टीपू सुल्तान को अब हीरो नहीं बल्कि विलेन के तौर पर जाना जाएगा। जी हाँ, जबसे कर्नाटक में कांग्रेस और JDS की सरकार गिरी है और येदियुरप्पा की सरकार बनी है तब से जनता और छात्रों को अत्याचारी टीपू सुल्तान का वास्तविक रूप दिखाये जाने की कोशिश की जा रही है।
दरअसल, पिछले साल, बीजेपी विधायक अपाचू रंजन (Appachu Ranjan) ने मांग की थी कि Tipu Sultan को इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से हटा दिया जाए। इसके बाद इस ओर कार्य भी शुरू कर दिया गया है। BJP सरकार अब नये सिलेबस को बनाने के लिए एक नई कमेटी बनाएगी जो टीपू के द्वारा किये गये अत्याचारों पर शोध करेगा और अपनी रिपोर्ट देगी जिसे सिलेबस में शामिल किया जाएगा। हालांकि, यह बदलाव शैक्षिक वर्ष 2020-21 के सिलेबस के लिए नहीं किया जाएगा लेकिन आने वाले सत्र में यह बदलाव देखने को मिल सकता है।
यानि देखा जाए तो राज्य सरकार ने टीपू सुल्तान की नकारात्मक छवि को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया है।
बता दें भारतीय जनता पार्टी के विधायक मदिकेरी Appachu Ranjan ने स्कूल सिलेबस से Tipu Sultan के चैप्टर को हटाने की मांग की थी। इसके लिए एम अपाचू रंजन ने बेसिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार को एक पत्र लिखा था। इसके बाद मंत्री सुरेश कुमार ने इसी मुद्दे पर टेक्स्ट बुक सोसायटी और इतिहासकारों की एक मीटिंग बुलाई और उनसे इस मुद्दे पर तीन दिन में रिपोर्ट मांगी थी। टेक्स्टबुक सोसायटी के प्रबंध निदेशक को संबोधित करते हुए सुरेश कुमार ने लिखा कि विधायक अपाचू रंजन को आमंत्रित कर इस मुद्दे पर उनसे बात करें और तीन दिन में रिपोर्ट दें। इसके बाद अब फैसला लिया गया है कि टीपू को सिलेबस से हटाया नहीं जाएगा बल्कि उसकी क्रूरता भी पढ़ाई जाएगी।
हमने अपने एक लेख में यह सुझाव भी दिया था कि टीपू सुल्तान के चैप्टर को हटाना अच्छा फैसला नहीं होगा। इसके बदले टीपू सुल्तान के नकारात्मक पहलू भी सिलेबस में पढ़ाया जाना चाहिए। अब जब कर्नाटक के राज्य मंत्री ने यह कह दिया है कि छात्रों को सकारात्मक और नकारात्मक पहलू दोनों को पढ़ाया जाएगा तो इससे छात्रों को टीपू द्वारा किए गए अत्याचार पढ़ने को मिलेगा। इससे वह इस शासक के वास्ताविक चरित्र के बारे में जान सकेंगे।
बता दें कि कांग्रेस की सिद्दारमैया सरकार ने वर्ष 2015 में टीपू जयंती मनाने का फैसला लिया था। विडम्बना देखिये कि जिस दिन टीपू का जन्मदिन है यानि 20 नवंबर को यह जयंती नहीं मनाई जाती थी बल्कि, 10 नवंबर को मनाया जाता था जिस दिन इस क्रूर शासक ने मंड्या जिले के मेलकोट के मंदिर में मय्यम अयंगर की हत्या की थी।
स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद भारतीय इतिहासकारों ने साम्प्रदायिक सद्भाव एवं धर्मनिरपेक्षता स्थापित करने के जोश में हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान को राष्ट्रीय महानायक बनाकर पेश किया था तथा अंग्रेजों के विरुद्ध टीपू की सफलताओं को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की तरह चित्रांकित किया। एक तरफ जहां टीपू के पिता हैदर अली ने अपने हिन्दू स्वामियों को समाप्त करके उनके राज्य को हड़प लिया वहीं, टीपू सुल्तान ने काफिरों अर्थात् हिन्दुओं, पुर्तगालियों, अंग्रेजों एवं भारतीय ईसाइयों के प्रति जीवन भर हिंसक कार्रवाईयां की और कई हजार लोगों की धार्मिक आधार पर हत्या की थी। यही नहीं वर्ष 1783 में कुरुल के नवाब रुस्तम खान ने कुर्ग के कोडवा हिन्दुओं पर हमला करके लगभग 60 हज़ार कोडवा लोगों को मार डाला तथा कई हजार स्त्री-पुरुषों को पकड़कर बंदी बना लिया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि टीपू सुलतान ने किस प्रकार का नरसंहार किया है।
टीपू जयंती का जश्न मनाना न केवल अयंगरों पर बल्कि कूर्ग के कोडावास, वायनाड और मालाबार के मेलों, कालीकट के ज़मोरिन, मंगलौर के कैथोलिक (नसरानियों), दक्षिण कन्नड़ के जैनों, जैसे अन्य समुदायों पर भी एक क्रूर मजाक था।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने सत्ता में आने के बाद जो सबसे पहले निर्णय लिए, उनमें टीपू जयंती को न मनाने का निर्णय भी शामिल था जिसे सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने शुरू किया था। उन्होंने तुरंत कन्नड़ और संस्कृति विभाग को टीपू जयंती नहीं मनाने का आदेश दिया था।
इस तरह से देखा जाए तो सिद्धारमैया शासन में टीपू जयंती न मनाने से लेकर उसके अत्याचारों को पढ़ने के लिए एक समिति बनाने तक कर्नाटक राज्य ने वास्तव में एक लंबा सफर तय किया है। अब सभी को यह पता चल चुका है कि टीपू सुल्तान कितना क्रूर और निरकुंश शासक था। येदियुरप्पा सरकार अब न केवल टीपू को एक महान शासक के रूप झूठे प्रचार पर लगाम लगा रही है बल्कि इस निरंकुश शासक द्वारा किए गए अत्याचारों को भी उजागर कर रही है।