कभी भारतीय जनता पार्टी की साथी रही शिवसेना ने सत्ता में आते ही पुराने फैसले पलटने और प्रॉजेक्ट्स की समीक्षा करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन समेत राज्य में चल रही सभी विकास परियोजनाओं की समीक्षा के आदेश दिए हैं। भारत बुलेट ट्रेन परियोजना पर जापान के साथ मिलकर काम कर रहा है, और महाराष्ट्र में नई सरकार के इस आदेश से इस प्रोजेक्ट के भविष्य पर सवाल खड़ा हो गया है। साथ ही जापान की जो कंपनी भारत में इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, उसमें भी भय का माहौल उत्पन्न होना ज़ाहिर सी बात है।
इससे पहले आंध्र प्रदेश की सरकार भी UAE की कंपनी लूलू के प्रोजेक्ट को रद्द कर चुकी है। राज्य सरकारों के इन कदमों से भारत की एक इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन की छवि को लगातार नुकसान पहुंचता जा रहा है, जो कि भविष्य में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद नुकसानदायक है।
बता दें कि सितंबर 2017 में अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापानी पीएम शिंजो अबो ने भारत की पहली बुलेट ट्रेन प्रॉजेक्ट का शिलान्यास किया था। पीएम मोदी के इस ड्रीम प्रॉजेक्ट के 2023 तक पूरा होने की संभावना है। इस प्रॉजेक्ट का ट्रैक लेंथ करीब 508 किलोमीटर है, जो मुंबई के बीकेसी (बांद्रा-कुर्ला-एक्सप्रेस) से गुजरात के साबरमती तक रखा गया है। इस बारे में जून में रेलमंत्री पीयूष गोयल ने बताया था कि इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 1.08 लाख करोड़ रुपये है। इसमें से 81 प्रतिशत लागत का वित्त पोषण जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी (जीका) के माध्यम से किया जाएगा। अगर अब इस प्रोजेक्ट पर कुछ भी आंच आती है तो ना सिर्फ भारत और महाराष्ट्र को बुलेट ट्रेन से वंचित होना पड़ेगा बल्कि इससे भारत और जापान के रिश्ते भी खराब हो सकते हैं। इसके अलावा भविष्य में अन्य जापान की कंपनी भी भारत में निवेश करने से जिझक सकती हैं।
कुछ इसी तरह का मामला हमें कुछ दिनों पहले आंध्र प्रदेश में भी देखने को मिला था। आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की सरकार को छः महीने होने को है और इन छः महीनों में ही जगन सरकार ने कई ऐसे कदम उठा लिए हैं जिसके कारण राज्य के साथ देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होना तय है। दरअसल, जगन सरकार लगातार ऊर्जा, इनफ्रास्ट्रक्चर और अन्य क्षेत्रों से जुड़े उन सभी प्रोजेक्ट्स को रद्द करती जा रही है जिन्हें आंध्र प्रदेश सरकार ने TDP सरकार के समय मंजूरी दी थी।
सरकार ने 7000 मेगावाट के सोलर और विंड पावर प्रोजेक्ट को भी रद्द कर दिया है जिसके कारण अब राज्य में 40 हज़ार करोड़ रुपये के निवेश पर तलवार लटक गयी है। वहीं सरकार के इस कदम से निवेशक भी खासा नाराज़ हैं और दोबारा कभी राज्य में निवेश ना करने की बात कर रहे हैं। जैसे ही आंध्र प्रदेश सरकार ने उन प्रोजेक्ट्स को रद्द कर दिया है, ठीक वैसे ही उन सभी कंपनियों का निवेश किया हुआ सारा पैसा डूब गया है। अब इन देशों के राजदूतों ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह से संपर्क साधकर अपनी चिंताओं को साझा किया है। इसके अलावा कई देशों ने भारतीय विदेश मंत्रालय को भी संपर्क साधा है।
इसी तरह UAE के लूलू समूह ने भी जगन सरकार ने नाराज़ होकर आंध्र प्रदेश में कभी निवेश नहीं करने की बात कही है। लूलू समूह को एक इंटरनेशनल कन्वेन्शन सेंटर खोलने के लिए विशाखापट्टनम में जगह आवंटित की गयी थी, लेकिन रेड्डी सरकार ने इस आवंटन को रद्द कर दिया। अब लूलू ने कहा है कि वह आंध्र सरकार के इस निर्णय से सहमत है लेकिन भविष्य में वह कभी राज्य में निवेश नही करेगा।
लूलू भारत के डायरेक्टर अनंत राम ने इसपर कहा था “हमने एक बहुत ही पारदर्शी बोली प्रक्रिया में भाग लिया था और इस परियोजना के लिए हमें यह ज़मीन लीज़ पर ली थी। हालाँकि, हमने शुरुआती परियोजना विकास लागतों, जैसे अंतर्राष्ट्रीय जाने-माने सलाहकारों को नियुक्त करने और विश्व स्तरीय आर्किटेक्ट्स द्वारा परियोजना को डिजाइन करने के लिए भारी खर्च किया है, हम इस परियोजना के लिए भूमि आवंटन को रद्द करने के आंध्र प्रदेश की नई सरकार के निर्णय से सहमत हैं। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, हमने आंध्र प्रदेश राज्य में किसी भी नई परियोजना में निवेश नहीं करने का फैसला किया है।”
आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार के इन कदमों से राज्य के साथ-साथ भारत की साख को भी बड़ा झटका पहुंच रहा है। एक तरफ जहां भारत सरकार पूरी दुनिया से निवेशकों को लुभाने की योजना पर काम कर रही है, तो वहीं कुछ राज्य सरकारें सभी निवेशकों को नाराज़ करने पर तुली है जिसके कारण भारत की छवि को नुकसान पहुंच रहा है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम को सफल बनाना सिर्फ केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि सभी राज्य सरकारों को भी इसमें अपना योगदान देना होगा और सभी निवेशकों के लिए बेहतर माहौल बनाना होगा।