हिंदुओं के खिलाफ मन में जहर, पर पाकिस्तानी शायर के लिए वामपंथी गैंग और बॉलीवुड के मन में प्रेम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

PC: The Indian Express

तिल का ताड़ बनाना तो कोई हमारी मीडिया से सीखे। सीएए के विरोध के नाम पर देश के कई शैक्षणिक संस्थानों में हिंसा भड़काने का प्रयास किया जा रहा था, जिसका शिकार आईआईटी कानपुर भी हुआ था। सीएए के विरोध के नाम पर कट्टरपंथी नारों को बढ़ावा दिया जा रहा था, जिसमें फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक कविता ‘हम देखेंगे’ का भी प्रयोग किया था। इसपर आपत्ति जताते हुए संस्थान के एक शिक्षक ने प्रबंधन से शिकायत की, जिसपर प्रबंधन ने जांच करने हेतु एक कमेटी का गठन किया। परंतु फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का नाम क्या उछला, मानो इंडियन मीडिया और बॉलीवुड के एक तबके के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। इस मुद्दे पर रणवीर शौरी और विशाल भरद्वाज जैसे बॉलीवुड के कलाकारों की टिप्पणी बेहद शर्मनाक रही। वहीं  मीडिया चैनलों और वेबसाइटस ने बिना समय गंवाए इस मुद्दे को ऐसे पेश किया मानो आईआईटी कानपुर इस बात की जांच कर रही है कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविता हिन्दू विरोधी थी या नहीं। 

 

फिर क्या था, क्या वामपंथी, क्या बॉलीवुड, सभी बिना सोचे समझे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविता का बचाव करने उतर गये। सर्वप्रथम फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के बचाव में सामने आए बॉलीवुड के चर्चित गीतकार एवं पटकथा लेखक जावेद अख्तर, जिन्होंने फ़ैज़ की कविता का विरोध करने वालों का उपहास उड़ाते हुए कहा, “फैज अहमद फैज को ‘हिंदू-विरोधी’ कहना इतना बेतुका और अजीब है कि इसके बारे में गंभीरता से बात करना भी मुश्किल है। उन्होंने अपना आधा जीवन पाकिस्तान के बाहर गुजारा, उन्हें वहां पाकिस्तान-विरोधी कहा गया। ‘हम देखेंगे’ उन्होंने जिया-उल-हक के सांप्रदायिक, प्रतिगामी और कट्टरपंथी सरकार के खिलाफ लिखा था। अगर फैज की कविता हिंदू विरोधी होती तो जिया उल हक इसे नेशनल एंथम बनवा देता”।

अब ऐसे में मुनव्वर राना कैसे पीछे रहते? अपनी कविताओं से ज़्यादा असहिष्णुता का राग अलापने के लिए चर्चा में रहने वाले मुनव्वर भी फ़ैज़ की कविता के बचाव में कूद पड़े। उन्होंने कहा, “रहे नाम अल्लाह का एक मुहावरा है। इसे कोई भी कह सकता है। इसे आजकल नई जुबान में जुमला कहते हैं, हमारे प्रधानमंत्री भी”।   

उन्होंने आगे कहा, “जैसे आप राम नाम सत्य हैं कहते हैं, लेकिन अफसोस है कि ये मरने पर कहते हैं।  राम नाम का मतलब है कि राम ही सत्य हैं। बाकी देवी-देवताओं के नाम का कोई मतलब नहीं है। वो हुक्मते जो एक दम चुप रहें, कुछ ना बोलें। मॉब लिंचिंग देखे और हर तरह का जुर्म देखकर भी चुप रहे। गरीबी, महंगाई और कत्लेआम पर ना बोलें, उन्हें बुध कहा जाता है”। उन्होंने कहा कि “खुदा, भगवान, गॉड हमने बनाए हैं और हम उन्हें बेच रहे हैं”। ऐसा लगता है कि अपने इस कथन के जरिये मुनव्वर राना ने सनातन धर्म को बीच में घसीटा और हिन्दू देवी देवताओं को महत्वहीन बताने का प्रयास किया है।  

