संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के नाम पर तो सड़कों पर हमें काफी हिंसा देखने को मिल चुकी है, लेकिन ज़ी न्यूज़ ने पिछले दिनों उन लोगों को भी अपनी आवाज़ उठाने का मौका दिया, जो इस कानून के समर्थन में हैं। देश की मीडिया जहां एक तरफ सिर्फ उग्र प्रदर्शनों को रिपोर्ट कर देश में भय और अराजकता की स्थिति दिखाने की कोशिश कर रही थी, तो वहीं इस न्यूज़ चैनल ने एक मिस कॉल अभियान चलाकर उन लोगों की राय को भी सबके सामने रखा जो इस कानून के समर्थन में हैं। ज़ी न्यूज़ का यह मिस कॉल अभियान अभी तक सफल ही साबित हुआ है, और 25 दिसंबर तक इस अभियान में लगभग 62 लाख लोग हिस्सा ले चुके हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन इस अभियान की सफलता से अब एक खास मानसिकता वाले लोगों को बड़ी पीड़ा पहुंचनी शुरू हो चुकी है, जिसके कारण कल पूरे दिन हमें ट्विटर पर हैशटैग “ज़ी न्यूज़ झूठा है” ट्रेंड देखने को मिला। ज़ी न्यूज़ के इस कदम से एक वामपंथी ट्रोल चैनल “पींग ह्यूमन” को इतनी मिर्ची लगी कि उसने लोगों को गूगल प्ले स्टोर पर जाकर इस चैनल की एप को 1 स्टार देने का आह्वान किया। इसके अलावा कल देश की टुकड़े-टुकड़े गैंग ने दिनभर ट्विटर पर ज़ी न्यूज़ के खिलाफ ट्रेंड चलाया।
Mitrooooon please RT kar ke ye baat @sudhirchaudhary ji tak pohochaiye taaki wo ek naya missed call scheme nikale ye pata karne ke liye ke #ZeeNewsJhoothaHai ko kitne log support karte hai. pic.twitter.com/LrEyCYz6zY
— Official PeeingHuman (@thepeeinghuman) December 25, 2019
ज़ी न्यूज़ ने अपने इस अभियान से इस पूरे गैंग के उस एजेंडे को धराशायी कर दिया, जिसके तहत ये लोग यह नैरेटिव सेट कर रहे थे, कि देश में CAA और NRC के खिलाफ गुस्सा है और सड़कों पर जो विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं, वे पूरी तरह जायज़ हैं। यह अभियान ज़ी न्यूज़ के द्वारा शुरू किया गया था, इस अभियान से जुड़े आंकड़े भी ज़ी न्यूज़ के पास ही हैं। इसके अलावा समय-समय पर ऐसे मिस कॉल अभियान चलाये जाते रहते हैं। लेकिन ऐसे कार्यक्रम से, जो पूरी तरह ज़ी न्यूज़ द्वारा शुरू किया गया था, उससे अगर किसी तीसरे पक्ष को मिर्ची लग रही है, तो आप यह समझ सकते हैं कि लिबरलों पर इस स्ट्राइक का असर कितना गहरा पड़ा है।
ज़ी न्यूज़ हिन्दी भाषा का एक बड़ा और स्थापित न्यूज़ चैनल है, और जब इस चैनल ने 21 दिसंबर को इस मुहिम को शुरू किया, तब एकाएक इसका हमें कोई विरोध देखने को नहीं मिला। लेकिन जैसे-जैसे यह प्रयोग सफल होता गया और ज़्यादा से ज़्यादा लोग इससे जुड़ते गए, वैसे-वैसे लिबरलों का एजेंडा धराशायी होता गया और आखिर में इनकी पीड़ा इतनी बढ़ गयी कि इन्हें ट्विटर पर ट्रेंड चलाकर अपना गुस्सा निकालना पड़ा। अब तक 62 लाख लोग इस मुहिम से जुड़ चुके हैं और यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। आज तक किसी भी मुहिम या सर्वे में इतना बड़ा सैंपल साइज़ हमें शायद ही देखने को मिला हो। इसी गति से अगर इस मुहिम को लोगों का समर्थन मिलता रहा तो शायद यह संख्या जल्द ही 1 करोड़ से भी ज़्यादा हो सकती है। 133 करोड़ लोगों के देश में एक हिन्दी न्यूज़ चैनल द्वारा इतनी बड़ी संख्या में लोगों की आवाज़ उठाकर इस चैनल ने एक कीर्तिमान रचा है, और यही कारण है कि ज़ी न्यूज़ अब लिबरलों के निशाने पर आ गया है। हालांकि, जब ऐसा ही सर्वे द वायर या क्विंट करता और उसमें शामिल होने वाले लोग केवल हजारों में होते तो लेफ्ट लिबरल गैंग इसे पूरे भारत की आवाज बताने में जरा भी संकोच नहीं करता। चूंकि जी न्यूज़ इनके राजनीतिक विचारधारा के विपरीत है इसी वजह से ये पूरा गैंग इसे निशाने पर ले रहा है।
यही वजह है कि ज़ी न्यूज़ इन लिबरलों का सॉफ्ट टार्गेट रहा है और जब भी यह चैनल इनका पर्दाफाश करता है, तो इस चैनल के खिलाफ तुरंत हैशटैग ट्रेंड होना शुरू हो जाते हैं। ज़ी न्यूज़ ने जिस तरह JNU, कठुआ रेप केस, चांदनी चौक मंदिर तोडफोड मामले और JNU फीस मामले में इन लिबरलों के एजेंडे को धराशायी किया और इनका असली चेहरा सबके सामने रखा, उससे यह चैनल इन वामपंथियों का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया। यही कारण था कि जब JNU फीस मामले में ज़ी न्यूज़ के रिपोर्टर रिपोर्टिंग के लिए JNU पहुंचे थे, तो वहां उनके साथ बदसलूकी की गयी और कैमरापर्सन से कैमरा छीनने की भी कोशिश की गयी। ज़ी न्यूज़ समय-समय पर इन लिबरलों की पोल खोलता रहता है, और यही कारण है कि अब CAA के मामले पर भी जब इस चैनल ने इनके एजेंडे की बख़ियाँ उधेड़ कर रख दी, तो सोशल मीडिया पर इस टुकड़े-टुकड़े गैंग का हाय तौबा चालू है।
जिन लोगों ने भी CAA के विरोध के नाम पर इस देश में हिंसा की है, यह मुहिम ऐसे लोगों के मुंह पर तमाचे के समान है। इस मुहिम को शुरू कर ज़ी न्यूज़ ने बेशक एक साहसिक कार्य किया है। इस मुहिम में शामिल लोगों की भी तारीफ की जानी चाहिए जिन्होंने बिलकुल शांत तरीके से अपनी आवाज़ को सही लोगों तक पहुंचाया। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि CAA के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन राजनीतिक दृष्टि से प्रेरित थे, और उन्हें जनता का कोई समर्थन हासिल नहीं था।