इंडिया टुडे भारत के सबसे बड़े मीडिया हाउस में से एक है जिसने दिसंबर 1975 में अपनी स्थापना के बाद से ही लगातार अपने बिजनेस को बढ़ाया है। इस magazine को विद्या विलास पुरी की बेटी मधु त्रेहान ने fortnight magazine के रूप में शुरू किया था। इसके बाद त्रेहान ने अपने इस बिजनेस ग्रुप को अपने भाई अरुण पूरी को सौंप दिया।
चार दशकों से अधिक समय हो चुका है और अरुण पुरी ने इस मीडिया समूह को अपने नियंत्रण में रखा है और सबसे बड़ी बात यह है कि अभी तक इस मीडिया ग्रुप को उन्होंने प्रासंगिक बनाए रखा है। उनके नेतृत्व में यह मीडिया ग्रुप प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल क्षेत्रों में अपने पांव पसार कर सबसे बड़े समाचार मीडिया घरानों में से एक बन गया है। अक्टूबर 2017 में, अरुण पुरी ने कली पुरी को समूह का नियंत्रण सौंप दिया, लेकिन समूह के अध्यक्ष और प्रधान संपादक बने रहे।
इस मीडिया समूह ने बीते वर्षों में समाचार मीडिया के तौर पर काफी समृद्ध रहा, जो कि वाला उच्च निवेश वाला और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बिजनेस क्षेत्र है। इसका कारण यह रहा कि इंडिया टुडे समूह ने अपने एडिटोरियल पॉलिसी में राजनीतिक विचारधारा के प्रति लचीलापन बनाए रखा है। इस मीडिया समूह का प्रमुख विचारधारा अधिकतम लाभ उत्पन्न करना है। और इस वजह से यह मीडिया ग्रुप अभी तक प्रासंगिक बना हुआ है।
किसी भी समय की बात हो, मीडिया ग्रुप कि राजनीतिक विचारधारा का पता लगाना आसान हो जाता है जैसे जब भी कांग्रेस सत्ता में रही है NDTV और the Hindu जैसे मीडिया आउटलेट्स को सरकार की बड़ाई करते आसानी से देखा जा सकता है वही जब भी BJP सत्ता में रहती है इंडिया टीवी जैसे ग्रुप्स के साथ भी यही होता है।
लेकिन इंडिया टुडे समूह सत्ता की परवाह किए बिना दिन साल दर साल समृद्ध होता गया। इसका कारण यह है कि इस मीडिया ग्रुप सत्ता में बैठी पार्टी के अनुसार अपनी विचारधारा को बदला है।
10 साल तक जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब इस मीडिया ग्रुप ने वामपंथी एंकर जैसे पुण्य प्रसून वाजपेयी और अभिषेक शर्मा जैसों को रखा और फिर जैसे ही 2014 में भाजपा सत्ता में आई, अंजन ओम कश्यप और रोहित सरदाना जैसों का उदय हुआ।
वहीं अँग्रेजी में गौरव सावंत, राहुल कंवल जैसे है तो वही विरोधियों के लिए राजदीप सरदेसाई जैसा पत्रकार है जो कांग्रेस समर्थकों को बैलेंस करते है।
पिछले कुछ वर्षों में, जब केंद्र के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में भी भाजपा पूरी तरह से हावी थी, तब इंडिया टुडे समूह मेजोरिटी का समर्थक बन गया था और दक्षिणपंथी विचारों वाले लोगों को या तो शीर्ष पदों पर पदोन्नत किया गया या अन्य मीडिया संगठनों से काम पर रखा गया। लेकिन जैसा कि पिछले कुछ महीनों में बीजेपी ने महाराष्ट्र और झारखंड सहित कई राज्यों में सत्ता खो दी तभी फिर से इस मीडिया हाउस ने अपनी वैचारिक पॉलिसी को बदलना शुरू कर दिया है।
कुछ दिनों पहले ही इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा जारी किया गया एक चर्चित ग्राफ वायरल हुआ था जो यह दर्शा रहा था कि बीजेपी अब देश के 50 प्रतिशत से कम क्षेत्र में राज्यों की सत्ता को नियंत्रित करती है।
The shifting sands of time. pic.twitter.com/6YzvkDM9qT
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) December 24, 2019
इस कारण मीडिया समूह ने राजनीतिक हवा देखते हुए अपने वैचारिक रुख बदलना शुरू कर दिया था। कुछ दिनों पहले ही बीजेपी द्वारा किए गए हर फैसले का आँख बंद करके समर्थन करने वाली अंजना ओम कश्यप- ने CAA और NRC की आलोचना की और कहा कि नागरिकता अधिनियम में संशोधन, NRC के साथ मिलकर खतरनाक है।
इसी तरह समूह के मुख्य संपादक और प्रमोटर अरुन पुरी ने भी मोदी सरकार की आलोचना करना शुरू कर दिया है। वहीं न्यूज़ डाइरेक्टर राहुल कंवल ने भी अब RSS के छात्र संगठन ABVP के खिलाफ फेक रिपोर्टिंग दिखा कर एक प्रकार से जंग छेड़ दी है। इन सभी उदाहरणों से पता चलता है कि जैसे-जैसे बीजेपी के चुनावी प्रदर्शन में गिरावट हुई, इंडिया टुडे ग्रुप ने सबसे पहले अपने वैचारिक रुख को उसी लचीलेपन के साथ बदलना शुरू कर दिया, जैसा कि इस ग्रुप ने 1970 के दशक के बाद से कांग्रेस के शासन तक किया।