जिस मुद्दे को JNSU ने उछाल कर लाइमलाइट में आने की कोशिश की और हिंसा कारवाई, विश्वविद्यालय के अधिकतर छात्रों ने उसे नकार दिया है। यानि JNU के 8500 छात्रों में से 5000 छात्रों ने अगले सेमेस्टर के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया है। यही नहीं JNU के VC को भी नहीं हटाया जाएगा। इस बात का स्पष्टीकरण स्वयं केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए दिया। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री का यह बयान काफी देर से आया है जब यह मामला ठंडे बस्ते में जा चुका है।
उन्होंने कहा, “छात्रावास की फीस बढ़ोतरी को लेकर छात्रों की मूल मांग मान ली गई है। जेएनयू के कुलपति को हटाने की मांग अब उचित नहीं है, किसी को भी हटाना कोई समाधान नहीं है”। उन्होंने कहा, “जेएनयू के करीब 80 प्रतिशत छात्रों ने अगले सेमेस्टर के लिए पंजीकरण करा लिया है। किसी को भी उन्हें परेशान नहीं करना चाहिए, जो पढ़ना चाहते हैं। अगर हमारे विश्वविद्यालय को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उत्कृष्टता हासिल करनी है तो इन मुद्दों से ऊपर उठना होगा।’’ पोखरियाल ने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) का उद्देश्य किसी की नागरिकता छीनना नहीं है। साथ ही उन्होंने छात्रों से कहा, “उन लोगों को यह बात समझाने की अपील की, जो मामले पर जनता को गुमराह कर रहे हैं और तुच्छ राजनीति में लिप्त हैं”।
हम यह पूछना चाहते हैं कि आखिर मंत्री जी ने इतनी देर क्यों की? जब यह हंगामा और विवाद शुरू हुआ, जब शुल्क वृद्धि का विरोध शुरू हुआ, जेएनयू परीक्षा का बहिष्कार किया गया, विश्वविद्यालयों में CAA-NRC का विरोध किया एएमयू और जेएमआई के छात्रों ने पुलिस पर पत्थर बाजी की, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया तब भी उन्होंने खुल कर बयान नहीं दिया। इसके बाद जब वह पंजीकरण बहिष्कार करने के चक्कर में वामपंथी गुट ने जेएनयू में हिंसा की तब तो वह कहां थे?
हमारे देश में तो कई लोगों को यह पता भी नहीं होगा कि हमारे देश के HRD मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हैं। बता दें कि हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक को वर्ष 2019 के चुनावों के बाद पीएम मोदी द्वारा शिक्षा मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था।
गायब कहने का यह अर्थ नहीं है कि उन्होंने इस मुद्दे और मौजूदा स्थिति पर बात नहीं की है, बल्कि यह अर्थ है कि वह इस पोर्टफोलियो को संभालने के लिए सही व्यक्ति नहीं हैं, जिसे भारत का छात्र समुदाय चाहता हो। आज देश के हर युवा अपने देश के प्रति जागृत हो रहें हैं और वो अपने समृद्ध जड़ो से जुड़ना चाहते हैं, वह यह चाहतें हैं कि HRD मंत्री देश के विकृत इतिहास और हिन-भावना से भरी किताबों को बदलने के लिए निर्णय ले। वे छात्र राजनीति की बकवास में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं और अपने यूनिवर्सिटियों को ऊपर ले जाना चाहते हैं। वहीं दूसरी तरफ अराजक तत्व भी है जो वामपंथी गिरोह का हिस्सा है और छात्र राजनीति के नाम पर हिंसा कर अपना वर्चस्व कायम करना चाहते हैं। इन्हें रोकने के लिए ही HRD मंत्री को कुछ निर्णय लेने होंगे ताकि पढ़ने वाला छात्र समूह अपनी और अपने देश की आकांक्षाओं को पूरा कर सके।
देश जब से स्वतंत्र हुआ है तब से ही शिक्षा कभी सुर्खियों में नहीं रही है, जबकि इसे होना चाहिए था। यूनिवर्सिटी के कैंपस में इस तरह की हिंसा शर्मनाक है। जेएनयू, जाधवपुर या जामिया मिल्लिया ही क्यों न हो छात्रों ने इस हद तक हंगामा खड़ा कर दिया कि संस्थान एक युद्ध क्षेत्र में तब्दील हो गया था। तब सख्त कार्रवाई की जरूरत थी ऐसे में सिर्फ ‘कार्रवाई’ की बयानबाजी से काम नहीं चलने वाला। पोखरियाल के इस रुख से यही पता चलता है कि वह विरोध के स्वर से घबरा रहे हैं। परंतु नरेंद्र मोदी की छवि हमेशा से एक निर्णायक नेता के रूप में रही है जो कभी भी सही निर्णय लेने से नहीं घबराते। हमारी मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल प्रार्थना है कि वह अपनी सक्रियता दिखायें। उन्हें यह दिखाने की जरूरत है कि सब कुछ उनके नियंत्रण में है।