आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी अपनी ही धुन में रहते हैं। एक तरफ जहां दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री CAA पर बयान दे रहे है तो वहीं जगन मोहन ने एक दिलचस्प फैसला लेते हुए राज्य की legislative council को ही हटाने का निर्णय ले लिया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार legislative council हटाने के लिए प्रस्तावित बिल को legislative Assembly में लाएंगे और इस सदन में जगन मोहन की पार्टी YSRCP 175 सीटों में से 151 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत में हैं। जगन मोहन रेड्डी इस बिल को दो तिहाई की बहुमत के साथ इस बिल को पारित करा सकते हैं।
जगन मोहन रेड्डी की पार्टी द्वारा इस तरह से legislative council को हटाने के फैसले के पीछे एक प्रमुख कारण नजर आ रहा है। बता दें कि legislative council में विपक्षी चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP बहुमत में है और इस पार्टी ने YSRCP द्वारा पारित कई बिलों को रिजेक्ट कर चुकी है।
बता दें कि आंध्र प्रदेश की सरकार इस प्रकार के निर्णय स्वतंत्र रूप लेने का पूर्ण अधिकार रखती है, क्योंकि जनता ने इस पार्टी को दो-तिहाई बहुमत से चुन कर सत्ता दिया है। एक तरह से देखा जाए तो सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने वालों के लिए विधान परिषद और राज्यसभा सर्वोत्तम साधन है और वे अपनी हितों को साधने के लिए इन दोनों का इस्तेमाल करते हैं।
राज्यसभा का कॉन्सेप्ट ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स से लिया गया है, जहां कुलीन वर्ग ने चुने हुए नेताओं के हाथों से शक्तियों को दूर रखने के अपने प्रयास में, इस उच्च सदन को अधिक शक्तियां दीं। हालांकि, समय के साथ, ब्रिटेन ने हाउस ऑफ लॉर्ड्स की शक्ति को कम कर दिया, और अब यह सिर्फ एक nominal institution है।
भारत में यह कॉन्सैप्ट केंद्र के साथ-साथ राज्यों में भी लाया गया। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य इस औपनिवेशिक प्रथा का पालन करते हैं और इन सभी में विधान परिषद हैं।
हालांकि, असम, मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों ने विधान परिषदों को खत्म कर दिया, और अब आंध्र प्रदेश उसी लिस्ट में शामिल हो जाएगा।
हालांकि, आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश ने NTR के नेतृत्व वाली TDP की सरकार ने लगभग ढाई दशक पहले ही विधान परिषद को खत्म कर दिया था, लेकिन 2007 में, जगन मोहन रेड्डी के पिता YSR ने विधान परिषद को फिर से बहाल कर दिया ताकि उनकी पार्टी के चाटुकारों को स्थान दिया जा सके।
आंध्र प्रदेश को देख कर यूपी, बिहार और महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों को भी इसी राह पर चलना चाहिए और विधान परिषदों को भंग करना चाहिए। राज्य सभा और राज्यों का विधान परिषद करदाताओं के पैसे पर बोझ होता है, और इसका उपयोग पार्टियों द्वारा पार्टी के चाटुकारों को रखने के लिए किया जाता है ताकि अपन हित साध सके। कभी-कभी ये सीटें पार्टियों द्वारा बेची भी जाती हैं। इसलिए सभी राज्यों को इसी राह पर चलना चाहिए।