सोमवार को देर रात तक चली बहस के बाद कल आखिर लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल 311-80 के बहुमत से पास हो ही गया। नागरिक संशोधन बिल अगर कानून का रूप ले लेता है तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को CAB के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी। वर्ष 1947 में जब धर्म के आधार पर भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारा हुआ था, तो पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ बड़ा अन्याय हुआ था और उन्हें धार्मिक आधार पर प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा था। इन देशों में आज भी हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को धार्मिक आधार पर प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। यह नागरिकता संशोधन बिल अब ऐसे ही लोगों को न्याय प्रदान करने के लिए लाया गया है।
बेशक नागरिकता संशोधन बिल का देश के लिबरलों और विपक्षी पार्टियों ने पुरजोर विरोध किया हो, लेकिन हमें यह समझने की ज़रूरत है कि भारत को आखिर क्यों इन तीन देशों के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की चिंता करने की आवश्यकता है। पाकिस्तान की बात करें, तो यह देश अपने आप को ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान’ कहता है यानि इस देश का धर्म इस्लाम है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि इन देशों में हिंदुओं और अन्य धर्म के लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है, और उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। अल्पसंख्यक धर्म के लोग अक्सर आतंकवाद के निशाने पर भी आते हैं। इसी वजह से आज़ादी के बाद से आज तक पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी लगातार कम हुई है। वर्तमान में पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी लगभग 25 लाख है जबकि कुल आबादी 13 करोड़ है। सिंध और बलूचिस्तान कभी हिन्दू बहुल क्षेत्र माने जाते थे। मगर तालिबानी कहर और धार्मिक कट्टरवाद के चलते यहां से भी उनका लगभग सफाया हो गया। बीते तीन वर्षों में क्वेटा सहित कई व्यावसायिक क्षेत्रों में कई हिन्दू व्यापारियों का अपहरण करके हत्या की घटनाएं हुई हैं। 1947 में हिन्दुओं की जनसंख्या 20% तक थी लेकिन छह दशकों में वहां के मुसलमानों ने हिन्दुओं पर जमकर कहर ढाया और आज यह हालात हैं कि हिन्दू जनसंख्या 1.6% है।
बांग्लादेश का भी यही हाल है। यह देश भी अपने आप को ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश’ कहता है। आज यह बात किसी से छुपी नहीं है कि इस देश में किस तरह हिंदुओं के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। बांग्लादेश में अब हिंदुओं की आबादी सिर्फ 8 प्रतिशत ही बची है। वर्ष 1971 के बाद बांग्लादेश की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के तौर पर हुई थी, लेकिन बाद में इस देश ने इस्लाम धर्म को अपना लिया। बांग्लादेश बनने के कई सालों बाद तक इस देश से बंगाली हिन्दू कम्यूनिटी का भारत में शरण लेना जारी रहा और इसका कारण था कि बांग्लादेश में इन्हें धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाना। इन बंगाली हिंदुओं के साथ-साथ गरीबी के कारण बांग्लादेश से गरीब मजदूर मुसलमान भी भारत भागकर आ गए जिसके कारण यह अवैध अप्रवास की समस्या और जटिल हो गयी। अब इन दो तरह के लोगों में अंतर को पहचानकर इन्हें अलग करने की ज़रूरत है। जो लोग, भारत में धार्मिक उत्पीड़न के चलते शरण लेकर आ कर रह रहे हैं, अगर उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाएगा, तो उनके साथ वही होगा जो बाकी हिंदुओं के साथ होता आया है। उनकी बहन-बेटियों के साथ भी बलात्कार होगा और उनके मानवाधिकारों की रक्षा करने वाला कोई नहीं होगा। इसलिए ऐसे लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना भारत की ज़िम्मेदारी है।
अफ़ग़ानिस्तान में भी स्थिति कोई भिन्न नहीं है। अफ़ग़ानिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 2 के मुताबिक, राष्ट्र का धर्म इस्लाम है। हालांकि, इस देश में तालिबान का बोलबाला रहा है, जिसकी वजह से हिंदुओं को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। बता दें कि वर्ष 2001 में ऐसी खबरें भी आई थी कि तालिबन द्वारा हिंदुओं को अलग से बैज पहनने पर मजबूर किया जा रहा है, ताकि उनकी अलग से पहचान की जा सके। इससे ही यह स्पष्ट हो जाता है कि किस तरह अफ़ग़ानिस्तान में हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता रहा है।
इन सब देशों में हिंदुओं पर जब अत्याचार होता है और उन्हें मारकर भगाया जाता है, तो उनके पास भागकर अपनी जान बचाने के लिए भारत आने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है। पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश को धर्म के आधार पर बनाया गया था, और यह तथ्य सबको स्वीकार करना चाहिए। भारत ने तो धर्मनिरपेक्षता का रास्ता अपनाए रखा लेकिन अल्पसंख्यकों के साथ जैसा व्यवहार बांग्लादेश और पाकिस्तान में होता रहा, आज उसी की वजह से भारत में नागरिकता संशोधन बिल को लाना पड़ रहा है।