा चौंकाया है, तो वे हैं मंत्रा और कृति सैनन। नजीब उद दौला के रूप में मंत्रा ने धूर्त और कपटी रोहिल्लों को बड़े अच्छे से पर्दे पर चित्रित किया है।
वहीं पार्वतीबाई का रोल भले ही सीमित प्रभाव के हिसाब से लिखा गया हो, पर कृति ने अपने अभिनय से मानो अकेले ही इस फिल्म की डूबती नैया को पार लगाने का प्रयास किया है। अर्जुन कपूर के बारे में जो हमारे मन में शंका थी, वो सत्य साबित हुई। सदाशिवराव भाऊ का असल व्यक्तित्व काफी विविध था, परंतु अर्जुन सदाशिवराव भाऊ के चरित्र को आत्मसात करने में पूरी तरह असफल रहे। जहां उन्हें अपनी छाप छोडनी चाहिए थी, वहां वे एकदम थके मांदे, पस्त दिखाई दे रहे थे, मानो उन्हें घर जाना है।
कुल मिलाकर पानीपत एक औसत मूवी है, जो कुछ-कुछ जगह अपनी छाप छोड़ने का प्रयास तो करती है, पर निर्देशक की अपरिपक्वता की भेंट चढ़ जाती है। टीएफ़आई की ओर इसे दिये जाते हैं 5 में से 2.5 स्टार।