परंतु समस्या आखिर किस बात पर है? दरअसल फ़ैज़ की कविता ‘हम देखेंगे’ के मूल संस्करण में कुछ पंक्तियाँ ऐसी हैं, जो कथित रूप से बुतपरस्ती को खत्म कर अल्लाह का नाम आगे बढ़ाने की बात करती है। वास्तव में फ़ैज़ ने इसे पाकिस्तान की तानाशाही सत्ता के विरोध में लिखा था, परंतु जिस कट्टरपंथी पंक्ति का उपयोग करते हुए आईआईटी कानपुर में उपद्रवी छात्रों ने हिंदुओं और उनकी आस्थाओं के विरुद्ध खूब विष उगला है, उसके प्रति हमारे वामपंथी गुट और उनके बॉलीवुडिया समर्थक जानबूझकर आँखें मूँदे हुए हैं, मानो हिंदुओं के अधिकारों का कोई महत्व ही नहीं है।  बॉलीवुड का ये धड़ा छात्रों द्वारा लगाये गये नारों को सही बताने लगे जबकि इन्हीं लोगों को वन्दे मातरम और भारत माता की जय के नारे कम्युनल लगते हैं।

हाल ही में सीएए का अतार्किक विरोध कर सुर्खियों में आए चर्चित गीतकार गुलज़ार भी इस विवादित कविता के बचाव में उतर आए।उन्होंने एक समारोह में चर्चा के दौरान बताया, “फ़ैज़ साहब एशिया के सबसे बड़े शायरों में से एक थे। वो टाइम्स ऑफ पाकिस्तान के एडिटर रह चुके हैं, कम्युनिस्ट पार्टी के लीडर रह चुके हैं। उस स्तर के शायर, जो प्रोगेसिव मूवमेंट के संस्थापक भी रहे, उस आदमी को महजब के आधार पर इस तरह का इल्जाम लगाना मुनासिब नहीं लगता। ये गलत है, जो ऐसा कर रहे हैं।”

गुलजार के बाद चर्चित फ़िल्मकार विशाल भारद्वाज भी फ़ैज़ के समर्थन में ट्वीट कर कहा, “फ़ैज़ की नज़्म को लेकर तमाशा होना बेहद ही हास्यास्पद है। कविता को समझने के लिए आपको पहले इसे महसूस करने की आवश्यकता है। आपको भावनात्मक बुद्धिमत्ता के लिए एक निश्चित मानक की आवश्यकता है, जो उन लोगों में तो बिलकुल नहीं है जो इसे मुस्लिम समर्थक और हिन्दू विरोधी बता रहे हैं”।  

पर रणवीर शौरी की जो प्रतिक्रिया सामने आई वो बेहद शर्मनाक थी. शौरी ने तो इस मामले में बीएचयू वाले मुद्दे को बेवजह घसीटा और फैज की कविता वाले मुद्दे को जायज ठहराया। इस मुद्दे रणवीर शौरी ने अपने ट्वीट में लिखा, “एक मुस्लिम संस्कृत अध्यापक को नीचा दिखाने के साथ फैज की कविता को फाड़ने तक, मैं हिंदू अतिवादियों की मूर्खता से हैरान हूं। हिंदू धर्म के असल मूल्यों, जैसे सहिष्णुता और खुलेपन से दूर वे हिंदू धर्म को नीचे की और खींच रहे हैं।” वास्तव में शौरी ने सीधे हिन्दुओं को मुर्ख कह दिया और एक विशेष वर्ग का समर्थन कर अपने दोहरे रुख को उजागर किया

सीएए क्या पारित हुआ, कई लोगों के अंदर की विकृत मानसिकता उमड़-उमड़ कर बाहर आने लगी। अपने पंथनिरपेक्षता की कथित परिभाषा का बचाव करने में ये इतने अंधे हो चुके हैं कि वे कट्टरपंथी नारों का बचाव करने से भी नहीं हिचकते। किसी नीति का विरोध करना स्वाभाविक है, पर उस नीति का विरोध करते करते धर्मांधता फैलाना कहां तक उचित है ?

Exit mobile version