“संविधान नहीं, मैं तो शरिया को ही मानूँगा” मिलिये सिंगापुर के पहले इस्लामिक आतंकवादी से

इमरान कासिम

(PC: The Straits Times

विश्व में आतंकवाद बढ़ता ही जा रहा है। अब एक नए मामले में आतंकवाद ने  विश्व के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक सिंगापूर तक अपने पैर पसार लिए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार ISIS से संबंध रखने वाले इमरान कासिम को ISIS को फंडिंग करने के मामले में दोषी पाया है। इमरान कासिम को पिछले वर्ष Terrorism (Suppression of Financing) Act, 2002 के तहत गिरफ्तार किया गया था। इस कानून के अनुसार दोषी को 10 वर्ष से अधिक की सजा या 500,000 डॉलर के अधिक हर्जाने के लिए नहीं कहा जा सकता।

इमरान कासिम नामक यह व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दोषी ठहराए जाने वाला पहला सिंगापुरी हैं। इतना ही नहीं इसने गर्व के साथ घोषणा की कि उसने ISIS को फंड किया है, क्योंकि उसे ISIS से सहानुभूति है।

कासिम ने कहा, “मैं यह मानता हूं, और मैंने इस्लामिक स्टेट को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा किया है।” इमरान को अगस्त 2017 से आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया था और विदेशों में हिंसा में भाग लेने का इरादा रखने के लिए एक detention order जारी किया गया था।

यहाँ यह जानना आवश्यक है कि इमरान कासिम ने कोर्ट में यह स्वीकार किया कि वह सिंगापूर के किसी भी कानून को नहीं मानता और वह सिर्फ शरिया कानून को मानता है।

उसने यह कहा कि उसने कोई राष्ट्रीय कानून नहीं तोड़ा गया। इमरान अदालत में खुद अपना प्रतिनिधित्व कर रहा था। उसे किसी भी कानूनी टीम द्वारा समर्थन नहीं दिया गया था। कुछ घंटों तक चले मुकदमे के बाद, जिला न्यायाधीश सीह ची-लिंग ने इमरान को अधिकारियों के बयानों, अदालत में उनके प्रवेश और प्रेषण सलाह और रसीद के आधार पर दोषी पाया। उसे 33 महीने की कैद की सजा सुनाई।

बता दें कि इमरान कासिम ने तुर्की में 31 अक्टूबर 2014 को मोहम्मद अलसाईद अल्हमिदान नामक एक व्यक्ति को लगभग 33 हज़ार डॉलर भेजा था। इमरान ने अपने बयानों में स्वीकार किया कि उसने फेसबुक पोस्ट के जवाब में पैसे भेजे थे, क्योंकि उनका मानना था कि उसके डोनेशन से फेसबुक पेज चलाने वालों को फायदा होगा। जिसका काम इस्लामिक स्टेट के लिए समर्थन हासिल करना था। उन्होंने कहा कि उसने यह बताया कि उसके डोनेशन से “आईएस के लिए समर्थन जुटाने” में मदद मिलेगी। इसके जरीय वह आईएस के लिए और अधिक समर्थकों को इकट्ठा करेगा और आईएस के प्रति जागरूकता बढ़ाएगा।

इससे स्पष्ट होता है कि इस्लामीक चरमपंथ और आतंकवाद का खतरा तेजी से फैल रहा है। यह अब उन जगहों पर भी अपने पाँव पसार रहा है जो क्षेत्र या शहर ऐतिहासिक रूप से सुरक्षित हैं। इससे निपटने के लिए विश्व के नेताओं को साथ आने की आवश्यकता है। हालांकि, कुछ देश स्वयं ही आतंकवाद को बढ़ावा देता हैं लेकिन फिर भी बड़े और ताकतवर देशों को कड़े फैसले लेने की जरूरत है।

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