केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार भी उन्होंने भारत के हितों को सर्वोपरि रखते हुए Amazon के संस्थापक जेफ़ बेज़ोस के भारत दौरे पर उनकी आवभगत करने से मना कर दिया, क्योंकि Amazon के सीईओ पर प्रिडेटोरी प्राइसिंग और चुनिन्दा विक्रेताओं को प्राथमिकता देने के आरोप लगे हैं।
अब जब पीयूष गोयल ने सिद्ध कर दिया कि मोदी सरकार व्यापार में किसी भी प्रकार का अन्याय बर्दाश्त नहीं करेगी, तो काँग्रेस एक बार फिर लोगों को भ्रमित करने के लिए ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर आगे आई है। ट्विटर पर अपना ‘आक्रोश’ व्यक्त करते हुए शशि थरूर कहते हैं, “यह अच्छा तरीका है निवेशकों को 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी के लिए आकर्षित करने का” –
This is a fine way to woo investors to make India a $5trillion economy! https://t.co/xqr1DYV5EQ
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) January 17, 2020
पी चिदम्बरम ने भी एक व्यंग्यात्मक ट्विटर थ्रेड पोस्ट कर मोदी सरकार को इस विषय पर आड़े हाथों लेने की कोशिश की। एक ट्वीट में वे कहते हैं, “ऐसी बेरुखी पिछले पाँच महीनों से निरंतर गिरते जा रहे आयात और आठ महीनों से निरंतर गिर रहे निर्यातों को भी रिवर्स कर देगी। वाणिज्य मंत्री को और लोगों को भी अनदेखा करना चाहिए, ताकि आयात और निर्यात में बढ़ोत्तरी हो सके” –
Commerce Minister snubbing Amazon's Jeff Bezos makes for a great headline in the world's media.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) January 16, 2020
जहां काँग्रेस पीयूष गोयल और मोदी सरकार की नकारात्मक छवि पेश करने के लिए भरसक प्रयास कर रही है, और ये जताना चाहते हैं कि जेफ़ बेज़ोस को अनदेखा कर मोदी सरकार भारत में निवेश रोक रही है, तो वहीं वास्तविकता का इससे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। सच कहें तो कई करोड़ छोटे और माध्यम वर्ग के व्यापारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए ही पीयूष गोयल ने यह निर्णय लिया है। Amazon अपने अत्यंत ऊंचे डिस्काउंट दर के लिए विवादों के घेरे में रहा है, जिससे अन्य व्यापारियों का धंधा ही चौपट हो जाता है, और भारत के छोटे एवं मध्यम वर्ग के व्यापारियों को इससे सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है।
Amazon के विरुद्ध एक और आरोप सामने आया है, और वो है कॉम्पटिशन लॉं का अंधाधुंध उल्लंघन करने का, जिसके कारण कॉम्पटिशन कमिशन ऑफ इंडिया द्वारा जांच कमेटी भी बिठाई गयी है। Amazon में विक्रेता चुनने के लिए कोई स्पष्ट criteria नहीं है। Amazon के ऊपर ये भी आरोप लगे हैं कि ये चुनिन्दा विक्रेता एमेज़ोन से affiliated भी हैं, जिससे मल्टी ब्रांड रिटेल में एफ़डीआई के अंतर्गत 49 प्रतिशत निवेश की सीमा का उल्लंघन भी होता है।
Amazon ने हाल ही में जो घाटा झेला है, उससे भी कई सवाल उठते हैं। पीयूष गोयल ने इसी बात पर प्रकाश डालते हुए पूछा कि जब एक fair market place model में 10 बिलियन डॉलर का टर्नोवर हो, और उसके बाद भी कंपनी को घाटा झेलना पड़े, तो सवाल तो उठेगा ही कि आखिर घाटा किस जगह हुआ।
जेफ़ बेज़ोस के तीन दिवसीय भारत दौरे पर उन्हे अनदेखा कर और उनके द्वारा छोटे एवं मध्यम वर्गीय उद्योगों को डिजिटल करने के 1 बिलियन डॉलर के निवेश के झांसे में न आकर पीयूष गोयल ने भारत के छोटे और मध्यम वर्गीय व्यापारियों के हितों को सर्वोपरि रखा है। जब से पीयूष गोयल ने वाणिज्य मंत्रालय की कमान संभाली है, भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रहित से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
इसी का उदाहरण हमें तब देखने को मिला था जब पिछले वर्ष किसानों और उद्योगपतियों ने मोदी सरकार द्वारा RCEP डील को न स्वीकारने के निर्णय का स्वागत किया था। भारत इस डील में इसलिए शामिल नहीं होना चाहता था, क्योंकि डर था कि कहीं ये डील देश के हितों की बलि न चढ़ा दे। RCEP डील में राष्ट्रहित को न सिर्फ ताक पर रखा जाता, अपितु RCEP के सदस्य देशों के साथ उनका ट्रेड डेफ़िसिट भी बढ़ जाता।
इसी भांति 2016 में भी मोदी सरकार ने फेसबुक के फ्री बेसिक्स मॉडेल को रिजेक्ट कर दिया, ताकि Net Neutrality का सिद्धान्त कायम रह सके। टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानि TRAI ने एक प्रैस रिलीज़ में कहा था, “चूंकि अभी जनसंख्या का एक बड़ा भाग इंटरनेट से नहीं जुड़ा हुआ है, इसलिए सर्विस प्रोवाइडर्स को उनकी मनमानी करने देना लोगों के इंटरनेट के अनुभव को नियंत्रित करने समान होगा”।
राष्ट्रवाद को सर्वोपरि रखने की इसी नीति के कारण पीयूष गोयल ने जेफ़ बेज़ोस को भी आँखें दिखाने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई। जब बेजोस भारत पहुंचे, तो छोटे व्यापारियों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के साथ उनका स्वागत हुआ। सच तो यह है कि Amazon के डीप डिस्काउंट्स, उनकी ‘प्रिफरेन्शियल सेलर’ पॉलिसी और प्रेडटोरी प्राइसिंग निर्धारण के आरोपों ने भारत की घरेलू चिंताओं को उजागर किया है, और मोदी सरकार भी इससे भलि-भांति परिचित है।
परंतु पीयूष गोयल ने ऐसी कोई टिप्पणी भी नहीं की, जो किसी भी स्थिति में ये संकेत दे कि वह विदेशी निवेशों के विरोधी हैं। उन्होंने केवल यह संकेत दिया कि भारत अपने नियमों को सख्ती से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने सिर्फ इतना ही स्पष्ट किया है कि चाहे कोई कितना भी बड़ा व्यापारिक दिग्गज क्यों ना हो, नियम तो सभी को मानने ही पड़ेंगे। पीयूष गोयल ने भारत के व्यापारिक हितों को बाधित करने के प्रयासों के खिलाफ साहसपूर्वक खड़े होकर प्रशंसनीय कार्य किया है। मोदी सरकार जिस तरह India first की नीति का पालन कर रही है, वह सराहनीय है।