जब से संसद में CAA पारित हुआ है तब से ही इसके खिलाफ प्रदर्शन और पत्थरबाजी की जा चुकी है। अपने हिंसक प्रदर्शन को छिपाने के लिए लिबरल गैंग ने सभी तरह के देश विरोधी ताकतों से हाथ मिलाकर, हिंसा के दौरान घायल हुए लोगों को आगे कर, पुलिस पर ही लांछन लगाना शुरू कर दिया था। यही नहीं केंद्र सरकार पर रोजाना ही फासिस्ट होने का आरोप लगता रहता है। परंतु National Crime Records Bureau (NCRB) द्वारा रिलीज किये गये डाटा कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। पुलिस एक्शन में सिविलियन्स की मौत में भारी गिरावट दर्ज की गयी है। वर्ष 2017 के 786 से घटकर यह वर्ष 2018 में 112 तक पहुंच गया है।
हमारे देश में मूलभूत अधिकार का सहारा लेकर प्रदर्शन करना आसान है। अगर प्रदर्शन के दौरान भीड़ अनियंत्रित होती है और हिंसा पर उतारू हो जाती है तो सबसे अधिक नुकसान पुलिस का ही होता है। अगर वे लाठी चार्ज करें तो लिबरल गैंग उनपर टूट पड़ता है और अगर कोई कदम न उठाए तो भीड़ के हिंसा में उनकी जान जाने का भी खतरा रहता है।
हमारे देश में, पुलिस पर किसी भी तरह का आरोप लगा कर दूर हट जाना आसान है। यही नहीं पुलिस को स्वाभाविक रूप से brutal चित्रित करना भी आसान है। इसी का फायदा CAA का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट रूप से उठाया है। हालांकि, जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, विपक्षी दलों और कथित बुद्धिजीवियों, जो अब सीएए विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे हैं, आरोप लगा चुके हैं कि भाजपा ने भारत को एक पुलिस राज्य में बदल दिया है।
फासीवाद जैसे आरोपों के बीच राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने रिपोर्ट 2018 को जारी किया है। वैसे तो इस रिपोर्ट में कई तथ्य सामने आए हैं लेकिन रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों में से एक है पुलिस कार्रवाई के कारण नागरिको की मौत में भारी गिरावट है। वर्ष 2017 में यह संख्या 786 थी वहीं वर्ष 2018 में यह संख्या घटकर 112 तक पहुंच गई।
इतनी भारी गिरावट सरकार और पुलिस पर फ़ासिज़्म और पुलिस के अत्याचार के झूठे आरोप का परदाफ़ाश करने के लिए काफी है। इस रिपोर्ट के गहराई से अध्ययन और विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाएगा कि देश भर में पुलिस बल बेहद पेशेवर रहे हैं।
विशेष रूप से भाजपा शासित राज्यों के मामले में, राज्य सरकारों द्वारा फासीवादी तरीके से कार्रवाई करने या पुलिस के अत्याचार का कोई सबूत नहीं है।
इस रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर राज्य में 74 नागरिक मौतें हुईं, एक ऐसा राज्य जो आतंकवाद से जूझ रहा है और आतंकी हमलों का गवाह बन रहा है। यह रिकॉर्ड अनुच्छेद 370 के हटने के पहले की है। जम्मू-कश्मीर के अलावा, गैर-भाजपा शासित राज्यों तमिलनाडु और तेलंगाना में पुलिस कार्रवाई के कारण 25 नागरिकों की मौत हुई।
अगर हमें जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों को अलग करें तो बाकी बचे राज्यों में सिर्फ 13 मौतें हुईं। हालांकि, एक भी मौत बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है, लेकिन यहां तथ्य यह है कि मौत की संख्या में तेज गिरावट आई है।
NCRB डेटा न केवल पुलिस बलों के बारे में लिबरल गैंग द्वारा फैलाये जा रहे झूठ का पर्दाफाश करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि फ़ासीवाद के कोई वास्तविक संकेत नहीं हैं। वर्ष 2018 में, भाजपा 21 राज्यों के सत्ता में थी, जिसमें भारत की कुल आबादी का लगभग 70 प्रतिशत शामिल था, इसलिए पुलिस कार्रवाई हुई मौतों की संख्या में भारी कमी का श्रेय पूरी तरह से भाजपा को ही जाता है।
एनसीआरबी के आंकड़ों का state-wise विश्लेषण करे तो से पता चलता है कि छत्तीसगढ़ और झारखंड के नक्सल प्रभावित राज्यों में नागरिकों की एक भी मौतें नहीं हुई थीं। 2018 में दोनों राज्यों में बीजेपी सत्ता में थी। एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ में वर्ष 2017 में 51 नागरिकों के हताहत होने की खबर थी तो वहीं 2018 में यह संख्या घटकर शून्य देखी गई। वहीं दूसरी तरफ झारखंड में वर्ष 2017 में भी पुलिस की कार्रवाई के कारण 6 नागरिक मृत्यु हुई थी, जो 2018 में यह संख्या शून्य हो चुकी है।
इस डाटा में एक और बात जो सामने है वह है उत्तर प्रदेश राज्य में पुलिस कार्रवाई के कारण असैनिक लोगों की मौतों की घटनाओं में भारी गिरावट। वर्ष 2017 में पुलिस कारवाई में 89 मौतें हुईं थी, जबकि वर्ष 2018 में ऐसी कोई घटना नहीं हुई। यह पुष्टि करता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार करने में कैसे सफल रहे हैं, वह भी उस राज्य में जो कभी अपने उच्च अपराध दर के लिए बदनाम था।
बता दें कि CAA विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी देखने को मिली थी जिसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए लाठीचार्ज किया था। परंतु लिबरल गैंग ने पुलिस के बारे में ही नकारात्मकता फैलाने के लिए कई ह्यूमन स्टोरी की और फिर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इसका फायदा उठाने की कोशिश की गई। वामपंथी कैबल ने कथित पुलिस बर्बरता का नाम पर मोदी सरकार को कई प्रकार से घेरने की कोशिश की।
हालांकि, एनसीआरबी के आंकड़ों से स्पष्ट है कि देश किसी तरह का पुलिस स्टेट नहीं बन रहा या फिर पुलिस अत्याचार कर रही है। जो भी यह झूठ फैला रहे है उन्हें फिर से सोचना चाहिए।